कर्नाटक हाई कोर्ट से मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने सिद्धारमैया सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें सार्वजनिक स्थलों पर कोई भी गतिविधि करने से पहले अनुमित लेना अनिवार्य कर दिया था। अब इस मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी। दरअसल, सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पुनश्चैतन्य सेवा संस्था द्वारा दायर की गई थी।
याचिका में क्या कहा गया
पुनश्चैतन्य सेवा संस्था द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि सरकार की अधिसूचना अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत संवैधानिक अधिकारों – भाषण, अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। हाई कोर्ट ने अब आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है और सरकार को नोटिस जारी किए हैं।
‘मौलिक अधिकार पर प्रतिबंध है आदेश’
बता दें कि याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक हरनहल्ली ने तर्क दिया कि यह आदेश नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने जैसा है। उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा, “सरकार ने आदेश दिया है कि दस से ज़्यादा लोगों के जमावड़े के लिए अनुमति लेनी होगी। यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार पर प्रतिबंध है। अगर किसी पार्क में पार्टी भी हो रही है, तो सरकारी आदेश के अनुसार वह गैरकानूनी जमावड़ा है।
प्रियांक खरगे ने लिखा था पत्र
बता दें कि कर्नाटक कैबिनेट ने दो सप्ताह पहले सरकारी संस्थाओं और सार्वजनिक जगहों पर आयोजित होने वाले जुलूसों और कार्यक्रमों सहित RSS की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए नए नियम बनाने का निर्णय लिया था। दरअसल, प्रदेश सरकार ने यह कदम मंत्री प्रियांक खरगे द्वारा सीएम को लिखे पत्र के बाद लिया था।
सभी संगठनों के लिए था निर्णय-सीएम
हालांकि, पिछले सप्ताह सीएम सिद्धारमैया ने स्पष्ट किया कि कैबिनेट का निर्णय केवल आरएसएस के बारे में नहीं था, बल्कि यह सभी संगठनों के लिए सार्वजनिक और सरकारी स्थानों के उपयोग को विनियमित करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा था।
CM ने RSS की तालिबान से की थी तुलना
बता दें कि सीएम सिद्धारमैया ने आरएसएस की तालिबान से तुलना की थी। उन्होंने कहा था कि RSS की तालिबान जैसी मानसिकता है। हिंदू धर्म को आरएसएस उसी तरह लागू करना चाहता है जिस प्रकार से तालिबान इस्लाम के सिद्धांतों को थोपने के लिए आदेश जारी करता है।


