जब हीरो के सामने बना ‘धुरंधर’ विलेन: ग्रे शेड कैरेक्टर्स ने कैसी बनाई मजबूत पहचान

जब हीरो के सामने बना ‘धुरंधर’ विलेन: ग्रे शेड कैरेक्टर्स ने कैसी बनाई मजबूत पहचान

Bollywood Iconic Villains: बॉलीवुड, हॉलीवुड या हो टॉलीवुड, फिल्में सिर्फ हीरो-हीरोइन के दम पर ही नहीं चलती हैं। फिल्मों के सफल होने में उसकी कहानी, लोकेशंस, स्क्रिप्ट, म्यूजिक के साथ-साथ एक दमदार खलनायक का भी अहम योगदान होता है। मगर ये बात हर जॉनर की फिल्म पर लागू नहीं होती है। रोमांटिक फिल्म में गाने, दिल छू लेने वाली कहानी और जबरदस्त अभिनय जान डाल देता है। वहीं, कॉमेडी फिल्मों के लिए कलाकारों की कॉमिक टाइमिंग ही काफी है। इन सबके इतर एक्शन-ड्रामा फिल्मों में उसके खलनायकों का महत्वपूर्ण रोल होता है।

इन दिनों चर्चा में चल रहे रहमान डकैत का किरदार ही देखा जाए तो फिल्म धुरंधर के बाकि किरदारों से ज्यादा चर्चा इस खलनायक की हो रही है, जिसको विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना ने निभाया है। रहमान डकैत के किरदार ने ये तो साबित कर दिया है कि फिल्में सिर्फ दमदार हीरो के बल पर नहीं, बल्कि विलेन के बूते भी यादगार बन सकती हैं।

धुरंधर के रहमान डकैत ने लोगों को खौफजदा किया

Akshaye Khanna As Rahman Dakait
‘धुरंधर’ का रहमान डकैत। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

रहमान डकैत, जिसके किरदार को निभाकर अक्षय खन्ना खूब तारीफें बटोर रहे हैं। फिल्म में उसके परदे पर आते ही खौफ का मंजर दिखने लगता है। ‘धुरंधर’ में रणवीर सिंह से ज्यादा लाइमलाइट अक्षय खन्ना ले गए हैं। असल जिंदगी का एक खूंखार दरिंदा था। रहमान डकैत जो पाकिस्तान के ल्यारी शहर का बेहद खतरनाक और कुख्यात आतंकवादी था, जिसकी दहशत ऐसी थी कि लोग उसके नाम से भी कांप जाते थे। रहमान डकैत इतना खूंखार था कि उसने शक के चलते अपनी मां को मौत के घाट उतर दिया था। और इस किरदार को फिल्मीं परदे पर उतरना हिंदी सिनेमा के लिए एक बड़ा कदम है। मगर ये एक सवाल भी खड़ा करता है कि परिस्थितियों और मजबूरी वश आतंक का रास्ता चुनना सही है या गलत, क्योंकि फिल्म में इस किरदार को जिस तरह से दिखाया गया है वो इसके प्रति एक वर्ग को सहानभूति भी दे रहा है।

ग्रे शेड कैरेक्टर्स ने कैसी बनाई पहचान

वहीं, हिंदी सिनेमा के बीते सालों में जाएं तो एक से बढ़कर एक खलनायक मिलेंगे, जिनको देखकर पूरी फिल्म और उसके डायलॉग्स याद आ जाते हैं। अगर देखा जाए तो फिल्म का दूसरा हीरो विलेन ही होता है। बीते वर्षों की कोई भी फिल्म देख लीजिये, विलेन के बिना फिल्म का हीरो ‘हीरो’ नहीं बनता, जब तक विलेन हीरो को परेशान नहीं करेगा, उसको सताएगा नहीं, तब तक हीरो की ताकत का अंदाजा नहीं लग सकता। चाहे फिर वो शोले का गब्बर हो या मिस्टर इंडिया का मोगैम्बो। अगर फिल्म में ये किरदार न होते तो जय-वीरू की कहानी अमर नहीं होती और न ही मिस्टर इंडिया का सीधा-सादा लड़का ‘मिस्टर इंडिया’ बन पाता। तो आइये अब बात करते हैं, बॉलीवुड के कुछ आइकॉनिक खलनायकों एक बारे में जिन्होंने नायक से ज्यादा तालियां और तारीफें पायीं और फिल्म का एक यादगार फिल्म बना दिया। इन नकारात्मक किरदारों को निभाने वाले अभिनेताओं ने हिंदी सिनेमा को एक नई पहचान और दिशा दी।

