बिहार में वंदे भारत ट्रेन से स्मैक की स्मगलिंग:पैडलर्स बोले- बंगाल से खेप लाते हैं, नए साल से पहले 10 करोड़ का माल जब्त

बिहार में वंदे भारत ट्रेन से स्मैक की स्मगलिंग:पैडलर्स बोले- बंगाल से खेप लाते हैं, नए साल से पहले 10 करोड़ का माल जब्त

‘पुड़िया है क्या? हां है, कितने का चाहिए? 200 वाला 4, 500 वाला 6 दे दो। नहीं इतना नहीं है। क्यों क्या हुआ, पैसे दे रहा हूं। नहीं भाई, कुछ थोड़ा सा है, चाहिए तो बताओ।’ ‘यार, 31 दिसंबर को पार्टी के लिए कुछ माल इस एड्रेस पर सप्लाई करनी है, हो जाएगा क्या? हां हो जाएगा, लेकिन पैसे थोड़े ज्यादा लगेंगे। मामला टाइट चल रहा है, छापेमारी हो रही है, पकड़े जाने का डर है।’ ऊपर लिखी गई बातचीत बेगूसराय के अलग-अलग चौक-चौराहों पर मौजूद पान और सिगरेट के गुमटी की है। दरअसल, बेगूसराय में पिछले डेढ़ महीने यानी 45 दिनों में 10 करोड़ रुपए से अधिक की स्मैक, जबकि 50 लाख रुपए के 200 किलो गांजा भी पकड़ा गया था। बेगूसराय पुलिस की इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद दैनिक भास्कर ने स्मैक पीने वाले एक शख्स से और दो ड्रग पैडलर्स से बातचीत की। स्मैक पीने वाले से उसकी मानसिक स्थिति को लेकर जबकि पैडलर्स से ड्रग, स्मैक और गांजा तस्करी के तरीकों को जानने की कोशिश की। साथ ही मनोवैज्ञानिक से स्मैक पीने वालों की मनोदशा पर भी बातचीत की। पढ़ें, पूरी रिपोर्ट। सबसे पहले, दुकानों पर स्मैक के लेन-देन का प्रोसेस समझिए बेगूसराय में स्मैक, गांजा खरीद-बिक्री के लिए एक पूरा सिस्टम बना हुआ है। शहर के लगभग सभी चौक-चौराहों पर मौजूद पान की गुमटी स्मैक-गांजा के अड्डे हैं। यहां स्मैकर आते हैं और 200 से लेकर 500 रुपए बढ़ाते हैं। रुपए मिलते ही पान की गुमटी में बैठा शख्स एक पुड़िया चुपके से उन्हें पकड़ा देता है। अगर आप नए हैं, दुकानदार ने आपको पहले कभी नहीं देखा है तो फिर आपको पुड़िया नहीं मिलेगी। इसके लिए आपको किसी पुराने स्मैकर के साथ दुकान पर आना होगा। जिला मुख्यालय में खासकर हेमरा चौक, पावर हाउस चौक, स्टेशन चौक, हर हर महादेव चौक स्मैक बिक्री के सबसे बड़े अड्डे हैं। यहां से कुछ कुछ हाई प्रोफाइल लोगों के लिए होम डिलीवरी की भी सुविधा है। जैसे फोन करते ही उन्हें शराब पहुंच जाता है, उसी तरीके से फोन करते ही उनके बताएं जगह तक स्मैक पहुंच जाता है। अब जानिए, स्मैकर ने अपनी आपबीती में क्या कहा? स्मैक के आदि हो चुके अमित (बदला हुआ नाम) ने ऑफ द कैमरा बताया कि मैं पुणे में पढ़ाई करता था, पढ़ाई के दौरान ही ड्रग्स की लत लग गई। पापा गांव में किराना की दुकान चलाते हैं, एक साल पहले भाई की मौत होने के बाद मैं गांव आ गया। यहां स्मैक नहीं मिलता था, मिलता भी था तो मुझे अड्डा नहीं पता था। शराब की डिलीवरी पहुंचाने वाले ने कहा कि मैं तुम्हें अड्डे पर ले चलूंगा। अगले दिन पापा दोपहर में जब खाना खाने गए तो मैं दुकान पर आया, ये मेरा रूटिन था। पापा के जाने के बाद मैंने गल्ले से 200 रुपए निकाले और शराब की डिलीवरी वाले के साथ करीब 20 किलोमीटर दूर एक पान की दुकान पर पहुंचा। शराब की डिलीवरी वाले ने 200 रुपए का नोट पान