1970 का जुलाई महीना था, जब सुपौल की रहने वाली 18 साल की शारदा सिन्हा की शादी बेगूसराय के सीहमा गांव में ब्रज किशोर सिन्हा से हुई थी। उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था की यह बहू एक दिन संगीत जगत के पटल पर छा जाएगी। आज शारदा सिन्हा लोगों के बीच नहीं हैं। 2024 में छठ के नहाय-खाय के दिन 5 नवंबर को इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। अभी छठ महापर्व चल रहा है तो हर तरफ शारदा सिन्हा के ही गीत गाए-बजाए जा रहे हैं। शादी के बाद शारदा सिन्हा कुछ दिन सीहमा में रही और फिर आगे की शिक्षा लेने के लिए बाहर चली गई। 1974 में उन्होंने पहली बार गाना गया था तो गाना हिट नहीं हुआ। 1978 में उन्होंने एचएमवी के लिए जब छठ का गीत ‘ऊगो हो सूरज देव’ गया तो फिर छा गई। इस साल अब जब हर ओर छठ के गीत बज रहे हैं तो दैनिक भास्कर की टीम उनके ससुराल सीहमा पहुंची। पढ़ें पूरी रिपोर्ट… शारदा सिन्हा ने 75 से अधिक गीत गाए शारदा सिन्हा ने एक नहीं, बल्कि 75 से अधिक गीत गाए। उनके छठ और विवाह के गीत ही चर्चित नहीं हुए, बल्कि हिंदी फिल्म मैंने प्यार किया का ‘कहे तोहसे सजना’ भी हिट हुआ था। शारदा सिन्हा के ससुराल की महिलाओं से पता चला कि पिछले साल सीहमा गांव के 350 से ज्यादा घरों में छठ नहीं मनाई गई थी। 100 घरों में तो चूल्हा तक नहीं जला था। शारदा सिन्हा के ससुराल पहुंचते ही हर महिला सिर्फ शारदा सिन्हा का ही गाना गा रही थी। सीहमा के पथला टोल में एक खेत को जोतने के बाद गंगाजल से पवित्र किया गया। जहां महिलाएं सामूहिक रूप से प्रसाद में ठेकुआ और लड्डू बनाने के लिए गेहूं-चावल सुखा रही थी। वहां अलग-अलग समूह में बैठी महिलाएं गीत गा रही थी, वो शारदा सिन्हा का ही था। सोना देवी बताती हैं कि, हम लोग अपने गांव की बहू शारदा सिन्हा को गीत के माध्यम से याद करते हैं। चाहे छठ का समय हो या शादी-विवाह का उनका गीत खूब गाते हैं। हमारे गांव की थी तो हम सबको उन पर काफी गर्व है। शोभा देवी बताती हैं कि, हम सभी लोग पूरी स्वच्छता और निष्ठा के साथ एक जगह पर प्रसाद के लिए गेहूं तैयार करते हैं, यह महत्वपूर्ण त्योहार है। हमको शारदा सिन्हा का गीत याद नहीं है, लेकिन उनका गीत काफी प्रचलित है। हमारे गांव के ही रहने वाली थी, अभी छठ के समय में उनका गीत खूब सुनते हैं। देवरानी बोलीं- जेठानी के गीतों के बिना छठ पर्व अधूरा लगता है बिहार में ही नहीं, देश और विदेश में जहां बिहार के लोग रहते हैं, वहां शारदा सिन्हा के गाने जरूर बजते हैं। रिश्ते में शारदा सिन्हा की देवरानी लगने वाली नीलम देवी बताती है कि, शारदा जी विश्व की बहू है और हमें उन पर गर्व है। शारदा सिन्हा के देवर जय किशोर सिंह ने बताया कि ‘शारदा सिन्हा छठ के समय सीहमा गांव जरूर आती थीं। बीच-बीच में भी कभी मन होता था, आ जाती थीं।’ गोतिया राघव कुमार ने बताया कि, निश्चित रूप से पिछले साल शारदा सिन्हा के निधन के बाद बिहार और देश ही नहीं, छठ गीत सुनने वाले सभी लोग मायूस हो गए थे, लेकिन उनके गाए गाने आज भी छठ घाटों और छठ व्रतियों के घर बज रहे हैं। गांव के लोगों के घरों में इस साल छठ मनाया जा रहा है। राघव कुमार बताते हैं कि, हमारे गांव सीहमा के ही पथला टोल में प्रसाद की तैयारी सामूहिक रूप किया जाता है। छठ शुद्धता का प्रतीक है और अनुशासन का सम्मान करना सिखाती है। ऐसे में हमारे यहां की सभी माता-बहनें एकजुट होकर प्रसाद के लिए गेहूं और चावल तैयार करती हैं। वे शारदा सिन्हा के गीतों को गुनगुनाते रहती हैं। 2025 में मरणोपरांत पद्मविभूषण से किया गया था सम्मानित 1991 में पद्मश्री, 2001 में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2018 में पद्मभूषण से और 2025 में (मरणोपरांत) पद्मविभूषण से सम्मानित बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के गीत जहां कहीं भी छठ होता है, वहां पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ गाए जाते हैं। चाहे वह भारत का कोई हिस्सा हो या विदेशों का, सब जगह उनके गीत ‘केलवा के पात पर उगलन सुरुज देव, मारबउ रे सुगवा धनुष से, आठ ही काठ के कोठरिया हो दीनानाथ’ धूम मचाती है। जब छठ के समय गीतों का इतना प्रचलन नहीं था, सिर्फ विंध्यवासिनी देवी एक-दो गीत सुनने को मिलते थे, तो 1978 में शारदा सिन्हा ने पहली बार ‘उगो हो सूरज देव भइल अरघ केर बेर’ छठ गीत रिकॉर्ड किया था। एचएमवी कंपनी का वह कैसेट इतना छा गया कि खुद कंपनी वाले लगातार गीत रिकॉर्ड करने का अनुरोध करने लगे। कोरोना जागरूकता के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने शेयर किया था सॉन्ग जब कोरोना काल चल रहा था तो उस समय भी शारदा सिन्हा ने छठ के अवसर पर एक गीत ‘अइसन विपतिया आईल व्रत लगाईं पार’ गाया था। जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना जागरुकता के तौर पर खूब शेयर किया। आज छठ में बजाए जाने वाले हर दस गीत में आठ शारदा सिन्हा के ही बज रहे हैं। शारदा सिन्हा के गाए पुराने गीत लगातार बज रहे हैं, बल्कि समय-समय पर वह नया गीत गाती रहती थी। 2024 में अपने निधन से एक दिन पहले ही गाया था ‘दुखवा मिटाई छठी मैया’। शारदा सिन्हा के गीत में न केवल छठ की शुचिता, सभ्यता और मर्यादा दिखाई देती है, बल्कि, दिखाया जाता है कि व्रती अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कितनी शालीनता और आस्था के साथ यह पर्व करते हैं। 24 अक्टूबर को पीएम मोदी ने जनसभा में शारदा सिन्हा को किया था याद 24 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बेगूसराय आए तो उन्होंने शारदा सिन्हा को नमन करते हुए कहा था कि वह गीतों के माध्यम से अमर हो गई हैं। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि सौभाग्य से मैं छठ महापर्व की बेला में बेगूसराय के परिवार जनों के बीच हूं। छठी मैया का आशीर्वाद बिहार पर और हम सभी पर इसी तरह से बना रहे। जब छठी मैया के पूजा की बात आती है तो शारदा सिन्हा जी को याद करना स्वाभाविक है। बेगूसराय की बहू शारदा सिन्हा जी को पहले पद्म भूषण मिला और हमारी सरकार को इसी वर्ष उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित करने का अवसर मिला है। 