मुंगेर| विद्यालयों और महाविद्यालयों में पारंपरिक नाट्य-केंद्रित गतिविधियां शुरू की जानी चाहिए। ताकि नई पीढ़ी इन लोक कलाओं से जुड़े। लोक-नाट्य शैलियों की जड़ें बहुत मजबूत हैं, लेकिन आधुनिकता के प्रभाव ने इन्हें हाशिए पर धकेल दिया है। अगर दस्तावेजीकरण और मंचन दोनों पर समान ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य की पीढ़ी इनसे अनजान रह जाएगी। यह बातें डॉ. आनंद विजय ने नाटकों में युवाओं की कम होती भागीदारी पर चिंता व्यक्त करते हुए कही। उन्होंने बताया कि लोक-नाट्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि अंग प्रदेश की सामाजिक स्मृति का जीवंत दस्तावेज हैं। बिहुला-विषहरी और गोपीचंद जैसे नाट्य केवल कहानियां नहीं हैं। ये हमारी लोक-आस्था और संघर्ष की गाथाएं हैं। आज इनकी पहचान बचाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। मुंगेर| विद्यालयों और महाविद्यालयों में पारंपरिक नाट्य-केंद्रित गतिविधियां शुरू की जानी चाहिए। ताकि नई पीढ़ी इन लोक कलाओं से जुड़े। लोक-नाट्य शैलियों की जड़ें बहुत मजबूत हैं, लेकिन आधुनिकता के प्रभाव ने इन्हें हाशिए पर धकेल दिया है। अगर दस्तावेजीकरण और मंचन दोनों पर समान ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य की पीढ़ी इनसे अनजान रह जाएगी। यह बातें डॉ. आनंद विजय ने नाटकों में युवाओं की कम होती भागीदारी पर चिंता व्यक्त करते हुए कही। उन्होंने बताया कि लोक-नाट्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि अंग प्रदेश की सामाजिक स्मृति का जीवंत दस्तावेज हैं। बिहुला-विषहरी और गोपीचंद जैसे नाट्य केवल कहानियां नहीं हैं। ये हमारी लोक-आस्था और संघर्ष की गाथाएं हैं। आज इनकी पहचान बचाने की सबसे ज्यादा जरूरत है।