दुकानदार को दिया, उसने तत्काल एक पुड़िया दी और कहा कि यहां से तेजी से निकल जाओ। हालांकि, जाते-जाते उसने दुकानदार से मेरा परिचय करा दिया, कहा कि ये रोजाना वाले हैं, देख लेना दिक्कत न हो। अब मेरा रोज का है, शाम 4 बजे घर से निकलता हूं, किसी दिन ऐसा होता है कि निकलने में देर हो जाती है, पापा कोई काम पकड़ा देते हैं, तो ऐसे लगता है कि कुछ खो गया है, कुछ छूट गया है, बेचैनी होने लगती है। पैडलर्स बोले- दो रूट से बेगूसराय में स्मैक और गांजा पहुंचता है दैनिक भास्कर ने दो पैडलर्स के भी बात की। पैडलर्स ने नाम न छापने और कैमरे पर न आने की रिक्वेस्ट पर बताया कि बेगूसराय और बिहार में स्मैक दो रूट से आता है, एक रुट है हावड़ा होकर और दूसरा रूट है न्यू जलपाईगुड़ी होकर। दोनों जगह पर बार्डर एरिया में जाते ही हम लोगों को स्मैक सुरक्षित तरीके से मिल जाता है। पैडलर ने कहा कि हमारा काम है सिर्फ निर्धारित जगह पर पहुंचा देना। हम लोग वहां पहुंचते हैं तो एक कोडवर्ड दिया जाता है। कोडवर्ड अगले को देते ही तुरंत माल मिल जाता है‌। फरक्का रुट से लाने पर वह लोग हावड़ा जंक्शन पर पहुंचा देते हैं। हावड़ा में एसयूवी से प्लेटफॉर्म तक पहुंचाया जाता है। प्लेटफॉर्म पर पहुंचने से पहले हम लोगों का वंदे भारत एक्सप्रेस में टिकट बुक रहता है। या टिकट बुक भी नहीं है तो वंदे भारत अधिकतर खाली ही रहती है, सीट मिल ही जाता है। ये ट्रेन स्मैक, गांजा तस्करी के लिए सबसे मुफीद है, क्योंकि इस ट्रेन में कोई जांच पड़ताल नहीं होता, हम लोगों का पहनावा ऐसा होता है कि अच्छे घर से दिखते हैं, खुद को मेंटेन रखना होता है, जिससे किसी को कोई शक नहीं होता है। किसी को भी लगता है कि हम लोग स्टूडेंट हैं। अब जानिए, बेगूसराय पुलिस की 45 दिन की कार्रवाई में क्या हासिल हुआ बिहार की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले बेगूसराय में एक नवंबर से 18 दिसंबर तक, यानी पिछले लगभग डेढ़ महीने के अंदर जिले में पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 5 किलो से अधिक स्मैक (10 करोड़ रुपए से अधिक) और करीब 50 लाख रुपए की कीमत का 2 क्विंटल (200 किलो) गांजा बरामद किया है। इन नशीले पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करोड़ों में आंकी जा रही है। बेगूसराय पुलिस की ये कार्रवाई बताती है कि जिले में नशे का कारोबार किस पैमाने पर फैल चुका है। स्मैक को स्थानीय भाषा में पाउडर या चिट्टा भी कहा जाता है। इसकी 1 ग्राम की पुड़िया बाजार में 200 से 500 रुपए और कई बार उससे भी महंगी बिकती है। 5 किलो स्मैक की बरामदगी का मतलब है कि तस्करों के नेटवर्क ने जिले में करोड़ों रुपए का जाल बिछा रखा है। 