दवा कंपनियों के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नया फरमान जारी किया है। वैसे तो पूरी दुनिया के दवा बाजार पर इसका असर दिखेगा, लेकिन भारत के फार्मा सेक्टर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इसका कारण यह है कि अमेरिका में लगभग 50 प्रतिशत जेनेरिक दवाएं भारत से सप्लाई होती हैं।
ट्रंप ने दवाओं की कीमतों में बड़ी कटौती की घोषणा की है। अमेरिका अब दवाओं की कीमत तय करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
सबसे कम रेट में दवा मिलने का दावा
दवा के रेट में कटौती करने का ऐलान करते हुए ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में लोग अब दुनिया में कहीं भी ली जाने वाली सबसे कम कीमत से ज्यादा दाम नहीं चुकाएंगे। उन्होंने कहा- आपको अब सबसे कम रेट पर अमेरिका में दवा मिलेंगी।
यह घोषणा स्वास्थ्य क्षेत्र और कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में की गई। ट्रंप ने कहा कि दशकों से अमेरिकी नागरिकों को दुनिया में सबसे महंगी दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
कई कंपनियों ने मान ली ट्रंप की बात
उन्होंने कहा कि दवा कंपनियों ने कई प्रमुख दवाओं की कीमतों में भारी कटौती पर सहमति दी है। अमेरिका में कुछ दवाओं की कीमतें तीन सौ से लेकर सात सौ प्रतिशत तक घटाई जाएंगी।
ट्रंप ने यह भी कहा कि विदेशी सरकारों पर दवाओं की कीमतें कम करने का दबाव बनाने के लिए अमेरिका टैरिफ का इस्तेमाल करेगा। उन्होंने दावा किया कि जल्द ही अमेरिका में दवाओं की कीमतें विकसित देशों में सबसे कम स्तर पर होंगी।
अमेरिका में बढ़ेगा दवाओं का निर्माण
ट्रंप ने कहा कि इस नीति से अमेरिका में ही दवा बनाने वालों की संख्या बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कई कंपनियां अमेरिका आ रही हैं और वहां कारखाने लगा रही हैं। इसके साथ ट्रंप ने चेतावनी भी दी है।
उन्होने कहा कि अगर कंपनियों ने नियम नहीं माने तो उन पर भारी टैरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप के अनुसार अगले साल से दवाओं की कीमतें तेजी से गिरनी शुरू होंगी।
कैसे भारत पर पड़ेगा असर?
भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का एक बड़ा उत्पादक है। यह अमेरिका को सस्ती दवाओं की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देशों में शामिल है। खासकर लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों की दवाओं के लिए भारत यूएस में एक प्रमुख सप्लायर की भूमिका निभाता रहा है।
माना जाता है कि भारत में दवाओं की कीमतें दुनिया में सबसे कम है। अमेरिकी बाजार भारत के दवा उद्योग के लिए बेहद अहम है। भारी मात्रा में यहां से दवाएं अमेरिका में सप्लाई होती हैं। अब रेट कम करने की घोषणा के बाद बचत पर असर पड़ेगा। ऐसे में कई एक्सपोर्ट्स अपनी दवा अमेरिका भेजने से पीछे हट सकते हैं।
बता दें कि अमेरिका में दवाओं की ऊंची कीमतों को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। दवा कंपनियां कहती हैं कि वे ऊंची कीमतें इसलिए रखती हैं ताकि उस पैसे को रिसर्च में इस्तेमाल किया जा सके। वहीं, दूसरी ओर लोग कहते हैं कि इन महंगी दवाओं का सारा बोझ आम जनता की जेब पर पड़ता है।