सत्या का भीखू म्हात्रे

Manoj Bajpayee
सत्या का भीखू म्हात्रे। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

‘मुंबई का किंग कौन? भीखू म्हात्रे!’ एक दौर था जब सत्या फि का ये डायलॉग हर किसी की जुबान पर चढ़ा हुआ था। दोस्त आपसे में बात करते हुए बोलते थे मुंबई का किंग कौन? और अपना नाम लेते थे। ये सिर्फ एक डायलॉग का असर नहीं था, बल्कि भीखू म्हात्रे का किरदार था। इस किरदार में मनोज बाजपेई ने जबरदस्त परफॉर्मन्स दी थी। भीखू सिर्फ एक खलनायक ही नहीं था बल्कि वो एक ऐसा इंसान था जो दूसरों की मजबूरी को समझता था। जिंदगी के थपेड़ों ने उसको बुरा इंसान बनने पर मजबूर कर दिया था। उसके चरित्र के दो पहलू थे एक में वो बेहद खतरनाक था, तो वहीं वो अपनों के लिए समर्पित भी था। शायद यही वजह थी कि जब फिल्म में वो मरता है तो लोग दुखी थे। ऐसा चरित्र ही भीखू म्हात्रे को भीखू म्हात्रे बनाता है।

जय-वीरू की दोस्ती और गब्बर की दुश्मनी

Amjad khan in Sholay
शोले का गब्बर। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

‘कितने आदमी थे?’ ये एक सवाल नहीं बल्कि उस किरदार का पर्याय था जिसने शोले के गब्बर को ‘गब्बर’ बनाया। फिल्म में गब्बर सिर्फ गब्बर नहीं दहशत का दूसरा नाम था। जहां रामगढ़ और उसके आप-पास के गांवों में उसका आतंक था। ’50-50 कोस जब कोई बच्चा रोता था, तो मां कहती थी कि बेटा सो जा वरना गब्बर आ जाएगा’ ये डायलॉग गब्बर की पूरी कहानी कहता है। जब जय और वीरू गांववालों की मदद के लिए ठकुर साहब से हाथ मिलाते हैं तो गब्बर बौखला जाता है और शुरू होता है उसकी दहशत का खेल। वहीं, उसका डायलॉग जो ‘डर गया, समझो मर गया’, एक विचार है जो सबके लिए चरितार्थ होता है। तो ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर गब्बर नहीं होता तो न ही जय-वीरू होते, न ही बसंती और ठाकुर साहब होते और न ही ‘शोले’ होती। गब्बर है तो शोले है…।

राधा, बिरजू और सुखीलाल की कहानी मदर इंडिया

Mother India
मदर इंडिया का सुखीलाल। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है सुनील दत्त, नरगिस और राजेंद्र कुमार अभिनीत ‘मदर इंडिया’ के सुखीलाल की। जी हां, वही सुखीलाला जो एक महाजन है, जिसके पास पैसा है और जिसमें बेईमानी कूट-कूटकर भरी हुई है। सुखीलाल (कन्हैयालाल चतुर्वेदी) अपनी ओछी हरकतों से रामू (राजेंद्र कुमार) और बिरजू (सुनील दत्त) की मां (नरगिस) को गलत नीयत से देखता है और हमेशा उसको उसके बच्चों के सामने जलील करता है, उसका फायदा उठाना चाहता है। उधार के बदले उसको अपनी रानी बनाने की मंशा रखता है। उसका यह व्यवहार और मां की मजबूरी बिरजू को एक अपराधी बना देता है। मगर फिल्म का असली खलनायक सुखीलाला नहीं बल्कि समाज में फैली अराजकता और आर्थिक तंगी है, जिसका फायदा सुखीलाला को मिलता है। फिल्म का एक डायलॉग है, ‘ब्याज चढ़ता जाता है… और तुम्हारा कर्ज कभी खत्म नहीं होगा।’ आज भी उतना ही सार्थक है जितना उस दौर में था।

मोगैंबो की सल्तनत

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मिस्टर इंडिया का मोगैंबो। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