200 किलो गांजा यह बताने के लिए काफी है कि सप्लाई चेन कितनी मजबूत है। यह गांजा सिर्फ शौकिया नशा करने वालों के लिए नहीं, बल्कि कॉलेज के छात्रों से लेकर रिक्शा चलाने वालों और मजदूरों को टारगेट बनाकर लाया जा रहा है। भास्कर पड़ताल में ये बात सामने आई है कि नशे के सौदागर शराबबंदी के बाद सूखे नशा को सबसे सुरक्षित और मुनाफे वाला धंधा मान रहे हैं। शराब की बड़ी बोतल ले जाना मुश्किल है, लेकिन स्मैक की चंद ग्राम की पुड़िया जेब में छिपाकर कहीं भी पहुंचाई जा रही है। पुलिस सूत्रों और खुफिया इनपुट के अनुसार, स्मैक और गांजा की तस्करी के लिए लोकल लेवल पर छोटे-छोटे कैरियर्स का इस्तेमाल करते हैं। इनमें अक्सर महिलाएं या नाबालिग बच्चों को शामिल किया जाता है, इन पर किसी को शक भी नहीं होता है। जीरो माइल, हर हर महादेव चौक, पावर हाउस चौक, बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन के आस-पास का एरिया स्मैक कारोबार का हॉटस्पॉट है, यहां कभी भी आपको स्मैक, गांजा मिल जाएगा। बेगूसराय के कई नशा मुक्ति केंद्रों में 70 फीसदी युवा यहां कोड वर्ड्स में बात होती है और चंद मिनटों में मौत का सामान ग्राहक के हाथ में होता है। बेगूसराय के कई नशा मुक्ति केंद्रों (De-addiction Centers) की स्थिति भयावह कहानी बयां करती है। यहां आने वाले मरीजों में 70 प्रतिशत से अधिक युवा हैं, जिनकी उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच है। युवा पहले ट्रायल के तौर पर दोस्तों के साथ इसे लेते हैं, फिर स्टेटस सिंबल बनाते हैं और अंत में इसके गुलाम बन जाते हैं। 18 साल का मुकेश बताता है कि मैं तो कॉलेज जाता था। मेरी मुलाकात रजनीश से हुई। कुछ ही दिनों में हम दोनों की दोस्ती हुई। हम लोगों ने एक साथ कोचिंग में तैयारी करने के बारे में बात की। हम दोनों का अकाउंट्स कमजोर था। घरवालों को बताया, अगले दिन से हम दोनों कॉलेज के बाद शाम को कोचिंग जाने लगे। मुकेश ने बताया कि एक दिन रजनीश मुझे पान की दुकान पर ले गया। यहां उसने सिगरेट मांगी। मैं कभी-कभी सिगरेट पीता था, मुझसे पूछा तो मैंने भी सिगरेट ले लिया। सिगरेट पीने के बाद रजनीश ने दुकानदार को 500 रुपए का नोट दिया। मैंने पूछा 2 सिगरेट के 500 रुपए हो गए। फिर रजनीश मुस्कुराया और कहा चल आगे तुझे कुछ दिखाता हूं। मुकेश के मुताबिक, शाम हो चुका था। सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। दुकान से करीब 100 मीटर जाने के बाद एक जगह रजनीश रूका और एक पुड़िया दिखाया, कहा कि 500 रुपए इसके लिए दिए थे। मैंने पूछा कि इसमें क्या है, तो रजनीश ने बताया कि स्मैक है। चाहिए, मैंने मना कर दिया। फिर मन में ख्याल आया कि देखता हूं, स्वाद कैसा होता है। फिर इसके बाद मुझे स्मैक की लत ही लग गई। मुकेश ने बताया कि धीरे-धीरे पढ़ाई छूट गई, घर में पता चला तो पिटाई भी हुई। आखिर में घरवालों ने यहां भर्ती करा दिया है। काफी मुश्किल से यहां दिन गुजरते हैं। जीवन में अब कभी भी नशा नहीं करूंगा। मनोवैज्ञानिक बोले- पैरेंट्स आते हैं, अपने बच्चों की हरकत बताते हुए रो पड़ते हैं शहर के एक प्रमुख मनोचिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे पास ऐसे पेरेंट्स आ रहे हैं जो अपने बच्चों की हरकतें देखकर रो पड़ते हैं। 