पैरा तीरंदाज शीतल देवी गुरुवार, 6 नवंबर को सऊदी अरब के जेद्दा में होने वाले एशिया कप स्टेज 3 के लिए भारत की सक्षम जूनियर टीम में जगह बनाकर इतिहास रच दिया। वो किसी सक्षम राष्ट्रीय टीम के लिए सिलेक्ट होने वाली पहली भारतीय पैरा एथलीट बन गई हैं। 18 वर्षीया शीतल इस टूर्नामेंट के फीमेल कैटेगरी में भारत को रिप्रजेंट करेंगी। शीतल जन्म से दुर्लभ मेडिकल कंडीशन, फोकोमेलिया (Phocomelia) से पीड़ित हैं। इस रोग से कुछ अंगों का विकास नहीं हो पाता या फिर कोई अंग बिल्कुल होते नहीं है। इस रोग कि वजह से शीतल बिना हाथों के जन्मी हैं। इसके चलते वो अपने पैरों से ही सारा काम करती हैं। शीतल के पिता खेती करते हैं और मां हाउसवाइफ हैं, साथ ही बकरियां चराती हैं। बचपन से ही उन्हें स्कूल बहुत पसंद था। पहले लगता था कि शायद वो स्कूल नहीं जा पाएंगी क्योंकि वो थोड़ी अलग थीं। लेकिन किसी ने उन्हें अलग होने का एहसास नहीं दिलाया। ऐसे में उनकी स्कूलिंग किश्तवाड़ से हुई। इंडियन आर्मी ने मेडिकल असिस्टेंट प्रोवाइड किया साल 2019 की बात है, किश्तवाड़ के मुगल मैदान में एक युवा कार्यक्रम हो रहा था। इस कार्यक्रम में इंडियन आर्मी भी शिरकत कर रही थी। इसी दौरान राष्ट्रीय राइफल्स (Rashtriya Rifles) यूनिट की नजर पहली बार शीतल पर पड़ी। शीतल की अद्भुत प्रतिभा और हिम्मत को देखकर सेना ने उनकी जिम्मेदारी ले ली। फिर राष्ट्रीय राइफल्स ने पढ़ाई के लिए मदद और मेडिकल सहायता दोनों उपलब्ध कराई। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘बेंगलुरु की मेघना गिरीश और NGO दी बीइंग यू (The Being You) की वजह से शीतल को बायोनिक (कृत्रिम) हाथ मिले। इससे उसके लिए नई संभावनाओं के दरवाजे और खुल गए।’ प्रीति ने आर्चरी से इंट्रोड्यूस कराया एक इंटरव्यू में शीतल बताती हैं कि जब वे 9वीं क्लास में थी तब ट्रीटमेंट के लिए बेंगलुरु गई थीं। वहां उनकी मुलाकात प्रीति मैम नाम की एक महिला से हुई। उन्होंने आर्चरी यानी तीरंदाजी से इंट्रोड्यूस कराया। प्रीति ने 3 गेम सजेस्ट किए थे- आर्चरी, रनिंग और स्विमिंग। स्पोर्ट्स से इंट्रोड्यूस होने के बाद शीतल के जीवन में 360 डिग्री बदलाव आया। इससे पहले शीतल ने आर्चरी के बारे में कभी सुना भी नहीं था। किश्तवाड़ में स्पोर्ट्स की कुछ विशेष अपॉर्चुनिटी नहीं होने के चलते वो कटरा शिफ्ट हो गईं। फिर उन्होंने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में दाखिला लिया। यहां उनकी मुलाकात कोच कुलदीप बैदवान से हुई। शुरुआत में शीतल को दिक्कत हुई, पांव में दर्द होता था। लेकिन धीरे-धारे वो सब सीख गईं कि कहां से धनुष को उठाना है और कैसे बाण लगाकर टारगेट को हिट करना है। कुलदीप ने शीतल के लिए खास किट तैयार की, जिसकी मदद से वो तीरंदाजी करने लगीं। ये पहली बार था कि हिंदुस्तान में पहली ऐसी आर्चर तैयार हो रही थी, जिसके हाथ नहीं थे। ट्रॉयल में किया बेहतरीन प्रदर्शन शीतल ने सोनीपत में हुए चार दिवसीय राष्ट्रीय चयन ट्रॉयल में देश भर के 60 से ज्यादा सक्षम तीरंदाजों के बीच समान परिस्थितियों में कॉम्पिटीशन किया। वो इस कॉम्पिटीशन में तीसरे स्थान पर रहीं। शीतल ने क्वालीफिकेशन राउंड में 703 अंक हासिल किए, जो टॉप क्वालीफायर तेजल साल्वे के कुल अंक के बराबर स्कोर था।
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