विधानसभा चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के लिए चुनाव आयोग ने एक बार फिर साफ संदेश दिया है। चुनावी खर्च में जरा सी भी लापरवाही या गड़बड़ी उन्हें महंगी पड़ सकती है। व्यय प्रेक्षकों ने सभी उम्मीदवारों और उनके चुनाव एजेंटों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि खर्च का पूरा हिसाब न देने पर तीन साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं। हर पैसे का हिसाब जरूरी व्यय प्रेक्षक आईआरएस नेहा और वीजी शेषाद्री ने प्रत्याशियों को स्पष्ट किया कि नामांकन की तिथि से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने तक के हर खर्च का विस्तृत ब्योरा रखना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि यह कोई औपचारिकता नहीं है। चुनाव आयोग इस मामले में बेहद संजीदा है और किसी भी तरह की लापरवाही या गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अलग बैंक खाता और चेक से भुगतान अनिवार्य चुनावी खर्च की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए हर उम्मीदवार को चुनाव के लिए एक अलग बैंक खाता खोलना होगा। सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि 10 हजार रुपए से अधिक का कोई भी भुगतान केवल अकाउंट-पेई चेक के माध्यम से ही किया जा सकता है। नकद लेन-देन की सीमा को बेहद सीमित रखा गया है ताकि काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाया जा सके। व्यय प्रेक्षकों ने स्पष्ट किया कि यह व्यवस्था चुनावों में धन-बल के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाई गई है। उन्होंने कहा कि बड़े भुगतान को बैंकिंग चैनल से जोड़कर पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जा रहा है। तीन रंग का रजिस्टर: खर्च की डायरी चुनावी खर्च के हिसाब-किताब के लिए एक अनोखी व्यवस्था की गई है। अधिकारियों ने बताया कि प्रत्याशियों को तीन हिस्सों वाला एक विशेष रजिस्टर मिलेगा, जिसमें तीन अलग-अलग रंग के पन्ने होंगे। सफेद पेज- इसमें रोजमर्रा के दैनिक खर्चों का पूरा ब्यौरा दर्ज करना होगा। चाहे वह पोस्टर छपवाने का खर्च हो या सभा में पानी की व्यवस्था का। गुलाबी पेज- इसमें नकद लेन-देन का पूरा हिसाब रखना होगा। हर नकद भुगतान की रसीद और विवरण इस हिस्से में दर्ज करना अनिवार्य है। पीला पेज- इसमें बैंक के माध्यम से होने वाले सभी खर्चों का लेखा-जोखा रखना होगा, जिसमें चेक नंबर और भुगतान का उद्देश्य भी शामिल होगा। यह रजिस्टर नामांकन दाखिल करने की तारीख से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने के दिन तक रोजाना अपडेट होना चाहिए। एक दिन की भी चूक गंभीर परिणाम दे सकती है। 30 दिन का अल्टीमेटम नोडल पदाधिकारी सुजीत कुमार मिश्रा ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 78 का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव परिणाम घोषित होने के 30 दिनों के भीतर खर्च का पूरा लेखा-जोखा जिला निर्वाचन पदाधिकारी के पास जमा करना अनिवार्य है। यह कोई लचीली समय-सीमा नहीं है। 31वें दिन भी ब्योरा जमा करने पर कार्रवाई हो सकती है। धारा 10ए के प्रावधानों के तहत इस नियम का पालन न करने वाले या गलत जानकारी देने वाले उम्मीदवार को तीन साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यह अयोग्यता किसी भी स्तर के चुनाव – विधानसभा, लोकसभा या स्थानीय निकाय के लिए लागू होगी। आखिरी मौके की व्यवस्था हालांकि, चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों को सुधार का एक अवसर देने की भी व्यवस्था की है। अधिकारियों ने बताया कि परिणाम घोषित होने के 26वें दिन एक लेखा समाधान बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में उम्मीदवारों को अपने खर्च के ब्योरे में किसी भी तरह की त्रुटि या छूट को सुधारने का अंतिम मौका मिलेगा। विधानसभा चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के लिए चुनाव आयोग ने एक बार फिर साफ संदेश दिया है। चुनावी खर्च में जरा सी भी लापरवाही या गड़बड़ी उन्हें महंगी पड़ सकती है। व्यय प्रेक्षकों ने सभी उम्मीदवारों और उनके चुनाव एजेंटों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि खर्च का पूरा हिसाब न देने पर तीन साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं। हर पैसे का हिसाब जरूरी व्यय प्रेक्षक आईआरएस नेहा और वीजी शेषाद्री ने प्रत्याशियों को स्पष्ट किया कि नामांकन की तिथि से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने तक के हर खर्च का विस्तृत ब्योरा रखना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि यह कोई औपचारिकता नहीं है। चुनाव आयोग इस मामले में बेहद संजीदा है और किसी भी तरह की लापरवाही या गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अलग बैंक खाता और चेक से भुगतान अनिवार्य चुनावी खर्च की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए हर उम्मीदवार को चुनाव के लिए एक अलग बैंक खाता खोलना होगा। सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि 10 हजार रुपए से अधिक का कोई भी भुगतान केवल अकाउंट-पेई चेक के माध्यम से ही किया जा सकता है। नकद लेन-देन की सीमा को बेहद सीमित रखा गया है ताकि काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाया जा सके। व्यय प्रेक्षकों ने स्पष्ट किया कि यह व्यवस्था चुनावों में धन-बल के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाई गई है। उन्होंने कहा कि बड़े भुगतान को बैंकिंग चैनल से जोड़कर पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जा रहा है। तीन रंग का रजिस्टर: खर्च की डायरी चुनावी खर्च के हिसाब-किताब के लिए एक अनोखी व्यवस्था की गई है। अधिकारियों ने बताया कि प्रत्याशियों को तीन हिस्सों वाला एक विशेष रजिस्टर मिलेगा, जिसमें तीन अलग-अलग रंग के पन्ने होंगे। सफेद पेज- इसमें रोजमर्रा के दैनिक खर्चों का पूरा ब्यौरा दर्ज करना होगा। चाहे वह पोस्टर छपवाने का खर्च हो या सभा में पानी की व्यवस्था का। गुलाबी पेज- इसमें नकद लेन-देन का पूरा हिसाब रखना होगा। हर नकद भुगतान की रसीद और विवरण इस हिस्से में दर्ज करना अनिवार्य है। पीला पेज- इसमें बैंक के माध्यम से होने वाले सभी खर्चों का लेखा-जोखा रखना होगा, जिसमें चेक नंबर और भुगतान का उद्देश्य भी शामिल होगा। यह रजिस्टर नामांकन दाखिल करने की तारीख से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने के दिन तक रोजाना अपडेट होना चाहिए। एक दिन की भी चूक गंभीर परिणाम दे सकती है। 30 दिन का अल्टीमेटम नोडल पदाधिकारी सुजीत कुमार मिश्रा ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 78 का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव परिणाम घोषित होने के 30 दिनों के भीतर खर्च का पूरा लेखा-जोखा जिला निर्वाचन पदाधिकारी के पास जमा करना अनिवार्य है। यह कोई लचीली समय-सीमा नहीं है। 31वें दिन भी ब्योरा जमा करने पर कार्रवाई हो सकती है। धारा 10ए के प्रावधानों के तहत इस नियम का पालन न करने वाले या गलत जानकारी देने वाले उम्मीदवार को तीन साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यह अयोग्यता किसी भी स्तर के चुनाव – विधानसभा, लोकसभा या स्थानीय निकाय के लिए लागू होगी। आखिरी मौके की व्यवस्था हालांकि, चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों को सुधार का एक अवसर देने की भी व्यवस्था की है। अधिकारियों ने बताया कि परिणाम घोषित होने के 26वें दिन एक लेखा समाधान बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में उम्मीदवारों को अपने खर्च के ब्योरे में किसी भी तरह की त्रुटि या छूट को सुधारने का अंतिम मौका मिलेगा।