10वीं और 12वीं में टॉप करने वाले छात्र स्मैक की लत में पड़कर घर का सामान बेच रहे हैं। स्मैक का नशा ऐसा है कि अगर एक बार इसकी लत लग जाए, तो शरीर टूटता है। उस तड़प को मिटाने के लिए युवा अपराध करने से भी नहीं चूकते। यह नशा सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक गुलामी है। नशे के सिंडिकेट को तोड़ना, अपराधियों पर लगाम लगाना… पुलिस के सामने दोहरी चुनौती बेगूसराय में हाल के दिनों में छिनतई, लूट और चाकूबाजी की घटनाओं में जो वृद्धि हुई है, उसका सीधा कनेक्शन इस सूखे नशा से है। जब जेब में पैसे नहीं होते और नशे की तलब उठती है, तो एक सामान्य युवा अपराधी बन जाता है। मोबाइल छिनतई की 80 प्रतिशत घटनाओं में नशेड़ियों का हाथ होता है, जो चोरी का मोबाइल औने-पौने दाम में बेचकर अपनी एक दिन की डोज का इंतजाम करते हैं। पुलिस के लिए भी यह दोहरी चुनौती है। एक तरफ नशे के सिंडिकेट को तोड़ना, और दूसरी तरफ नशे की वजह से पनप रहे छोटे अपराधियों पर लगाम लगाना। एसपी मनीष के निर्देश पर जिले भर में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। 1 नवंबर से अब तक की बरामदगी पुलिस की सक्रियता का प्रमाण है। थानों की पुलिस और एंटी-लिकर टास्क फोर्स (ALTF) मिलकर छापेमारी कर रही है। एसपी मनीष बोले- जब तक सिंडिकेट के किंगपिन सामने नहीं आते, लड़ाई अधूरी हालांकि चुनौती यह है कि जब तक इस सिंडिकेट के किंगपिन (सरगना) सलाखों के पीछे नहीं आते, तब तक यह लड़ाई अधूरी है। अक्सर छोटे पैडलर्स पकड़े जाते हैं, लेकिन मुख्य आपूर्तिकर्ता पुलिस की पहुंच से दूर रहते हैं। सिर्फ पुलिस की कार्रवाई काफी नहीं है। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। कई बार मोहल्ले में पता होता है कि किस घर से नशे का धंधा हो रहा है या कौन सा पान दुकानदार पुड़िया बेच रहा है, लेकिन लोग पचड़े में न पड़ने की सोच के साथ चुप रहते हैं। एसपी ने कहा कि ये चुप्पी आज पड़ोसी के बच्चे को बर्बाद कर रही है, कल आपके घर तक भी पहुंच सकती है। आंकड़े यह चीख-चीख कर कह रहे हैं कि जिले की नसों में जहर घोला जा रहा है। यह समय है कि पुलिस की सख्ती, प्रशासन की निगरानी और अभिभावकों की जागरूकता एक साथ मिलकर काम करे। अगर इस सूखे नशे की आग को अभी नहीं बुझाया गया, तो औद्योगिक नगरी बेगूसराय को उड़ता बेगूसराय बनने में वक्त नहीं लगेगा। आने वाली पीढ़ियों को इस धुएं और पाउडर के अंधेरे से बचाना ही होगा। मनोवैज्ञानिक, सामाजिक प्रभाव सबसे ज्यादा खतरनाक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव सबसे ज्यादा डरावना है। स्मैक की लत इतनी तीव्र होती है कि व्यक्ति इसे पाने के लिए चोरी, लूट और हत्या जैसे अपराध करने को मजबूर हो जाता है। अगर नशा न मिले तो व्यक्ति को असहनीय बदन दर्द, दस्त, हड्डियों में ऐंठन और भयंकर मानसिक तनाव होता है। इस तड़प के कारण वह चाहकर भी नशा नहीं छोड़ पाता। नशेड़ी व्यक्ति परिवार और समाज से कट जाता है। उसका एकमात्र लक्ष्य अगली डोज का इंतजाम करना रह जाता है। स्मैक की थोड़ी सी भी अधिक मात्रा (Overdose) सीधे मस्तिष्क के उस हिस्से को बंद कर देती है जो सांस लेने को नियंत्रित करता है। इससे व्यक्ति की नींद में ही मौत हो सकती है। स्मैक का नशा लाइलाज बीमारी नहीं है। सही समय पर नशा मुक्ति केंद्र और मनोवैज्ञानिक की सलाह से इसे छोड़ा जा सकता है। अचानक घर पर बिना डॉक्टरी सलाह के छोड़ना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि इसके विड्रॉल सिम्टम्स (नशा छोड़ने पर होने वाली तकलीफ) बहुत भयानक होते हैं। ‘पुड़िया है क्या? हां है, कितने का चाहिए? 200 वाला 4, 500 वाला 6 दे दो। नहीं इतना नहीं है। क्यों क्या हुआ, पैसे दे रहा हूं। नहीं भाई, कुछ थोड़ा सा है, चाहिए तो बताओ।’ ‘यार, 31 दिसंबर को पार्टी के लिए कुछ माल इस एड्रेस पर सप्लाई करनी है, हो जाएगा क्या? हां हो जाएगा, लेकिन पैसे थोड़े ज्यादा लगेंगे। मामला टाइट चल रहा है, छापेमारी हो रही है, पकड़े जाने का डर है।’ ऊपर लिखी गई बातचीत बेगूसराय के अलग-अलग चौक-चौराहों पर मौजूद पान और सिगरेट के गुमटी की है। दरअसल, बेगूसराय में पिछले डेढ़ महीने यानी 45 दिनों में 10 करोड़ रुपए से अधिक की स्मैक, जबकि 50 लाख रुपए के 200 किलो गांजा भी पकड़ा गया था। बेगूसराय पुलिस की इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद दैनिक भास्कर ने स्मैक पीने वाले एक शख्स से और दो ड्रग पैडलर्स से बातचीत की। स्मैक पीने वाले से उसकी मानसिक स्थिति को लेकर जबकि पैडलर्स से ड्रग, स्मैक और गांजा तस्करी के तरीकों को जानने की कोशिश की। साथ ही मनोवैज्ञानिक से स्मैक पीने वालों की मनोदशा पर भी बातचीत की। पढ़ें, पूरी रिपोर्ट। सबसे पहले, दुकानों पर स्मैक के लेन-देन का प्रोसेस समझिए बेगूसराय में स्मैक, गांजा खरीद-बिक्री के लिए एक पूरा सिस्टम बना हुआ है। शहर के लगभग सभी चौक-चौराहों पर मौजूद पान की गुमटी स्मैक-गांजा के अड्डे हैं। यहां स्मैकर आते हैं और 200 से लेकर 500 रुपए बढ़ाते हैं। रुपए मिलते ही पान की गुमटी में बैठा शख्स एक पुड़िया चुपके से उन्हें पकड़ा देता है। अगर आप नए हैं, दुकानदार ने आपको पहले कभी नहीं देखा है तो फिर आपको पुड़िया नहीं मिलेगी। इसके लिए आपको किसी पुराने स्मैकर के साथ दुकान पर आना होगा। जिला मुख्यालय में खासकर हेमरा चौक, पावर हाउस चौक, स्टेशन चौक, हर हर महादेव चौक स्मैक बिक्री के सबसे बड़े अड्डे हैं। यहां से कुछ कुछ हाई प्रोफाइल लोगों के लिए होम डिलीवरी की भी सुविधा है। जैसे फोन करते ही उन्हें शराब पहुंच जाता है, उसी तरीके से फोन करते ही उनके बताएं जगह तक स्मैक पहुंच जाता है। अब जानिए, स्मैकर ने अपनी आपबीती में क्या कहा? स्मैक के आदि हो चुके अमित (बदला हुआ नाम) ने ऑफ द कैमरा बताया कि मैं पुणे में पढ़ाई करता था, पढ़ाई के दौरान ही ड्रग्स की लत लग गई। पापा गांव में किराना की दुकान चलाते हैं, एक साल पहले भाई की मौत होने के बाद मैं गांव आ गया। यहां स्मैक नहीं मिलता था, मिलता भी था तो मुझे अड्डा नहीं पता था। शराब की डिलीवरी पहुंचाने वाले ने कहा कि मैं तुम्हें अड्डे पर ले चलूंगा। अगले दिन पापा दोपहर में जब खाना खाने गए तो मैं दुकान पर आया, ये मेरा रूटिन था। पापा के जाने के बाद मैंने गल्ले से 200 रुपए निकाले और शराब की डिलीवरी वाले के साथ करीब 20 किलोमीटर दूर एक पान की दुकान पर पहुंचा। शराब की डिलीवरी वाले ने 200 रुपए का नोट पान दुकानदार को दिया, उसने तत्काल एक पुड़िया दी और कहा कि यहां से तेजी से निकल जाओ। हालांकि, जाते-जाते उसने दुकानदार से मेरा परिचय करा दिया, कहा कि ये