नालंदा में प्रवासी पक्षियों के निवास स्थान पर मंडराता संकट:वैज्ञानिक प्रबंधन के अभाव और मानवीय गतिविधियों से खतरे में जलाशय, हजारों किमी तय कर पहुंचे पंक्षी

नालंदा में प्रवासी पक्षियों के निवास स्थान पर मंडराता संकट:वैज्ञानिक प्रबंधन के अभाव और मानवीय गतिविधियों से खतरे में जलाशय, हजारों किमी तय कर पहुंचे पंक्षी

सर्दियों की दस्तक के साथ ही नालंदा जिले के जलाशयों में विदेशी प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। रूस, मंगोलिया, चीन, तिब्बत, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और हिमालयी क्षेत्रों से हजारों किलोमीटर की यात्रा तय कर ये पंछी यहां पहुंच रहे हैं, लेकिन इस बार पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय यह है कि जलाशयों की दुर्दशा के कारण इन अतिथि पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है। नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन रहे गिद्धि और पुष्पकर्णी जैसे ऐतिहासिक जलाशय आज उपेक्षा के शिकार हैं। नूरसराय प्रखंड के बेगमपुर स्थित गिद्धि जलाशय जंगली घास और पौधों से पूरी तरह ग्रसित हो चुका है। जलस्तर में लगातार कमी के कारण यहां स्थानीय पक्षियों की संख्या भी घट गई है। पुष्पकर्णी जलाशय की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। यहां महज तीन सौ छोटी सिल्ही, कुछ खैरा बगुले और अंधा बगुले ही दिखाई दे रहे हैं। गिद्धि जलाशय में हालांकि प्रवासी पक्षियों का आगमन हो चुका है, लेकिन पंचाने नदी में केवल राजहंस ही नजर आ रहे हैं। विविध प्रजातियों का आगमन इस बार देखे जा रहे प्रवासी पक्षियों में गडवाल (मैल), नॉर्दन शोवलर (सांखर), नॉर्दन पिनटेल, कामन कूट (सरार), रेड क्रेस्टेड पोचार्ड (लालसर), कॉमन पोचार्ड, फेरुजीनस पोचार्ड, यूरेशियन विजन, बार हेडेड गिज, कॉटन टील (गिरी), ग्रीनिश वार्बलर, टैगा फ्लाईकैचर और बलायथ्स रिड वार्बलर प्रमुख हैं। स्थानीय जलीय पक्षियों में जामुनी जलमुर्गी, जल पीपी, जलमोर, सामान्य जलमुर्गी और सफेद भौं खंजन शामिल हैं। मछली पालन पट्टा, संरक्षण में सबसे बड़ी बाधा पर्यावरणविद राहुल कुमार का कहना है कि इन महत्वपूर्ण आर्द्र भूमियों के प्रबंधन में मछली पालन का पट्टा सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। मछली पालन से पक्षियों के आवास में कई तरह के बदलाव हो रहे हैं, जिससे आर्द्र भूमि को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। विशेष चिंता की बात यह है कि पट्टाधारी खरपतवार हटाने के लिए रासायनिक खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पक्षियों के आवास पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा मछली पट्टाधारी द्वारा पक्षियों के शिकार की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। पर्यावरणविदों की चेतावनी बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान और मगध नेचर कंजर्वशन सोसाइटी की टीम नियमित रूप से इन जलाशयों का निरीक्षण कर रही है। टीम के सदस्यों ने बताया कि मानवीय गतिविधियों में वृद्धि के कारण संरक्षण कार्यक्रम में कई तरह की बाधाएं आ रही हैं। पर्यावरणविदों ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि तत्काल आवश्यक कार्रवाई नहीं की गई तो हमारे जीवंत पोखर और तालाब पक्षी विहीन हो जाएंगे। वैज्ञानिक प्रबंधन के अभाव में पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है। नालंदा जिले में छह प्रमुख पक्षी विहार स्थल हैं गिद्धि लेक, नूरसराय- पुष्करणी लेक, सिलाव- पावापुरी जलाशय, पावापुरी- गिरियक डैम, राजगीर- गिरियक जलाशय, गिरियक- पंचाने नदी। सर्दियों की दस्तक के साथ ही नालंदा जिले के जलाशयों में विदेशी प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। रूस, मंगोलिया, चीन, तिब्बत, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और हिमालयी क्षेत्रों से हजारों किलोमीटर की यात्रा तय कर ये पंछी यहां पहुंच रहे हैं, लेकिन इस बार पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय यह है कि जलाशयों की दुर्दशा के कारण इन अतिथि पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है। नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन रहे गिद्धि और पुष्पकर्णी जैसे ऐतिहासिक जलाशय आज उपेक्षा के शिकार हैं। नूरसराय प्रखंड के बेगमपुर स्थित गिद्धि जलाशय जंगली घास और पौधों से पूरी तरह ग्रसित हो चुका है। जलस्तर में लगातार कमी के कारण यहां स्थानीय पक्षियों की संख्या भी घट गई है। पुष्पकर्णी जलाशय की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। यहां महज तीन सौ छोटी सिल्ही, कुछ खैरा बगुले और अंधा बगुले ही दिखाई दे रहे हैं। गिद्धि जलाशय में हालांकि प्रवासी पक्षियों का आगमन हो चुका है, लेकिन पंचाने नदी में केवल राजहंस ही नजर आ रहे हैं। विविध प्रजातियों का आगमन इस बार देखे जा रहे प्रवासी पक्षियों में गडवाल (मैल), नॉर्दन शोवलर (सांखर), नॉर्दन पिनटेल, कामन कूट (सरार), रेड क्रेस्टेड पोचार्ड (लालसर), कॉमन पोचार्ड, फेरुजीनस पोचार्ड, यूरेशियन विजन, बार हेडेड गिज, कॉटन टील (गिरी), ग्रीनिश वार्बलर, टैगा फ्लाईकैचर और बलायथ्स रिड वार्बलर प्रमुख हैं। स्थानीय जलीय पक्षियों में जामुनी जलमुर्गी, जल पीपी, जलमोर, सामान्य जलमुर्गी और सफेद भौं खंजन शामिल हैं। मछली पालन पट्टा, संरक्षण में सबसे बड़ी बाधा पर्यावरणविद राहुल कुमार का कहना है कि इन महत्वपूर्ण आर्द्र भूमियों के प्रबंधन में मछली पालन का पट्टा सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। मछली पालन से पक्षियों के आवास में कई तरह के बदलाव हो रहे हैं, जिससे आर्द्र भूमि को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। विशेष चिंता की बात यह है कि पट्टाधारी खरपतवार हटाने के लिए रासायनिक खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पक्षियों के आवास पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा मछली पट्टाधारी द्वारा पक्षियों के शिकार की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। पर्यावरणविदों की चेतावनी बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान और मगध नेचर कंजर्वशन सोसाइटी की टीम नियमित रूप से इन जलाशयों का निरीक्षण कर रही है। टीम के सदस्यों ने बताया कि मानवीय गतिविधियों में वृद्धि के कारण संरक्षण कार्यक्रम में कई तरह की बाधाएं आ रही हैं। पर्यावरणविदों ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि तत्काल आवश्यक कार्रवाई नहीं की गई तो हमारे जीवंत पोखर और तालाब पक्षी विहीन हो जाएंगे। वैज्ञानिक प्रबंधन के अभाव में पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है। नालंदा जिले में छह प्रमुख पक्षी विहार स्थल हैं गिद्धि लेक, नूरसराय- पुष्करणी लेक, सिलाव- पावापुरी जलाशय, पावापुरी- गिरियक डैम, राजगीर- गिरियक जलाशय, गिरियक- पंचाने नदी।  

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