गिफ्ट डीड या वसीयत! प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने का क्या है सबसे सही तरीका?

गिफ्ट डीड या वसीयत! प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने का क्या है सबसे सही तरीका?

प्रॉपर्टी ट्रांसफर को लेकर अक्सर एक सवाल पूछा जाता है कि अगर किसी पिता को अपनी सपंत्ति संतान को ट्रांसफर करनी हो तो सबसे अच्छा तरीका क्या होता है, गिफ्ट डीड या फिर वसीयत. देखिए ये दोनों ही तरीके अपनी जगह सही हैं और दोनों के ही अपने फायदे और नुकसान हैं. चलिए इसको समझते हैं.

गिफ्ट डीड से प्रॉपर्टी ट्रांसफर

हम आमतौर पर संपत्ति के ट्रांसफर को लेकर ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं, जिसकी वजह से आगे चलकर काफी प्रॉपर्टी विवाद भी देखने को मिलते हैं. अचल संपत्ति, खासतौर पर रेजिडेंशियल अपार्टमेंट्स के ट्रांसफर को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि योजनाबद्ध तरीके से काम न करने पर ये भविष्य में गंभीर कानूनी और वित्तीय चुनौतियां खड़ी कर सकता है. देखिए रेजिडेंशियल अपार्टमेंट के मामले में स्थिति थोड़ी जटिल इसलिए भी हो जाती है क्योंकि इसमें न केवल कानून, बल्कि हाउसिंग सोसायटियों के नियम भी शामिल होते हैं.

पिता के अपार्टमेंट को अपनी संतान, बेटा या बेटी को ट्रांसफर करने के कई तरीके हैं, गिफ्ट सबसे आसान और सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है. मगर इसके साथ ही कुछ खास बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

  • पिता जीवित रहते ही संपत्ति को अपनी संतान को ट्रांसफर कर सकते हैं, इसमें कोई रुकावट नहीं आती है.
  • पिता और संतान आपस में रिश्तेदार हैं, इसलिए गिफ्ट देते समय कोई टैक्स भी नहीं बनता है
  • जब कभी संतान उस प्रॉपर्टी को बेचने का फैसला करती है तो उस पर टैक्स की देनदारी बनेगी
  • गिफ्ट डीड को रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य होता है. गिफ्ट डीड के जरिए संपत्ति ट्रांसफर तभी मान्य होती है जब वह रजिस्टर्ड हो और उस पर स्टांप ड्यूटी अदा की गई हो.

वसीयत के जरिए प्रॉपर्टी ट्रांसफर

वसीयत भी एक तरीका है, जिसमें पिता के जीवित रहते प्रॉपर्टी उनके नाम पर रहती है, मुत्यु के बाद संतान को मिल जाती है. इसमें फायदा ये होता है कि संतान पिता को उनके जीवनकाल में घर से बाहर नहीं निकाल सकता है. पूरा कंट्रोल पिता का ही रहता है.

पिता की मृत्यु के बाद संतान को सोसायटी में नाम ट्रांसफर कराने में थोड़ी कागजी कार्यवाही करनी पड़ सकती है. अगर वसीयत साफ तरीके से नहीं लिखी गई हो और रजिस्टर्ड न हो तो आगे चलकर विवाद भी हो सकते हैं.

जबकि दूसरी तरफ गिफ्ट डीड से मौत के बाद होने वाली कागजी कार्यवाही, प्रक्रिया में देरी और टाइटल ट्रांसफर का झंझट बच जाता है चूंकि ट्रांसफर पिता के जीवित रहते हो जाता है, इसलिए इसे करना आमतौर पर बहुत आसान होता है और मौत के बाद होने वाले झगड़ों या देरी का खतरा भी कम हो जाता है.

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