UP Politics : उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जातीय कार्ड की चर्चा जोरों पर है। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव के एक बयान ने हलचल मचा दी है। अखिलेश ने खुद को क्षत्रिय बताया, जिससे यूपी की राजनीति में हलचल मच गई। इस बयान के बाद लगता है कि सपा राजपूत वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है, जो यूपी में करीब 8-10 प्रतिशत वोटरों का बड़ा हिस्सा है। यह बयान जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह के साथ विवाद से जुड़ा है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह 2027 के चुनावी रण में सपा की नई रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जहां भाजपा पहले से ही राजपूतों पर दावा ठोक रही है।
अखिलेश का ‘क्षत्रिय’ बयान
शुक्रवार को लखनऊ में सपा मुख्यालय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अखिलेश यादव ने कहा, “मैं भी तो क्षत्रिय ही हूं। आखिर क्षत्रिय कौन है, ये कौन तय करेगा?” यह बयान सीधे धनंजय सिंह के आरोपों का जवाब था। अखिलेश ने आगे कहा कि कुछ लोग खुद को क्षत्रिय बताकर राजनीति कर रहे हैं, लेकिन असली मुद्दा विकास और जनता की समस्याएं हैं। इस बयान से यूपी की राजनीति गरमा गई है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश अपनी यादव इमेज से बाहर निकलकर एक नया संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।
कफ सिरप कांड का कनेक्शन
यह विवाद कफ सिरप स्कैंडल से शुरू हुआ। हाल ही में यूपी में कोडीन युक्त कफ सिरप की अवैध बिक्री का मामला सामने आया, जिसमें धनंजय सिंह का नाम जुड़ा। अखिलेश यादव ने इस पर सख्त बयान दिया और कहा कि ऐसे अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए। धनंजय सिंह, जो जौनपुर से पूर्व सांसद हैं और राजपूतों के बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं। अखिलेश के इस बयान को उन्होंने व्यक्तिगत हमला माना। उन्होंने अखिलेश को “क्षत्रिय विरोधी” करार दिया और कहा कि सपा राजपूत समाज को नजरअंदाज कर रही है। कफ सिरप कांड ने पूर्वांचल की राजनीति को हिला दिया है, जहां राजपूत वोटरों की अच्छी तादाद है। अखिलेश का बयान इसी पलटवार का नतीजा है।
धनंजय सिंह का पलटवार और बढ़ता विवाद
धनंजय सिंह ने अखिलेश के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव परिवारवादी हैं और राजपूत समाज को धोखा दे रहे हैं। धनंजय ने ब्रिजभूषण सिंह जैसे अन्य राजपूत नेताओं का जिक्र करते हुए सपा पर हमला बोला। इसके जवाब में अखिलेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में धनंजय को “कोडीन भइया” कहकर निशाना साधा। यह विवाद अब कैसरगंज सांसद ब्रिजभूषण सिंह तक पहुंच गया है, जो खुद राजपूत हैं और भाजपा से जुड़े हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि धनंजय सिंह 2027 में निर्दलीय या किसी पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं, जो सपा के लिए चुनौती बनेगा।
राजपूत वोट बैंक की अहमियत
यूपी में राजपूत-क्षत्रिय समाज चुनावी समीकरणों में अहम भूमिका निभाता है। पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल तक फैले इस समाज ने अतीत में भाजपा को समर्थन दिया है, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में कुछ असंतोष दिखा, जिसका फायदा सपा को मिला। माना जाता है कि राजपूतों के नाराजगी के कारण ही सपा लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीत पाई। सपा अब पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के साथ-साथ राजपूतों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। अखिलेश का बयान इसी रणनीति का हिस्सा लगता है। जानकार कहते हैं कि अगर सपा राजपूत वोटों का 20-30 प्रतिशत भी हासिल कर ले, तो 2027 में खेल बदल सकता है।
2027 चुनाव पर असर
2027 के विधानसभा चुनाव में यह विवाद बड़ा मुद्दा बन सकता है। सपा को राजपूतों का साथ मिला, तो पूर्वांचल की कई सीटों पर फायदा होगा, जहां धनंजय जैसे नेता प्रभाव रखते हैं। लेकिन अगर विवाद बढ़ा तो भाजपा फायदा उठा सकती है। अखिलेश की रणनीति यादव-मुस्लिम बेस को मजबूत रखते हुए अन्य जातियों को जोड़ने की है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जातीय कार्ड हमेशा काम नहीं करता, लेकिन यूपी जैसे राज्य में यह वोटरों को प्रभावित करता है।