रोजाना वाले हैं, देख लेना दिक्कत न हो। अब मेरा रोज का है, शाम 4 बजे घर से निकलता हूं, किसी दिन ऐसा होता है कि निकलने में देर हो जाती है, पापा कोई काम पकड़ा देते हैं, तो ऐसे लगता है कि कुछ खो गया है, कुछ छूट गया है, बेचैनी होने लगती है। पैडलर्स बोले- दो रूट से बेगूसराय में स्मैक और गांजा पहुंचता है दैनिक भास्कर ने दो पैडलर्स के भी बात की। पैडलर्स ने नाम न छापने और कैमरे पर न आने की रिक्वेस्ट पर बताया कि बेगूसराय और बिहार में स्मैक दो रूट से आता है, एक रुट है हावड़ा होकर और दूसरा रूट है न्यू जलपाईगुड़ी होकर। दोनों जगह पर बार्डर एरिया में जाते ही हम लोगों को स्मैक सुरक्षित तरीके से मिल जाता है। पैडलर ने कहा कि हमारा काम है सिर्फ निर्धारित जगह पर पहुंचा देना। हम लोग वहां पहुंचते हैं तो एक कोडवर्ड दिया जाता है। कोडवर्ड अगले को देते ही तुरंत माल मिल जाता है‌। फरक्का रुट से लाने पर वह लोग हावड़ा जंक्शन पर पहुंचा देते हैं। हावड़ा में एसयूवी से प्लेटफॉर्म तक पहुंचाया जाता है। प्लेटफॉर्म पर पहुंचने से पहले हम लोगों का वंदे भारत एक्सप्रेस में टिकट बुक रहता है। या टिकट बुक भी नहीं है तो वंदे भारत अधिकतर खाली ही रहती है, सीट मिल ही जाता है। ये ट्रेन स्मैक, गांजा तस्करी के लिए सबसे मुफीद है, क्योंकि इस ट्रेन में कोई जांच पड़ताल नहीं होता, हम लोगों का पहनावा ऐसा होता है कि अच्छे घर से दिखते हैं, खुद को मेंटेन रखना होता है, जिससे किसी को कोई शक नहीं होता है। किसी को भी लगता है कि हम लोग स्टूडेंट हैं। अब जानिए, बेगूसराय पुलिस की 45 दिन की कार्रवाई में क्या हासिल हुआ बिहार की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले बेगूसराय में एक नवंबर से 18 दिसंबर तक, यानी पिछले लगभग डेढ़ महीने के अंदर जिले में पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 5 किलो से अधिक स्मैक (10 करोड़ रुपए से अधिक) और करीब 50 लाख रुपए की कीमत का 2 क्विंटल (200 किलो) गांजा बरामद किया है। इन नशीले पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करोड़ों में आंकी जा रही है। बेगूसराय पुलिस की ये कार्रवाई बताती है कि जिले में नशे का कारोबार किस पैमाने पर फैल चुका है। स्मैक को स्थानीय भाषा में पाउडर या चिट्टा भी कहा जाता है। इसकी 1 ग्राम की पुड़िया बाजार में 200 से 500 रुपए और कई बार उससे भी महंगी बिकती है। 5 किलो स्मैक की बरामदगी का मतलब है कि तस्करों के नेटवर्क ने जिले में करोड़ों रुपए का जाल बिछा रखा है। 200 किलो गांजा यह बताने के लिए काफी है कि सप्लाई चेन कितनी मजबूत है। यह गांजा सिर्फ शौकिया नशा करने वालों के लिए नहीं, बल्कि कॉलेज के छात्रों से लेकर रिक्शा चलाने वालों और मजदूरों को टारगेट बनाकर लाया जा रहा है। भास्कर पड़ताल में ये बात सामने आई है कि नशे के सौदागर शराबबंदी के बाद सूखे नशा को सबसे सुरक्षित और मुनाफे वाला धंधा मान रहे हैं। शराब की बड़ी बोतल ले जाना मुश्किल है, लेकिन स्मैक की चंद ग्राम की पुड़िया जेब में छिपाकर कहीं भी पहुंचाई जा रही है। पुलिस सूत्रों और खुफिया इनपुट के अनुसार, स्मैक और गांजा की