‘मोगैंबो खुश हुआ!’ ये डायलॉग हिंदी सिनेमा के उन डायलॉग्स में से हैं, जो गाहे-बगाहे इंसान के मुंह से निकल जाते हैं। अमरीश पुरी, अनिल कपूर, श्रीदेवी अभिनीत फिल्म का ये डायलॉग हमेशा अमर रहेगा। फिल्म में मोगैंबो का किरदार सिर्फ एक विलेन का नहीं बल्कि वर्चस्व और अहंकार का प्रतीक था। मोगैंबो की अपनी एक दिनिया थी जहां का वो राजा था। उसकी मर्जी के बिना वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। अगर मोगैंबो खुश है तो पूरी दुनिया खुश वार्ना वो सबको बर्बाद करने की ताकत रखता है। हिंदी सिनेमा को मोगैंबो के रूप में ऐसा किरदार मिला जो कभी भुलाया नहीं आ सकता। उसकी ड्रेस, उसकी सल्तनत, उसका सैन्य बल सब मिलकर उसको बहुत शक्तिशाली बनाते हैं, जो दुनिया को जीतना चाहता है जिसको हराने के लिए होती है हीरो अनिल कपूर की एंट्री, और बनती है मिस्टर इंडिया एक यादगार फिल्म।

बैड मैन केसरिया विलायती

Gulshan Grover
रामलखन का केसरिया विलायती। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

एक मां और उसके दो बेटों की कहानी है ‘रामलखन’। इसमें एक नहीं बल्कि एक बहादुर मां और उसके बेटों के सामने उसके अपनों के साथ-साथ बाहरी भी दुश्मन बनकर खड़े हैं। इसमें से ही एक है ‘केसरिया विलायती’ जिसका तकिया कलाम है ‘बैड मैन’। ये सिर्फ 2 शब्द नहीं बल्कि गुलशन ग्रोवर द्वारा अभिनीत इस किरदार की पूरी कहानी हैं। फिल्म में छोटा किरदार लेकिन इसका असर बहुत गहरा था। फिल्म का वो सीन जब उसको घोड़े के अस्तबल से पकड़ा जाता है, आज भी सबसे बेहतरीन सीन्स में शामिल है। अभिनेत्री राखी गुलजार, जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर के बाद अगर इस फिल्म के लिए किसी को याद किया जाता है तो वो है केसरिया विलायती उर्फ बैडमैन। हालांकि, अमरीश पूरी, अनु कपूर, आनंद बलराज, रजा मुराद ने भी अपने किरदार बखूबी निभाए।

‘अजीब जानवर है ये…’, शाकाल

Kulbhushan Kharbanda
शान का शाकाल। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

‘शाकाल’, जिसका खौफ ऐसा कि लोग उसकी 3 तक पहुंचने से पहले ही तेजाब के टैंक में कूद जाते थे। एक गुफा में था शाकाल का साम्राज्य, जहां उसकी हुकूमत चलती थी। उसी गुफा में बैठकर वो बाहर की दुनिया पर नजर रखता था। वो एक शांत खलनायक था, जिसका बोलने का अंदाज बहुत धीमा था, लेकिन उसकी आंखें और अपने सिंघासन पर बैठ कर उँगलियाँ चलाना और अपने गंजे सिर पर हाथ फेरना ही बेहद खतरनाक था। सफ़ेद सूट और उसकी गंजी खोपड़ी उसको खतरनाक बनाती है। अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, शशि कपूर और शत्रुघ्न सिंहा अभिनीत फील शान में शाकाल एक अपराधी नहीं, एक शातिर और खूंखार शख्स है, जिसको आज भी हिंदी सिनेमा के आइकॉनिक खलनायकों में गिना जाता है। और आगे भी इस किरदार को याद किया जाएगा।

‘सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है…’, Lion

Actor Ajit
कालीचरण का Lion। (फोटो: पत्रिका डिजाइन)

कालीचरण का लायन (Lion) हिंदी सिनेमा के सबसे खतरनाक किरादरों में से एक है। एक ऐसा खलनायक जो छुप कर नहीं बल्कि सामने से रहकर वार करता है। एक मासूम को अपने जाल में फंसा कर अपने काले धंधों को अंजाम देता है। उसका स्टाइल और उसका डायलॉग सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है… सालों साल तक याद किया गया है और आगे भी किया जाएगा। इस किरदार में अभिनेता अजीत हाथ में सिगार और सूट-बूट में लिए नजरआते हैं। उनकी दमदार आवाज ने इस किरदार को और भी खौफनाक बना दिया था।

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