मुंबई महानगरपालिका (BMC Election) चुनावों से पहले महाराष्ट्र की सियासत एक बार फिर मराठी अस्मिता के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। करीब दो दशक की सियासी दुश्मनी को खत्म करते हुए शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के संस्थापक राज ठाकरे ने आगामी बीएमसी चुनाव के लिए आधिकारिक तौर पर गठबंधन का ऐलान कर दिया है। बुधवार को हुई इस घोषणा ने राज्य के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है। दोनों भाइयों ने ‘ब्रैंड ठाकरे’ को पुनर्जीवित करने और मराठी वोट बैंक को एकजुट करने के लिए हाथ मिलाया है।
गठबंधन की घोषणा करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि यह समझौता किसी सत्ता के लालच में नहीं, बल्कि मुंबई और महाराष्ट्र की पहचान की रक्षा के लिए किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जो भी महाराष्ट्र के हित में साथ आना चाहता है, चाहे वह भाजपा के भीतर के समान विचारधारा वाले लोग ही क्यों न हों, उनका ठाकरे गठबंधन में स्वागत है।
वहीं, राज ठाकरे ने इस गठबंधन को महाराष्ट्र के अस्तित्व को बचाने के लिए ‘समय की मांग’ बताया। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे अब मुकाबला मुख्य रूप से ‘ठाकरे बनाम महायुति’ के बीच सिमट गया है। सत्तारूढ़ महायुति में भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) शामिल है।
क्या है जीत का समीकरण?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह गठबंधन मराठी वोट बैंक को एकजुट करने और बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति को सीधी चुनौती देने के लिए बनाया गया है। 2022 में शिवसेना के विभाजन के बाद मुंबई में बिखरे मराठी मतों को फिर से एक मंच पर लाने की यह एक रणनीतिक कोशिश है। ‘एकजुट ठाकरे परिवार’ की छवि के जरिए दोनों नेता पारंपरिक शिवसैनिक आधार को वापस साधना चाहते हैं। इसके अलावा उनका निशाना मुस्लिम मतदाताओं पर भी है, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में उद्धव गुट की जीत में बड़ी भूमिका निभाया था।
ठाकरे भाइयों के गठबंधन की नजर मुंबई की कुल 227 सीटों में से लगभग 113 वार्डों पर है। इसमें 72 मराठी-बहुल और 41 मुस्लिम-प्रभावित वार्ड शामिल हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद उद्धव के प्रति मुस्लिम मतदाताओं का रुझान बढ़ा है, जबकि राज ठाकरे की पकड़ मुंबई के 26 प्रतिशत कोर मराठी मतदाताओं पर मानी जाती है।
शिंदे की शिवसेना का तीखा प्रहार
ठाकरे गठबंधन पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के मंत्री और शिंदे गुट के वरिष्ठ नेता संजय शिरसाट ने तीखा तंज कसा है। उन्होंने कहा, “उद्धव ठाकरे को सिर्फ BMC रूपी वो मुर्गी चाहिए जो सोने का अंडा देती है। उन्हें अन्य किसी महानगरपालिका चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं है।” शिरसाट ने इस गठबंधन को मजबूरी का मिलन करार देते हुए कहा कि जैसे डूबते को तिनके का सहारा चाहिए होता है, वैसे ही कांग्रेस और शरद पवार का साथ छूटने के बाद उद्धव अब राज ठाकरे के भरोसे हैं।
अस्तित्व की लड़ाई और BJP की चुनौती
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और उसके बाद राज्य के नगर परिषद और नगर परिषद चुनावों में करारी हार के बाद बीएमसी चुनाव ठाकरे खेमे के लिए अस्तित्व की लड़ाई है। यह सीधा हमला उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के उस दावे पर है जिसमें वे खुद को बालासाहेब ठाकरे की विरासत का असली वारिस बताते हैं। दूसरी ओर, भाजपा जो पहली बार मुंबई में अपना मेयर बनाने का सपना देख रही है, उसके ‘150-प्लस’ के लक्ष्य के सामने अब ठाकरे भाइयों का गठबंधन बड़ी चुनौती बन गई है। हालांकि 15 जनवरी को होने वाले चुनावों में जनता यह तय करेगी कि मुंबई की कमान किसके पास रहेगी।