तस्करी के लिए लोकल लेवल पर छोटे-छोटे कैरियर्स का इस्तेमाल करते हैं। इनमें अक्सर महिलाएं या नाबालिग बच्चों को शामिल किया जाता है, इन पर किसी को शक भी नहीं होता है। जीरो माइल, हर हर महादेव चौक, पावर हाउस चौक, बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन के आस-पास का एरिया स्मैक कारोबार का हॉटस्पॉट है, यहां कभी भी आपको स्मैक, गांजा मिल जाएगा। बेगूसराय के कई नशा मुक्ति केंद्रों में 70 फीसदी युवा यहां कोड वर्ड्स में बात होती है और चंद मिनटों में मौत का सामान ग्राहक के हाथ में होता है। बेगूसराय के कई नशा मुक्ति केंद्रों (De-addiction Centers) की स्थिति भयावह कहानी बयां करती है। यहां आने वाले मरीजों में 70 प्रतिशत से अधिक युवा हैं, जिनकी उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच है। युवा पहले ट्रायल के तौर पर दोस्तों के साथ इसे लेते हैं, फिर स्टेटस सिंबल बनाते हैं और अंत में इसके गुलाम बन जाते हैं। 18 साल का मुकेश बताता है कि मैं तो कॉलेज जाता था। मेरी मुलाकात रजनीश से हुई। कुछ ही दिनों में हम दोनों की दोस्ती हुई। हम लोगों ने एक साथ कोचिंग में तैयारी करने के बारे में बात की। हम दोनों का अकाउंट्स कमजोर था। घरवालों को बताया, अगले दिन से हम दोनों कॉलेज के बाद शाम को कोचिंग जाने लगे। मुकेश ने बताया कि एक दिन रजनीश मुझे पान की दुकान पर ले गया। यहां उसने सिगरेट मांगी। मैं कभी-कभी सिगरेट पीता था, मुझसे पूछा तो मैंने भी सिगरेट ले लिया। सिगरेट पीने के बाद रजनीश ने दुकानदार को 500 रुपए का नोट दिया। मैंने पूछा 2 सिगरेट के 500 रुपए हो गए। फिर रजनीश मुस्कुराया और कहा चल आगे तुझे कुछ दिखाता हूं। मुकेश के मुताबिक, शाम हो चुका था। सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। दुकान से करीब 100 मीटर जाने के बाद एक जगह रजनीश रूका और एक पुड़िया दिखाया, कहा कि 500 रुपए इसके लिए दिए थे। मैंने पूछा कि इसमें क्या है, तो रजनीश ने बताया कि स्मैक है। चाहिए, मैंने मना कर दिया। फिर मन में ख्याल आया कि देखता हूं, स्वाद कैसा होता है। फिर इसके बाद मुझे स्मैक की लत ही लग गई। मुकेश ने बताया कि धीरे-धीरे पढ़ाई छूट गई, घर में पता चला तो पिटाई भी हुई। आखिर में घरवालों ने यहां भर्ती करा दिया है। काफी मुश्किल से यहां दिन गुजरते हैं। जीवन में अब कभी भी नशा नहीं करूंगा। मनोवैज्ञानिक बोले- पैरेंट्स आते हैं, अपने बच्चों की हरकत बताते हुए रो पड़ते हैं शहर के एक प्रमुख मनोचिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे पास ऐसे पेरेंट्स आ रहे हैं जो अपने बच्चों की हरकतें देखकर रो पड़ते हैं। 10वीं और 12वीं में टॉप करने वाले छात्र स्मैक की लत में पड़कर घर का सामान बेच रहे हैं। स्मैक का नशा ऐसा है कि अगर एक बार इसकी लत लग जाए, तो शरीर टूटता है। उस तड़प को मिटाने के लिए युवा अपराध करने से भी नहीं चूकते। यह नशा सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक गुलामी है। नशे के सिंडिकेट को तोड़ना, अपराधियों पर लगाम लगाना… पुलिस के सामने दोहरी चुनौती बेगूसराय में हाल के दिनों में छिनतई, लूट और