1970 का जुलाई महीना था, जब सुपौल की रहने वाली 18 साल की शारदा सिन्हा की शादी बेगूसराय के सीहमा गांव में ब्रज किशोर सिन्हा से हुई थी। उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था की यह बहू एक दिन संगीत जगत के पटल पर छा जाएगी। आज शारदा सिन्हा लोगों के बीच नहीं हैं। 2024 में छठ के नहाय-खाय के दिन 5 नवंबर को इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। अभी छठ महापर्व चल रहा है तो हर तरफ शारदा सिन्हा के ही गीत गाए-बजाए जा रहे हैं। शादी के बाद शारदा सिन्हा कुछ दिन सीहमा में रही और फिर आगे की शिक्षा लेने के लिए बाहर चली गई। 1974 में उन्होंने पहली बार गाना गया था तो गाना हिट नहीं हुआ। 1978 में उन्होंने एचएमवी के लिए जब छठ का गीत ‘ऊगो हो सूरज देव’ गया तो फिर छा गई। इस साल अब जब हर ओर छठ के गीत बज रहे हैं तो दैनिक भास्कर की टीम उनके ससुराल सीहमा पहुंची। पढ़ें पूरी रिपोर्ट… शारदा सिन्हा ने 75 से अधिक गीत गाए शारदा सिन्हा ने एक नहीं, बल्कि 75 से अधिक गीत गाए। उनके छठ और विवाह के गीत ही चर्चित नहीं हुए, बल्कि हिंदी फिल्म मैंने प्यार किया का ‘कहे तोहसे सजना’ भी हिट हुआ था। शारदा सिन्हा के ससुराल की महिलाओं से पता चला कि पिछले साल सीहमा गांव के 350 से ज्यादा घरों में छठ नहीं मनाई गई थी। 100 घरों में तो चूल्हा तक नहीं जला था। शारदा सिन्हा के ससुराल पहुंचते ही हर महिला सिर्फ शारदा सिन्हा का ही गाना गा रही थी। सीहमा के पथला टोल में एक खेत को जोतने के बाद गंगाजल से पवित्र किया गया। जहां महिलाएं सामूहिक रूप से प्रसाद में ठेकुआ और लड्डू बनाने के लिए गेहूं-चावल सुखा रही थी। वहां अलग-अलग समूह में बैठी महिलाएं गीत गा रही थी, वो शारदा सिन्हा का ही था। सोना देवी बताती हैं कि, हम लोग अपने गांव की बहू शारदा सिन्हा को गीत के माध्यम से याद करते हैं। चाहे छठ का समय हो या शादी-विवाह का उनका गीत खूब गाते हैं। हमारे गांव की थी तो हम सबको उन पर काफी गर्व है। शोभा देवी बताती हैं कि, हम सभी लोग पूरी स्वच्छता और निष्ठा के साथ एक जगह पर प्रसाद के लिए गेहूं तैयार करते हैं, यह महत्वपूर्ण त्योहार है। हमको शारदा सिन्हा का गीत याद नहीं है, लेकिन उनका गीत काफी प्रचलित है। हमारे गांव के ही रहने वाली थी, अभी छठ के समय में उनका गीत खूब सुनते हैं। देवरानी बोलीं- जेठानी के गीतों के बिना छठ पर्व अधूरा लगता है बिहार में ही नहीं, देश और विदेश में जहां बिहार के लोग रहते हैं, वहां शारदा सिन्हा के गाने जरूर बजते हैं। रिश्ते में शारदा सिन्हा की देवरानी लगने वाली नीलम देवी बताती है कि, शारदा जी विश्व की बहू है और हमें उन पर गर्व है। शारदा सिन्हा के देवर जय किशोर सिंह ने बताया कि ‘शारदा सिन्हा छठ के समय सीहमा गांव जरूर आती थीं। बीच-बीच में भी कभी मन होता था, आ जाती थीं।’ गोतिया राघव कुमार ने बताया कि, निश्चित रूप से पिछले साल शारदा सिन्हा के निधन के बाद बिहार और देश ही नहीं, छठ गीत सुनने वाले सभी लोग मायूस हो गए थे, लेकिन उनके गाए गाने आज भी छठ घाटों और छठ व्रतियों के घर बज रहे हैं। गांव के लोगों के घरों में इस साल छठ मनाया जा रहा है। राघव कुमार बताते हैं कि, हमारे गांव सीहमा के ही पथला टोल में प्रसाद की तैयारी सामूहिक रूप किया जाता है। छठ शुद्धता का प्रतीक है और अनुशासन का सम्मान करना सिखाती है। ऐसे में हमारे यहां की सभी माता-बहनें एकजुट होकर प्रसाद के लिए गेहूं और चावल तैयार करती हैं। वे शारदा सिन्हा के गीतों को गुनगुनाते रहती हैं। 2025 में मरणोपरांत पद्मविभूषण से किया गया था सम्मानित 1991 में पद्मश्री, 2001 में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2018 में पद्मभूषण से और 2025 में (मरणोपरांत) पद्मविभूषण से सम्मानित बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के गीत जहां कहीं भी छठ होता है, वहां पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ गाए जाते हैं। चाहे वह भारत का कोई हिस्सा हो या विदेशों का, सब जगह उनके गीत ‘केलवा के पात पर उगलन सुरुज देव, मारबउ रे सुगवा धनुष से, आठ ही काठ के कोठरिया हो दीनानाथ’ धूम मचाती है। जब छठ के समय गीतों का इतना प्रचलन नहीं था, सिर्फ विंध्यवासिनी देवी एक-दो गीत सुनने को मिलते थे, तो 1978 में शारदा सिन्हा ने पहली बार ‘उगो हो सूरज देव भइल अरघ केर बेर’ छठ गीत रिकॉर्ड किया था। एचएमवी कंपनी का वह कैसेट इतना छा गया कि खुद कंपनी वाले लगातार गीत रिकॉर्ड करने का अनुरोध करने लगे। कोरोना जागरूकता के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने शेयर किया था सॉन्ग जब कोरोना काल चल रहा था तो उस समय भी शारदा सिन्हा ने छठ के अवसर पर एक गीत ‘अइसन विपतिया आईल व्रत लगाईं पार’ गाया था। जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना जागरुकता के तौर पर खूब शेयर किया। आज छठ में बजाए जाने वाले हर दस गीत में आठ शारदा सिन्हा के ही बज रहे हैं। शारदा सिन्हा के गाए पुराने गीत लगातार बज रहे हैं, बल्कि समय-समय पर वह नया गीत गाती रहती थी। 2024 में अपने निधन से एक दिन पहले ही गाया था ‘दुखवा मिटाई छठी मैया’। शारदा सिन्हा के गीत में न केवल छठ की शुचिता, सभ्यता और मर्यादा दिखाई देती है, बल्कि, दिखाया जाता है कि व्रती अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कितनी शालीनता और आस्था के साथ यह पर्व करते हैं। 24 अक्टूबर को पीएम मोदी ने जनसभा में शारदा सिन्हा को किया था याद 24 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बेगूसराय आए तो उन्होंने शारदा सिन्हा को नमन करते हुए कहा था कि वह गीतों के माध्यम से अमर हो गई हैं। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि सौभाग्य से मैं छठ महापर्व की बेला में बेगूसराय के परिवार जनों के बीच हूं। छठी मैया का आशीर्वाद बिहार पर और हम सभी पर इसी तरह से बना रहे। जब छठी मैया के पूजा की बात आती है तो शारदा सिन्हा जी को याद करना स्वाभाविक है। बेगूसराय की बहू शारदा सिन्हा जी को पहले पद्म भूषण मिला और हमारी सरकार को इसी वर्ष उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित करने का अवसर मिला है।


