सुप्रीम कोर्ट ने दवाओं की मार्केटिंग के लिए बनाए गए कोड में कमियों पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोड में प्रक्रिया इतनी मजबूत हो कि किसी कंज्यूमर के साथ धोखा होने पर वह आसानी से शिकायत कर सके। साथ ही दोषी कंपनी के खिलाफ समय पर एक्शन हो। कोर्ट फार्मा कंपनियों की कथित अनैतिक मार्केटिंग प्रैक्टिसेज को रोकने से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य ने दायर की है। इसमें मांग की गई थी कि जब तक कोई प्रभावी कानून नहीं बनता, तब तक सुप्रीम कोर्ट खुद गाइडलाइन तय करे या मौजूदा कोड को संशोधन के साथ अनिवार्य बनाए। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यूनिफॉर्म कोड फॉर फार्मास्यूटिकल्स मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (UCPMP), 2024 में ऐसे उपाय होने चाहिए, जिनसे उपभोक्ताओं को शिकायत दर्ज करने में कोई कठिनाई न आए। सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका मार्च 2022 में सुनवाई के लिए स्वीकार की थी। कई नीतियां लागू हैं, पोर्टल लाने पर भी विचार
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने बताया कि सरकार दवाओं की कीमतों और मार्केटिंग गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कई नीतियां चला रही है। उन्होंने बताया कि UCPMP-2024 में डॉक्टरों और उनके परिवार के लिए गिफ्ट, यात्रा और अन्य लाभ देने पर रोक है। नटराज ने कहा कि कोड के तहत शिकायत और दंड की व्यवस्था है। इसे आसान बनाने के लिए एक स्वतंत्र शिकायत पोर्टल भी लाया जा सकता है। उन्होंने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 का भी उल्लेख किया। याचिकाकर्ता बोले– कोड स्वैच्छिक है, इसलिए असर कमजोर
वरिष्ठ वकील संजय परिहार ने दलील दी कि UCPMP-2024 केवल स्वैच्छिक है, इसलिए दवा कंपनियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई संभव नहीं होती। याचिका में कहा गया कि डॉक्टरों पर तो भारतीय चिकित्सा परिषद के नियम लागू होते हैं, लेकिन फार्मा कंपनियों पर कोई बाध्यकारी कानून नहीं है, जिससे वे दंड से बच जाती हैं। क्या सरकार कानून लाने पर विचार कर रही है?
बेंच ने केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या सरकार इस विषय पर कोई लीगल प्रपोजल लाने पर विचार कर रही है। अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी। याचिका में कहा गया कि भारतीय चिकित्सा परिषद (पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 डॉक्टरों के लिए कोड तय करते हैं और उन्हें फार्मा कंपनियों से गिफ्ट, मनोरंजन, यात्रा या पैसा लेने से रोकते हैं। याचिका में दावा किया गया कि यह कोड डॉक्टरों पर लागू होता है लेकिन दवा कंपनियों पर नहीं, जिससे स्थिति यह बनती है कि डॉक्टरों के लाइसेंस तो रद्द हो जाते हैं, लेकिन जिन फार्मा कंपनियों ने उन्हें प्रोत्साहित या उकसाया, वे बिना सजा के बच निकलती हैं। सेल्स प्रमोशन के नाम पर डॉक्टरों को गिफ्ट, मनोरंजन, विदेश यात्राएं और अन्य लाभ दिए जाते हैं, बदले में दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए कहा जाता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि फार्मा कंपनियां स्वास्थ्य पेशेवरों को दवाओं के प्रचार के लिए दिए जाने वाले लाभों को नियंत्रित करने वाला कोई प्रभावी कानून मौजूद नहीं है, इसलिए अनैतिक प्रथाएं बिना रोक-टोक जारी हैं।
दवा कंपनियों के मार्केटिंग कोड में कमी पर SC नाराज:कहा- प्रक्रिया इतनी मजबूत हो कि धोखा होने पर शिकायत आसान हो, दोषी पर एक्शन हो