चाकूबाजी की घटनाओं में जो वृद्धि हुई है, उसका सीधा कनेक्शन इस सूखे नशा से है। जब जेब में पैसे नहीं होते और नशे की तलब उठती है, तो एक सामान्य युवा अपराधी बन जाता है। मोबाइल छिनतई की 80 प्रतिशत घटनाओं में नशेड़ियों का हाथ होता है, जो चोरी का मोबाइल औने-पौने दाम में बेचकर अपनी एक दिन की डोज का इंतजाम करते हैं। पुलिस के लिए भी यह दोहरी चुनौती है। एक तरफ नशे के सिंडिकेट को तोड़ना, और दूसरी तरफ नशे की वजह से पनप रहे छोटे अपराधियों पर लगाम लगाना। एसपी मनीष के निर्देश पर जिले भर में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। 1 नवंबर से अब तक की बरामदगी पुलिस की सक्रियता का प्रमाण है। थानों की पुलिस और एंटी-लिकर टास्क फोर्स (ALTF) मिलकर छापेमारी कर रही है। एसपी मनीष बोले- जब तक सिंडिकेट के किंगपिन सामने नहीं आते, लड़ाई अधूरी हालांकि चुनौती यह है कि जब तक इस सिंडिकेट के किंगपिन (सरगना) सलाखों के पीछे नहीं आते, तब तक यह लड़ाई अधूरी है। अक्सर छोटे पैडलर्स पकड़े जाते हैं, लेकिन मुख्य आपूर्तिकर्ता पुलिस की पहुंच से दूर रहते हैं। सिर्फ पुलिस की कार्रवाई काफी नहीं है। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। कई बार मोहल्ले में पता होता है कि किस घर से नशे का धंधा हो रहा है या कौन सा पान दुकानदार पुड़िया बेच रहा है, लेकिन लोग पचड़े में न पड़ने की सोच के साथ चुप रहते हैं। एसपी ने कहा कि ये चुप्पी आज पड़ोसी के बच्चे को बर्बाद कर रही है, कल आपके घर तक भी पहुंच सकती है। आंकड़े यह चीख-चीख कर कह रहे हैं कि जिले की नसों में जहर घोला जा रहा है। यह समय है कि पुलिस की सख्ती, प्रशासन की निगरानी और अभिभावकों की जागरूकता एक साथ मिलकर काम करे। अगर इस सूखे नशे की आग को अभी नहीं बुझाया गया, तो औद्योगिक नगरी बेगूसराय को उड़ता बेगूसराय बनने में वक्त नहीं लगेगा। आने वाली पीढ़ियों को इस धुएं और पाउडर के अंधेरे से बचाना ही होगा। मनोवैज्ञानिक, सामाजिक प्रभाव सबसे ज्यादा खतरनाक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव सबसे ज्यादा डरावना है। स्मैक की लत इतनी तीव्र होती है कि व्यक्ति इसे पाने के लिए चोरी, लूट और हत्या जैसे अपराध करने को मजबूर हो जाता है। अगर नशा न मिले तो व्यक्ति को असहनीय बदन दर्द, दस्त, हड्डियों में ऐंठन और भयंकर मानसिक तनाव होता है। इस तड़प के कारण वह चाहकर भी नशा नहीं छोड़ पाता। नशेड़ी व्यक्ति परिवार और समाज से कट जाता है। उसका एकमात्र लक्ष्य अगली डोज का इंतजाम करना रह जाता है। स्मैक की थोड़ी सी भी अधिक मात्रा (Overdose) सीधे मस्तिष्क के उस हिस्से को बंद कर देती है जो सांस लेने को नियंत्रित करता है। इससे व्यक्ति की नींद में ही मौत हो सकती है। स्मैक का नशा लाइलाज बीमारी नहीं है। सही समय पर नशा मुक्ति केंद्र और मनोवैज्ञानिक की सलाह से इसे छोड़ा जा सकता है। अचानक घर पर बिना डॉक्टरी सलाह के छोड़ना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि इसके विड्रॉल सिम्टम्स (नशा छोड़ने पर होने वाली तकलीफ) बहुत भयानक होते हैं।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *