‘छोटे सरकार’ की कुर्सी बचाने, मोकामा में उतरी ‘ सरकार’:अनंत के लिए ललन-सम्राट ने क्यों संभाला मोर्चा, सुरक्षाबलों से डरे दुलारचंद के गांववाले

‘छोटे सरकार’ की कुर्सी बचाने, मोकामा में उतरी ‘ सरकार’:अनंत के लिए ललन-सम्राट ने क्यों संभाला मोर्चा, सुरक्षाबलों से डरे दुलारचंद के गांववाले

मोकामा की हवा में इस बार चुनाव का शोर कम, तनाव ज्यादा है। शहर की गलियों से लेकर टाल तक हर चर्चा एक नाम पर शुरू और खत्म होती है वो हैं- अनंत सिंह। जनसुराज समर्थक और आरजेडी नेता दुलारचंद की हत्या के आरोप में जेडीयू प्रत्याशी अनंत कुमार सिंह उर्फ ‘छोटे सरकार’ गिरफ्तार होकर बेऊर जेल में बंद हैं। अनंत सिंह को जिताने के लिए बीजेपी और जेडीयू ने अपने सबसे बड़े सियासी चेहरों को मोकामा की धूल फांकने के लिए उतार दिया है। यूं कहें कि ‘सरकार’ ही अनंत को जिताने के सड़कों पर उतर गई है। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने बाहुबली को जिताने का जिम्मा उठा लिया है। मोकामा का माहौल जानने के लिए भास्कर टीम अनंत सिंह के इलाके में पहुंची। गांव में क्या माहौल है, बाहुबली का चुनाव कैसा चल रहा है? दुलार चंद के गांव के क्या हालात है..? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… छावनी में तब्दील मोकामा, ललन-सम्राट ने संभाला मोर्चा जब हम मोकामा पहुंचे, तो शहर का नजारा बदला हुआ था। चौक-चौराहों पर पुलिस और सुरक्षाबलों की भारी तैनाती है। अनंत सिंह की गिरफ्तारी और दुलारचंद की हत्या के बाद फैले तनाव को देखते हुए पूरे इलाके को मानो छावनी में बदल दिया गया है। हवा में तैरती अफवाहों के बीच, एनडीए ने इस चुनाव को अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। अनंत सिंह के जेल जाने के बाद केंद्रीय मंत्री और जदयू के बड़े नेता ललन सिंह ने मोकामा में डेरा डाल दिया है। सोमवार को एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा, ‘मोकामा टाल की घटना साजिश है। एनडीए प्रत्याशी अनंत सिंह को फंसाया गया है। जो भी इस साजिश में शामिल होगा, उसका खुलासा जल्द प्रशासन करेगा।’ ललन सिंह ने साफ कर दिया है कि लड़ाई अब अनंत सिंह की नहीं, बल्कि एनडीए के सम्मान की है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, ‘हम सभी का दायित्व है कि एक-एक कार्यकर्ता अनंत सिंह बनकर भारी बहुमत से जीत हासिल करे। चुनाव तक वह मोकामा में ही रहेंगे।’ ललन सिंह का इस तरह मोकामा में कैंप करना ये दिखाता है कि जेडीयू इस सीट को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के फायरब्रांड नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी अनंत सिंह के समर्थन में रोड शो किया। वह खुली जीप में सवार हुए और बरहपुर से मोकामा तिराहा चौक तक गए। ‘विधायक का नाम ही काफी है’ अनंत सिंह के चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे उनके समर्थकों में अपने नेता के जेल जाने का दुख तो है, लेकिन उनकी जीत को लेकर शक नहीं। अनंत के साथ रहने वाले पंकज सिंह ने कहा, ‘विधायक का नाम ही काफी है। अनंत सिंह छोटे सरकार, ये जनता की दी हुई आवाज है। उनके ना रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।’ दुलारचंद हत्याकांड को विरोधियों की साजिश बताते हुए पंकज ने कहा, ‘इस घटना की साजिश पहले रची गई थी। अनंत सिंह पर हमला करने का प्लान था। वो 10 गाड़ी लेकर चलते थे। उस दिन 50 गाड़ी थी। बाहर से बदमाशों को बुलाकर हमला करवाया।’ पंकज सिंह ने कहा, ‘एक वीडियो में दिखा है कि जिनकी हत्या हुई वो काफिले में पीछ मौजूद गाड़ियों पर पत्थर मार रहे थे। ऐसे में इस घटना में विधायक का नाम जोड़ना जनता तक नहीं पहुंच रहा है।’ अनंत सिंह के समर्थक जय प्रकाश ने कहा, ‘जब-जब वे जेल जाते हैं, उनकी जीत तय हो जाती है। इस बार कार्यकर्ताओं का जोश चौगुना है। हर बार चुनाव में साजिश कर उन्हें जेल भेजा जाता है।’ अनंत सिंह को समर्थन सिर्फ उनके पारंपरिक वोटरों से नहीं मिल रहा। हमें जदयू ऑफिस के बाहर जनसुराज के कार्यकर्ता हरेराम कुमार मिले। उन्होंने जो बताया, वो मोकामा की राजनीति का एक और दिलचस्प पहलू दिखाता है। हरेराम ने कहा, ‘मैंने जनसुराज का झंडा उठाया है। आज मोकामा की स्थिति बदली हुई है। जनसुराज का प्रत्याशी पार्टी के कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं ले रहा है। प्रशांत किशोर ने कहा था कि गलत कैंडिडेट देते हैं तो आप खुद से अच्छे कैंडिडेट को समर्थन दें। मैं अनंत सिंह को वोट दूंगा। मोकामा में जन सुराज के करीब 500 कार्यकर्ताओं को जानता हूं जो अब अनंत सिंह का समर्थन कर रहे हैं।’ ‘भूमिहारों को गाली’ ने मोड़ा मोकामा का चुनावी रुख अनंत सिंह की गिरफ्तारी, दुलारचंद की हत्या… इन सबसे बड़ा मुद्दा जो मोकामा की फिजाओं में तैर रहा है, वो है ‘भूमिहारों को गाली’। इस एक घटना ने पूरे चुनाव का रुख मोड़ दिया है। मोकामा के सीनियर जर्नलिस्ट सत्यनारायण चतुर्वेदी ने बताया, ‘माहौल अनंत सिंह के पक्ष में हो गया है। दुलारचंद की अंतिम यात्रा के समय राजद प्रत्याशी बीना देवी उनके ट्रैक्टर पर सवार थीं। लोग खुले आम भूमियार कास्ट को गाली दे रहे थे। इसका वीडियो वायरल है। इसका असर ये हुआ कि भूमिहार समाज गोलबंद हो गया है।’ इससे साफ है कि बीजेपी और जेडीयू ने अनंत सिंह को जिताने के लिए ललन सिंह और सम्राट चौधरी जैसे बड़े नामों को यूं ही नहीं उतारा है। ललन सिंह भूमिहार समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। यह चुनाव अब अनंत सिंह बनाम दुलारचंद नहीं, बल्कि ‘भूमिहार स्वाभिमान’ बनाम ‘गाली’ की राजनीति में बदल गया है। सत्यनारायण चतुर्वेदी ने कहा, ‘ललन सिंह बहुत बुद्धिमान और राजनीति रूप से सुलझे हुए नेता हैं। जब तक ललन सिंह हैं, कोई इधर-उधर नहीं कर सकता।’ दुलारचंद के गांव तारतर में खौफ मोकामा शहर के सियासी शोर से दूर, जब हम दुलारचंद के गांव तारतर पहुंचे तो यहां का मंजर बिल्कुल अलग था। यहां सियासी गर्मी नहीं, बल्कि एक अनकहा ‘डर’ पसरा हुआ था। गांव की गलियों में सन्नाटा था। सिर्फ सुरक्षाबलों के जवान दिखाई दिए। नाम नहीं बताएंगे, बोले तो उठवा लिए जाएंगे 200 से ज्यादा जवान गश्त कर रहे थे। हर आने-जाने वाले पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। इससे गांव के लोग सुरक्षित महसूस करने की जगह खौफ में हैं। गांव में एक जगह बैठे कुछ लोगों ने कहा, ‘बहुत पुलिसवाले आए हुए हैं। हमें डर लगता है। पता नहीं कब क्या हो जाए।’ दुलारचंद के गांव में बातचीत के दौरान कई लोगों ने अपना नाम तक नहीं बताया। गांव के एक व्यक्ति से हमने बात करने की कोशिश की। उन्होंने डरते हुए कहा, ‘हमको बोलने में डर लग रहा है। जैसे ही कोई बोलता है पुलिस आती है, उठाकर ले जाती है। पूरा गांव डरा हुआ है।’ जब हमने पूछा कि पुलिस क्यों उठा ले जाती है, तो उन्होंने कहा, पुलिस उसका (अनंत सिंह) आदमी है। उसने थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला, ‘हम नाम नहीं बताएंगे। हो सकता है कि अनंत सिंह का आदमी फोन कर देगा कि इस व्यक्ति ने ऐसे बोला है। पुलिस किसी झूठे केस में फंसाकर उठा ले जाएगी। लड़के ने कहा कि, ‘यह सरकार न्याय नहीं दे सकती। सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। पुलिस मिली हुई है। आपको इंसाफ नहीं मिल पाएगा।’ गांव के ही एक बुजुर्ग किशोरी प्रसाद का गुस्सा उनके डर पर हावी था। उन्होंने कहा, ‘हम लोगों का तो कहना है कि उनको रद्द (अनंत सिंह को चुनाव रहने से अयोग्य) किया जाए…। उनको सजा होनी चाहिए। फांसी की सजा दिलवाओ।’ किशोरी प्रसाद ने कहा, ‘गांव के लोग डरे हुए हैं। इस बात को लेकर कि वो दोबारा आएंगे।’ दुलारचंद के गांव का नैरेटिव मोकामा शहर से बिल्कुल उलट है। यहां ‘गाली’ या ‘स्वाभिमान’ की चर्चा नहीं है। यहां सिर्फ डर है, गुस्सा है और ‘इंसाफ’ की मांग है। गांव के एक और व्यक्ति संजय कुमार ने कहा, ‘जांच सही दिशा में जा रही है। गड़बड़ी नहीं हो रही है।’ फिर वो चुप हो गए और कहा, ‘हम नहीं बोलेंगे। बोलते-बोलते थक गया।’ जाते-जाते उन्होंने एक लाइन में गांव का मूड बता दिया, ‘सरकार बदल देंगे, अब। सरकार तेजस्वी की बनेगी। मोकामा बदलाव के मूड में है।’ मोकामा का फैसला: ‘आस्था’ बनाम ‘डर’ मोकामा का ये चुनाव दो ध्रुवों पर लड़ा जा रहा है। एक तरफ अनंत सिंह के समर्थक हैं, जिनके लिए ये चुनाव अपने नेता की ‘आस्था’, ‘स्वाभिमान’ और उनके ‘नाम’ का है, जिसे ‘गाली’ विवाद ने और मजबूत कर दिया है। उनके लिए अनंत सिंह एक ‘रॉबिनहुड’ हैं, जिन्हें हर बार चुनाव से पहले ‘साजिश’ के तहत फंसाया जाता है। वहीं, दूसरी तरफ दुलारचंद का गांव तारतर है। जहां लोग ‘डर’ के साये में जी रहे हैं। उनके लिए यह चुनाव ‘इंसाफ’ का है। वो सुरक्षाबलों की मौजूदगी से भी खौफजदा हैं। उन्हें लगता है कि इस सरकार में उन्हें न्याय नहीं मिल सकता। मोकामा का मतदाता 6 नवंबर को जब EVM का बटन दबाएगा तो यह फैसला सिर्फ एक विधायक का नहीं होगा, बल्कि यह तय करेगा कि इस बार ‘आस्था’ की जीत होती है, या ‘डर’ का इंसाफ होता है। कारगिल मार्केट में पसरा सन्नाटा अंनत सिंह की गिरफ्तारी के बाद जहां पूरे शहर में जगह-जगह चुनाव प्रचार चल रहा है। वहीं, उनकी हवेली कारगिल मार्केट में सन्नाटा पसरा हुआ है। जो हवेली आमतौर पर उनके समर्थकों के जमावड़े और चुनावी रणनीतियों का मुख्य केंद्र हुआ करती थी, वहां अब खामोशी है। ———————- ये खबर भी पढ़ें भास्कर इन्वेस्टिगेशन- ‘विधायकवा गांव में वोट काट रहा–काफिला मोड़ चलना है’:भतीजे के फोन पर दौड़े दुलारचंद यादव, अनंत सिंह के काफिले से हो गया आमना-सामना 30 अक्टूबर को दोपहर के ढाई बज रहे थे। दुलारचंद मोकामा के बसवानचक गांव में कैंपेनिंग कर रहे थे। अचानक फोन की घंटी बजी। दूसरी कॉल पर दुलारचंद का भतीजा था। बोला-अनंत सिंह गांव में घूम रहे हैं। पड़ोस में बैठकर नाश्ता कर रहे हैं। भोज में शामिल हो रहे हैं…।