बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए दोहराया है कि ‘पद्म श्री’, ‘पद्म भूषण’, ‘पद्म विभूषण’ और ‘भारत रत्न’ जैसे नागरिक सम्मानों का उपयोग पुरस्कार विजेताओं के नाम के आगे (Prefix) या पीछे (Suffix) नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये सम्मान ‘उपाधियाँ’ (Titles) नहीं हैं।
क्या है पूरा मामला?
न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन (Justice Somasekhar Sundaresan) की पीठ एक सार्वजनिक ट्रस्ट की बैठक से जुड़े विवाद पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट की नजर याचिका के शीर्षक पर पड़ी, जिसमें 2014 के एक पद्म श्री पुरस्कार विजेता, डॉ. शरद एम. हर्डीकर का नाम “पद्म श्री डॉ. शरद एम. हर्डीकर” के रूप में लिखा गया था।
कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि इस तरह से नागरिक पुरस्कार का इस्तेमाल करना कानूनन सही नहीं है।
1995 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
न्यायमूर्ति सुंदरेशन ने कहा कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह 1995 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले की ओर सबका ध्यान दिलाए। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि, “भारत रत्न और पद्म पुरस्कार जैसे नागरिक सम्मान ‘उपाधियां’ नहीं हैं और पुरस्कार विजेताओं को इनका उपयोग अपने नाम के उपसर्ग (Prefix) या प्रत्यय (Suffix) के रूप में नहीं करना चाहिए।”
शीर्ष कोर्ट के आदेश का पालन हो…
हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश की सभी अदालतों और नागरिकों पर बाध्यकारी है। कोर्ट ने आदेश दिया कि भविष्य में अदालती कार्यवाही के दौरान सभी पक्ष इस कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। साथ ही निचली अदालतों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके रिकॉर्ड में इन सम्मानों का इस्तेमाल नाम के साथ न हो।


