Bangladesh Unrest: बांग्लादेश में पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक और सामाजिक माहौल बहुत तनावपूर्ण बना हुआ है। ‘इंक़लाब मंच’ के संयोजक शरीफ़ उस्मान हादी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। इस आक्रोश का रुख़ अब मीडिया संस्थानों और सांस्कृतिक केंद्रों की ओर मुड़ गया है, जिन्हें प्रदर्शनकारी ‘भारत का हिमायती’ करार दे रहे हैं। उग्र भीड़ ने ढाका में दो प्रमुख समाचार पत्रों ‘प्रथम आलो’ और ‘द डेली स्टार’ के कार्यालयों को निशाना बनाया। प्रदर्शनकारियों ने इन संस्थानों पर ‘भारत का दलाल’ होने और पूर्ववर्ती कथित ‘फ़ासीवादी’ सरकार का साथ देने का आरोप लगाया। केवल मीडिया ही नहीं, बल्कि देश के प्रतिष्ठित सांस्कृतिक केंद्र ‘छायानट भवन’ में भी तोड़फोड़ और आगज़नी की घटनाएं सामने आई हैं। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि ये संस्थाएं देश की ‘असली आज़ादी’ और इस्लामी पहचान के मार्ग में बाधा हैं।
क्यों भड़क रही है भारत विरोधी भावना ?
विश्लेषकों के अनुसार, बांग्लादेश में भारत के प्रति नाराज़गी रातोंरात पैदा नहीं हुई है। इसके पीछे कई पुराने और गहरे कारण हैं:
सीमा पर हत्याएं: सीमावर्ती इलाक़ों में होने वाली कथित हत्याओं को लेकर स्थानीय लोगों में भारी रोष रहता है।
पानी का बंटवारा: तीस्ता नदी समेत अन्य नदियों के जल बँटवारे का मुद्दा दशकों से सुलझ नहीं पाया है।
आंतरिक हस्तक्षेप के आरोप: बांग्लादेश का एक बड़ा वर्ग मानता है कि भारत वहाँ की आंतरिक राजनीति में दख़ल देता रहा है।
शेख़ हसीना को शरण: जुलाई के छात्र आंदोलन के बाद शेख़ हसीना का भारत में शरण लेना और उनके प्रत्यर्पण में हो रही देरी ने जलती आग में घी का काम किया है।
हादी की हत्या के बाद कूटनीतिक तनाव
शरीफ़ उस्मान हादी की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर यह अफ़वाह फैल गई कि आरोपी सीमा पार कर भारत भाग गए हैं। हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और पुलिस प्रशासन ने साफ़ कहा है कि उनके पास अभियुक्तों के देश छोड़ कर जानने का कोई पुख़्ता सुबूत नहीं है। इसके बावजूद, इस मुद्दे को आधार बनाकर भारत विरोधी भावनाओं को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।
राजनीति और ‘धर्म आधारित’ ध्रुवीकरण
जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश की राजनीति में भारत-विरोध का कार्ड खेलना हमेशा से फ़ायदेमंद रहा है। विशेष रूप से ‘इस्लामी छात्र शिविर’ और ‘इंक़लाब मंच’ जैसे संगठनों के नेताओं ने खुलेआम चेतावनी दी है कि वे वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष संस्थानों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। विश्लेषक नूरुल कबीर के अनुसार, जो गुट देश में धर्म आधारित राजनीति को मज़बूत करना चाहते हैं, उनके लिए भारत विरोधी नारे लगाना एक आसान और प्रभावी हथियार बन गया है।
अंतरिम सरकार की भूमिका पर सवाल
इस पूरी हिंसा के दौरान अंतरिम सरकार और सुरक्षा बलों की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। पीड़ित मीडिया संस्थानों का आरोप है कि उन्होंने बार-बार सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन समय पर मदद नहीं पहुँची। कुछ वीडियो में सुरक्षा अधिकारी हमलावरों को रोकने के बजाय उनसे बातचीत करते हुए नज़र आए। कई लोगों का तो यहां तक मानना है कि सरकार के अंदर ही एक ऐसा गुट सक्रिय है जो इन हमलों को मौन समर्थन दे रहा है, ताकि आगामी चुनावों से पहले एक ख़ास तरह का माहौल बनाया जा सके।
देश में अनिश्चितता का माहौल
बहरहाल, बांग्लादेश एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां एक तरफ़ कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती है, तो दूसरी तरफ़ बढ़ता हुआ कट्टरवाद है। जानकारों का कहना है कि जल्द चुनाव और एक स्थिर लोकतांत्रिक सरकार ही इस अस्थिरता को ख़त्म कर सकते हैं। अगर इन हिंसक प्रवृत्तियों को नहीं रोका गया, तो बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय छवि और पड़ोसी देशों के साथ उसके रिश्ते और ज़्यादा बिगड़ सकते हैं।


