ज्ञान की प्राचीन भूमि नालंदा में आयोजित हो रहे साहित्य महोत्सव का समापन आज होगा। इस अंतिम दिवस पर देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, विचारक और सांस्कृतिक विमर्शकार भारत की समृद्ध साहित्यिक परंपरा, सांस्कृतिक विरासत और समकालीन सामाजिक कथाओं पर अपने विचार रखेंगे। सुबह 10 बजे से प्रारंभ होने वाले विभिन्न सत्रों में भारतीय संस्कृति के विविध आयामों पर गहन चर्चा होगी। राजगीर कन्वेंशन सेंटर में आयोजित इस समारोह का उद्देश्य नालंदा की उस महान परंपरा को पुनर्जीवित करना है, जो सदियों से ज्ञान और विचारों का केंद्र रही है। इस साल के महोत्सव की विशेष बात यह रही है कि इसमें न केवल साहित्य बल्कि इतिहास, पुरातत्व, भाषाविज्ञान और सामाजिक समावेशन जैसे विषयों को भी समान महत्व दिया गया है। कला और संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण समापन दिवस पर चार विशिष्ट वक्ता अपने अनुभव और ज्ञान साझा करेंगे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी भारतीय सांस्कृतिक विमर्श पर अपने विचार रखेंगे। एक विद्वान और लेखक के रूप में उनका योगदान भारतीय कला और संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। पुरातत्व के क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित डॉ. के. के. मोहम्मद भी इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) के रूप में उन्होंने देश की धरोहर संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका सत्र भारत की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और उनके समकालीन महत्व पर केंद्रित रहेगा। राष्ट्रीय भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान रखने वाली डॉ. सरिता बुडहू सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत के संरक्षण पर अपने विचार व्यक्त करेंगी। एक लेखक और वक्ता के रूप में उनका काम भारतीय साहित्य की बहुआयामी पहचान को स्थापित करने में सहायक रहा है। प्रमुख ट्रांसजेंडर आवाजों में से एक इस साल के महोत्सव की सबसे उल्लेखनीय उपस्थिति विजयराजमल्लिका की रहेगी, जो मलयालम साहित्य में पहली प्रमुख ट्रांसजेंडर आवाजों में से एक हैं। एक कवयित्री, लेखक, कार्यकर्ता और शिक्षक के रूप में उन्होंने ‘दैवतिंते मकल’ और अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं के माध्यम से समाज में समावेशिता का संदेश दिया है। उनकी उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि आधुनिक भारतीय साहित्य विविधता को अपनाते हुए हर आवाज़ को स्थान दे रहा है। आयोजकों का मानना है कि यह महोत्सव केवल एक साहित्यिक आयोजन नहीं, बल्कि नालंदा की उस गौरवशाली परंपरा को पुर्नस्थापित करने का प्रयास है, जहां विश्व भर से ज्ञान पिपासु आते थे। पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की तरह ही यह महोत्सव भी विचारों के आदान-प्रदान, बहुलतावादी दृष्टिकोण और ज्ञान के प्रसार का माध्यम बन रहा है। विभिन्न सत्रों में भारत की भाषाई विविधता, क्षेत्रीय साहित्य की समृद्धि, सांस्कृतिक स्मृति के संरक्षण और आधुनिक पहचान की कथाओं पर गहन विमर्श होगा। ये चर्चाएं न केवल अतीत की धरोहर को याद करेंगी, बल्कि भविष्य के लिए एक सांस्कृतिक मार्गदर्शन भी प्रदान करेंगी। ज्ञान की प्राचीन भूमि नालंदा में आयोजित हो रहे साहित्य महोत्सव का समापन आज होगा। इस अंतिम दिवस पर देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, विचारक और सांस्कृतिक विमर्शकार भारत की समृद्ध साहित्यिक परंपरा, सांस्कृतिक विरासत और समकालीन सामाजिक कथाओं पर अपने विचार रखेंगे। सुबह 10 बजे से प्रारंभ होने वाले विभिन्न सत्रों में भारतीय संस्कृति के विविध आयामों पर गहन चर्चा होगी। राजगीर कन्वेंशन सेंटर में आयोजित इस समारोह का उद्देश्य नालंदा की उस महान परंपरा को पुनर्जीवित करना है, जो सदियों से ज्ञान और विचारों का केंद्र रही है। इस साल के महोत्सव की विशेष बात यह रही है कि इसमें न केवल साहित्य बल्कि इतिहास, पुरातत्व, भाषाविज्ञान और सामाजिक समावेशन जैसे विषयों को भी समान महत्व दिया गया है। कला और संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण समापन दिवस पर चार विशिष्ट वक्ता अपने अनुभव और ज्ञान साझा करेंगे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी भारतीय सांस्कृतिक विमर्श पर अपने विचार रखेंगे। एक विद्वान और लेखक के रूप में उनका योगदान भारतीय कला और संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। पुरातत्व के क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित डॉ. के. के. मोहम्मद भी इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) के रूप में उन्होंने देश की धरोहर संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका सत्र भारत की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और उनके समकालीन महत्व पर केंद्रित रहेगा। राष्ट्रीय भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान रखने वाली डॉ. सरिता बुडहू सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत के संरक्षण पर अपने विचार व्यक्त करेंगी। एक लेखक और वक्ता के रूप में उनका काम भारतीय साहित्य की बहुआयामी पहचान को स्थापित करने में सहायक रहा है। प्रमुख ट्रांसजेंडर आवाजों में से एक इस साल के महोत्सव की सबसे उल्लेखनीय उपस्थिति विजयराजमल्लिका की रहेगी, जो मलयालम साहित्य में पहली प्रमुख ट्रांसजेंडर आवाजों में से एक हैं। एक कवयित्री, लेखक, कार्यकर्ता और शिक्षक के रूप में उन्होंने ‘दैवतिंते मकल’ और अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं के माध्यम से समाज में समावेशिता का संदेश दिया है। उनकी उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि आधुनिक भारतीय साहित्य विविधता को अपनाते हुए हर आवाज़ को स्थान दे रहा है। आयोजकों का मानना है कि यह महोत्सव केवल एक साहित्यिक आयोजन नहीं, बल्कि नालंदा की उस गौरवशाली परंपरा को पुर्नस्थापित करने का प्रयास है, जहां विश्व भर से ज्ञान पिपासु आते थे। पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की तरह ही यह महोत्सव भी विचारों के आदान-प्रदान, बहुलतावादी दृष्टिकोण और ज्ञान के प्रसार का माध्यम बन रहा है। विभिन्न सत्रों में भारत की भाषाई विविधता, क्षेत्रीय साहित्य की समृद्धि, सांस्कृतिक स्मृति के संरक्षण और आधुनिक पहचान की कथाओं पर गहन विमर्श होगा। ये चर्चाएं न केवल अतीत की धरोहर को याद करेंगी, बल्कि भविष्य के लिए एक सांस्कृतिक मार्गदर्शन भी प्रदान करेंगी।


