बालोतरा में शालीभद्र महाराज ने 16 दिन बाद स्थानक भवन में संथारा पूर्ण किया। शुक्रवार को उन्होंने प्राण त्याग दिए। आज कुछ देर में भव्य बैकुंठ यात्रा निकाली जाएगी। भालीभद्र महाराज जयपुर के प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार से जुड़े है। पांच बहनों के इकलौते भाई शालीभद्र महाराज ने 1994 में दीक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने 5 नवंबर को अन्न-जल का त्याग करते हुए संथारा का पालन शुरू किया था। महाराज के अंतिम दर्शन करने के लिए श्रद्धालु स्थानक भवन पहुंच रहे हैं। क्या होता है संथारा जैन धर्म में सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है संथारा प्रथा (संलेखना)। जैन समाज में इस तरह से देह त्यागने को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को समाधिमरण, पंडितमरण अथवा संथारा भी कहा जाता है। इसलिए ये प्रथा जैन समाज की सबसे पवित्र जैन धर्म के अनुसार आखिरी समय में किसी के भी प्रति बुरी भावनाएं नहीं रखी जाएं। यदि किसी से कोई बुराई जीवन में रही भी हो, तो उसे माफ करके अच्छे विचारों और संस्कारों को मन में स्थान दिया जाता है। संथारा लेने वाला व्यक्ति भी हलके मन से खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा और समाज में भी बैर बुराई से होने वाले बुरे प्रभाव कम होंगे। इससे राष्ट्र के विकास में स्वस्थ वातावरण मिल सकेगा। इसलिए इसे इस धर्म में एक वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधि माना गया है। संथारा से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… पति के बाद पत्नी का भी संथारा पूरा:पति के निधन के 48 दिन बाद पत्नी ने देह त्यागा, डीजे के साथ निकली अंतिम यात्रा बाड़मेर के छोटे से कस्बे जसोल में पति के देहांत के बाद गुरुवार को गुलाब देवी (81) का संथारा संकल्प पूरा हो गया। गुरुवार सुबह 8 बजे उन्होंने प्राण त्याग दिए। (पूरी खबर पढ़ें…)