​​​ पूरी खबर पढ़ें मोकामा की हवा में इस बार चुनाव का शोर कम, तनाव ज्यादा है। शहर की गलियों से लेकर टाल तक हर चर्चा एक नाम पर शुरू और खत्म होती है वो हैं- अनंत सिंह। जनसुराज समर्थक और आरजेडी नेता दुलारचंद की हत्या के आरोप में जेडीयू प्रत्याशी अनंत कुमार सिंह उर्फ ‘छोटे सरकार’ गिरफ्तार होकर बेऊर जेल में बंद हैं। अनंत सिंह को जिताने के लिए बीजेपी और जेडीयू ने अपने सबसे बड़े सियासी चेहरों को मोकामा की धूल फांकने के लिए उतार दिया है। यूं कहें कि ‘सरकार’ ही अनंत को जिताने के सड़कों पर उतर गई है। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने बाहुबली को जिताने का जिम्मा उठा लिया है। मोकामा का माहौल जानने के लिए भास्कर टीम अनंत सिंह के इलाके में पहुंची। गांव में क्या माहौल है, बाहुबली का चुनाव कैसा चल रहा है? दुलार चंद के गांव के क्या हालात है..? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… छावनी में तब्दील मोकामा, ललन-सम्राट ने संभाला मोर्चा जब हम मोकामा पहुंचे, तो शहर का नजारा बदला हुआ था। चौक-चौराहों पर पुलिस और सुरक्षाबलों की भारी तैनाती है। अनंत सिंह की गिरफ्तारी और दुलारचंद की हत्या के बाद फैले तनाव को देखते हुए पूरे इलाके को मानो छावनी में बदल दिया गया है। हवा में तैरती अफवाहों के बीच, एनडीए ने इस चुनाव को अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। अनंत सिंह के जेल जाने के बाद केंद्रीय मंत्री और जदयू के बड़े नेता ललन सिंह ने मोकामा में डेरा डाल दिया है। सोमवार को एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा, ‘मोकामा टाल की घटना साजिश है। एनडीए प्रत्याशी अनंत सिंह को फंसाया गया है। जो भी इस साजिश में शामिल होगा, उसका खुलासा जल्द प्रशासन करेगा।’ ललन सिंह ने साफ कर दिया है कि लड़ाई अब अनंत सिंह की नहीं, बल्कि एनडीए के सम्मान की है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, ‘हम सभी का दायित्व है कि एक-एक कार्यकर्ता अनंत सिंह बनकर भारी बहुमत से जीत हासिल करे। चुनाव तक वह मोकामा में ही रहेंगे।’ ललन सिंह का इस तरह मोकामा में कैंप करना ये दिखाता है कि जेडीयू इस सीट को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के फायरब्रांड नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी अनंत सिंह के समर्थन में रोड शो किया। वह खुली जीप में सवार हुए और बरहपुर से मोकामा तिराहा चौक तक गए। ‘विधायक का नाम ही काफी है’ अनंत सिंह के चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे उनके समर्थकों में अपने नेता के जेल जाने का दुख तो है, लेकिन उनकी जीत को लेकर शक नहीं। अनंत के साथ रहने वाले पंकज सिंह ने कहा, ‘विधायक का नाम ही काफी है। अनंत सिंह छोटे सरकार, ये जनता की दी हुई आवाज है। उनके ना रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।’ दुलारचंद हत्याकांड को विरोधियों की साजिश बताते हुए पंकज ने कहा, ‘इस घटना की साजिश पहले रची गई थी। अनंत सिंह पर हमला करने का प्लान था। वो 10 गाड़ी लेकर चलते थे। उस दिन 50 गाड़ी थी। बाहर से बदमाशों को बुलाकर हमला करवाया।’ पंकज सिंह ने कहा, ‘एक वीडियो में दिखा है कि जिनकी हत्या हुई वो काफिले में पीछ मौजूद गाड़ियों पर पत्थर मार रहे थे। ऐसे में इस घटना में विधायक का नाम जोड़ना जनता तक नहीं पहुंच रहा है।’ अनंत सिंह के समर्थक जय प्रकाश ने कहा, ‘जब-जब वे जेल जाते हैं, उनकी जीत तय हो जाती है। इस बार कार्यकर्ताओं का जोश चौगुना है। हर बार चुनाव में साजिश कर उन्हें जेल भेजा जाता है।’ अनंत सिंह को समर्थन सिर्फ उनके पारंपरिक वोटरों से नहीं मिल रहा। हमें जदयू ऑफिस के बाहर जनसुराज के कार्यकर्ता हरेराम कुमार मिले। उन्होंने जो बताया, वो मोकामा की राजनीति का एक और दिलचस्प पहलू दिखाता है। हरेराम ने कहा, ‘मैंने जनसुराज का झंडा उठाया है। आज मोकामा की स्थिति बदली हुई है। जनसुराज का प्रत्याशी पार्टी के कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं ले रहा है। प्रशांत किशोर ने कहा था कि गलत कैंडिडेट देते हैं तो आप खुद से अच्छे कैंडिडेट को समर्थन दें। मैं अनंत सिंह को वोट दूंगा। मोकामा में जन सुराज के करीब 500 कार्यकर्ताओं को जानता हूं जो अब अनंत सिंह का समर्थन कर रहे हैं।’ ‘भूमिहारों को गाली’ ने मोड़ा मोकामा का चुनावी रुख अनंत सिंह की गिरफ्तारी, दुलारचंद की हत्या… इन सबसे बड़ा मुद्दा जो मोकामा की फिजाओं में तैर रहा है, वो है ‘भूमिहारों को गाली’। इस एक घटना ने पूरे चुनाव का रुख मोड़ दिया है। मोकामा के सीनियर जर्नलिस्ट सत्यनारायण चतुर्वेदी ने बताया, ‘माहौल अनंत सिंह के पक्ष में हो गया है। दुलारचंद की अंतिम यात्रा के समय राजद प्रत्याशी बीना देवी उनके ट्रैक्टर पर सवार थीं। लोग खुले आम भूमियार कास्ट को गाली दे रहे थे। इसका वीडियो वायरल है। इसका असर ये हुआ कि भूमिहार समाज गोलबंद हो गया है।’ इससे साफ है कि बीजेपी और जेडीयू ने अनंत सिंह को जिताने के लिए ललन सिंह और सम्राट चौधरी जैसे बड़े नामों को यूं ही नहीं उतारा है। ललन सिंह भूमिहार समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। यह चुनाव अब अनंत सिंह बनाम दुलारचंद नहीं, बल्कि ‘भूमिहार स्वाभिमान’ बनाम ‘गाली’ की राजनीति में बदल गया है। सत्यनारायण चतुर्वेदी ने कहा, ‘ललन सिंह बहुत बुद्धिमान और राजनीति रूप से सुलझे हुए नेता हैं। जब तक ललन सिंह हैं, कोई इधर-उधर नहीं कर सकता।’ दुलारचंद के गांव तारतर में खौफ मोकामा शहर के सियासी शोर से दूर, जब हम दुलारचंद के गांव तारतर पहुंचे तो यहां का मंजर बिल्कुल अलग था। यहां सियासी गर्मी नहीं, बल्कि एक अनकहा ‘डर’ पसरा हुआ था। गांव की गलियों में सन्नाटा था। सिर्फ सुरक्षाबलों के जवान दिखाई दिए। नाम नहीं बताएंगे, बोले तो उठवा लिए जाएंगे 200 से ज्यादा जवान गश्त कर रहे थे। हर आने-जाने वाले पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। इससे गांव के लोग सुरक्षित महसूस करने की जगह खौफ में हैं। गांव में एक जगह बैठे कुछ लोगों ने कहा, ‘बहुत पुलिसवाले आए हुए हैं। हमें डर लगता है। पता नहीं कब क्या हो जाए।’ दुलारचंद के गांव में बातचीत के दौरान कई लोगों ने अपना नाम तक नहीं बताया। गांव के एक व्यक्ति से हमने बात करने की कोशिश की। उन्होंने डरते हुए कहा, ‘हमको बोलने में डर लग रहा है। जैसे ही कोई बोलता है पुलिस आती है, उठाकर ले जाती है। पूरा गांव डरा हुआ है।’ जब हमने पूछा कि पुलिस क्यों उठा ले जाती है, तो उन्होंने कहा, पुलिस उसका (अनंत सिंह) आदमी है। उसने थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला, ‘हम नाम नहीं बताएंगे। हो सकता है कि अनंत सिंह का आदमी फोन कर देगा कि इस व्यक्ति ने ऐसे बोला है। पुलिस किसी झूठे केस में फंसाकर उठा ले जाएगी। लड़के ने कहा कि, ‘यह सरकार न्याय नहीं दे सकती। सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। पुलिस मिली हुई है। आपको इंसाफ नहीं मिल पाएगा।’ गांव के ही एक बुजुर्ग किशोरी प्रसाद का गुस्सा उनके डर पर हावी था। उन्होंने कहा, ‘हम लोगों का तो कहना है कि उनको रद्द (अनंत सिंह को चुनाव रहने से अयोग्य) किया जाए…। उनको सजा होनी चाहिए। फांसी की सजा दिलवाओ।’ किशोरी प्रसाद ने कहा, ‘गांव के लोग डरे हुए हैं। इस बात को लेकर कि वो दोबारा आएंगे।’ दुलारचंद के गांव का नैरेटिव मोकामा शहर से बिल्कुल उलट है। यहां ‘गाली’ या ‘स्वाभिमान’ की चर्चा नहीं है। यहां सिर्फ डर है, गुस्सा है और ‘इंसाफ’ की मांग है। गांव के एक और व्यक्ति संजय कुमार ने कहा, ‘जांच सही दिशा में जा रही है। गड़बड़ी नहीं हो रही है।’ फिर वो चुप हो गए और कहा, ‘हम नहीं बोलेंगे। बोलते-बोलते थक गया।’ जाते-जाते उन्होंने एक लाइन में गांव का मूड बता दिया, ‘सरकार बदल देंगे, अब। सरकार तेजस्वी की बनेगी। मोकामा बदलाव के मूड में है।’ मोकामा का फैसला: ‘आस्था’ बनाम ‘डर’ मोकामा का ये चुनाव दो ध्रुवों पर लड़ा जा रहा है। एक तरफ अनंत सिंह के समर्थक हैं, जिनके लिए ये चुनाव अपने नेता की ‘आस्था’, ‘स्वाभिमान’ और उनके ‘नाम’ का है, जिसे ‘गाली’ विवाद ने और मजबूत कर दिया है। उनके लिए अनंत सिंह एक ‘रॉबिनहुड’ हैं, जिन्हें हर बार चुनाव से पहले ‘साजिश’ के तहत फंसाया जाता है। वहीं, दूसरी तरफ दुलारचंद का गांव तारतर है। जहां लोग ‘डर’ के साये में जी रहे हैं। उनके लिए यह चुनाव ‘इंसाफ’ का है। वो सुरक्षाबलों की मौजूदगी से भी खौफजदा हैं। उन्हें लगता है कि इस सरकार में उन्हें न्याय नहीं मिल सकता। मोकामा का मतदाता 6 नवंबर को जब EVM का बटन दबाएगा तो यह फैसला सिर्फ एक विधायक का नहीं होगा, बल्कि यह तय करेगा कि इस बार ‘आस्था’ की जीत होती है, या ‘डर’ का इंसाफ होता है। कारगिल मार्केट में पसरा सन्नाटा अंनत सिंह की गिरफ्तारी के बाद जहां पूरे शहर में जगह-जगह चुनाव प्रचार चल रहा है। वहीं, उनकी हवेली कारगिल मार्केट में सन्नाटा पसरा हुआ है। जो हवेली आमतौर पर उनके समर्थकों के जमावड़े और चुनावी रणनीतियों का मुख्य केंद्र हुआ करती थी, वहां अब खामोशी है। ———————- ये खबर भी पढ़ें भास्कर इन्वेस्टिगेशन- ‘विधायकवा गांव में वोट काट रहा–काफिला मोड़ चलना है’:भतीजे के फोन पर दौड़े दुलारचंद यादव, अनंत सिंह के काफिले से हो गया आमना-सामना 30 अक्टूबर को दोपहर के ढाई बज रहे थे। दुलारचंद मोकामा के बसवानचक गांव में कैंपेनिंग कर रहे थे। अचानक फोन की घंटी बजी। दूसरी कॉल पर दुलारचंद का भतीजा था। बोला-अनंत सिंह गांव में घूम रहे हैं। पड़ोस में बैठकर नाश्ता कर रहे हैं। भोज में शामिल हो रहे हैं…।​​​ पूरी खबर पढ़ें  

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