छठ पर्व के बाद बिहार से लाखों प्रवासी मजदूरों का अन्य राज्यों में पलायन चल रहा है। पटना जंक्शन पर यात्रियों की भारी भीड़ में ज्यादातर प्रवासी मजदूर ही दिखाई दे रहे हैं, जो रोजगार की तलाश में अपने काम पर लौट रहे हैं। यह स्थिति राज्य में रोजगार के अवसरों की कमी को दर्शाती है। प्रवासियों का कहना है कि बिहार में रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें दूसरे राज्यों में जाकर पैसा कमाना पड़ता है। प्रवासियों का साफ कहना है कि हमारा मुद्दा चुनाव नहीं परिवार और पैसा है। उनका मानना है कि परिवार और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए पलायन करना जरूरी है क्योंकि बिहार में न कोई फैक्ट्री है और न ही रोजगार है। बिहार के सीतामढ़ी, बेगूसराय, सुपौल, सहरसा और खगड़िया से लाखों मजदूर तमिलनाडु, कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और सूरत जैसे शहरों की ओर लौट रहे हैं। यह पलायन मतदान से पहले एक बार फिर तेज हो गया है। भास्कर रिपोर्टर ने पटना जंक्शन का जायजा लिया। इस दौरान शाम में निकल रही एर्नाकुलम सुपरफास्ट एक्सप्रेस (22670) में काफी भीड़ देखी गई… बेगूसराय का मजदूर 7 साल से परिवार संग रह रहा तमिलनाडु ट्रेन पकड़ने के लिए सुबह से ही प्रवासी मजदूरों का एक बड़ा समूह पटना जंक्शन पर पहुंच गया था। सैकड़ों की संख्या में मजदूर तमिलनाडु के कोयंबटूर के लिए रवाना हुए, जहां उनकी आजीविका स्थापित हो चुकी है। बेगूसराय के बरबीघी निवासी अभिषेक कुमार (32) अपने पूरे परिवार के साथ तमिलनाडु जा रहे थे। उन्होंने बताया कि परिवार की जिम्मेदारियां और आजीविका सबसे महत्वपूर्ण हैं। बिहार में रोजगार की न तो बेहतर व्यवस्था है और न ही पर्याप्त अवसर। उन्हें तमिलनाडु में बेहतर रोजगार मिला है, जिसके कारण वे पिछले सात वर्षों से अपने परिवार के साथ कोयंबटूर में रह रहे हैं। कहा- चुनाव मुद्दा नहीं परिवार और पैसा बेहद अहम है सीतामढ़ी के रहने वाले पिंटू कुमार ( 46) ने बताया कि पैसे के अभाव में बिहार से पलायन करना मेरी सबसे बड़ी मजबूरी है, कर्ज का काफी दबाव है। एक अच्छे भविष्य को बेहतर बनाने के लिए पैसा बेहद जरूरी होता है। जो मेहनत और परिश्रम से ही आ सकता हैं। वर्षों से तमिलनाडु के कोयंबटूर के निजी फैक्ट्री में काम करता हूं। चुनाव मुद्दा नहीं परिवार और पैसा बेहद अहम है। पिंटू कुमार ने कहा अगर बिहार में रोजगार का अवसर मिला होता, बिहार में अच्छी व्यवस्था होती, तो 3 दिनों का सफर क्यों करता, इतना मशक्कत क्यों करता। सीतामढ़ी के रहने वाले नीतीश कुमार (29) ने बताया कि बिहार में रोजगार अवसर प्राप्त नहीं हुआ, पेट का सवाल है तो पैसा कमाना ही पड़ेगा। बिहार अलावा अन्य राज्यों में बेहतर व्यवस्था और अच्छा पैसा मिलता है। कोई भी नहीं चाहता कि अपना परिवार छोड़ दूर जाकर काम करे, लेकिन साहब पेट का सवाल है। मजबूरी और विवशता दोनों हैं। बिहार में रोजगार की कमी इसलिए परेशानी वैशाली के रहने वाले धीरज कुमार ने बताया कि बिहार में रोजगार की कमी है। 20 साल से नीतीश कुमार की सरकार है और केंद्र में 11 साल से पीएम मोदी की, बिहार में नौकरी के अभाव प्रत्येक दिन हजार प्रवासी मजदूर बिहार छोड़कर अन्य राज्यों की तरफ पलायन कर रहे हैं। पढ़ने लिखने के बाद भी बिहार में रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं हुआ, जिसके कारण मुझे भी प्रदेश के तरफ पलायन करना पड़ रहा है। यही विवशता हैं। बिहार में 2 रेल कारखाने खुले लेकिन रोजगार नहीं मिला इसी तरह अन्य राज्यों में पलायन कर सैकड़ों मजदूरों ने अपनी अपनी व्यथा और पीड़ा भास्कर के कैमरे पर बताई। मजदूर राजू मुखिया, रंजीत, रुदल, कृष, शंकर ने बताया कि बिहार में दो रेल कारखाने जरूर खुले, लेकिन स्थानीय स्तर पर रोजगार का वैसा बड़ा सृजन नहीं हुआ, जिसकी उम्मीद की गई थी। इस कारण घर चलाने के लिए बाहर जाना ही मजबूरी बन गया है।उन्होंने कहा कि इसी वजह से चुनाव में पहले मतदान करने की अपील भी अधिक असर नहीं डाल पाती, क्योंकि पहले नौकरी सुरक्षित करना जरूरी है। सरकार पर जताई नाराजगी बिहार की सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा कि एक समय था जब प्रदेश में चीनी मिलें, भागलपुर का सिल्क उद्योग और गन्ने की खेती से जुड़ा स्थानीय व्यापार मजबूत था। लेकिन सारण की मार्टन मिल, सारण इंजीनियरिंग कंपनी सहित कई उद्योगों के बंद होने के बाद जिला उद्योग हीन हो गया। छठ पर्व के बाद बिहार से लाखों प्रवासी मजदूरों का अन्य राज्यों में पलायन चल रहा है। पटना जंक्शन पर यात्रियों की भारी भीड़ में ज्यादातर प्रवासी मजदूर ही दिखाई दे रहे हैं, जो रोजगार की तलाश में अपने काम पर लौट रहे हैं। यह स्थिति राज्य में रोजगार के अवसरों की कमी को दर्शाती है। प्रवासियों का कहना है कि बिहार में रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें दूसरे राज्यों में जाकर पैसा कमाना पड़ता है। प्रवासियों का साफ कहना है कि हमारा मुद्दा चुनाव नहीं परिवार और पैसा है। उनका मानना है कि परिवार और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए पलायन करना जरूरी है क्योंकि बिहार में न कोई फैक्ट्री है और न ही रोजगार है। बिहार के सीतामढ़ी, बेगूसराय, सुपौल, सहरसा और खगड़िया से लाखों मजदूर तमिलनाडु, कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और सूरत जैसे शहरों की ओर लौट रहे हैं। यह पलायन मतदान से पहले एक बार फिर तेज हो गया है। भास्कर रिपोर्टर ने पटना जंक्शन का जायजा लिया। इस दौरान शाम में निकल रही एर्नाकुलम सुपरफास्ट एक्सप्रेस (22670) में काफी भीड़ देखी गई… बेगूसराय का मजदूर 7 साल से परिवार संग रह रहा तमिलनाडु ट्रेन पकड़ने के लिए सुबह से ही प्रवासी मजदूरों का एक बड़ा समूह पटना जंक्शन पर पहुंच गया था। सैकड़ों की संख्या में मजदूर तमिलनाडु के कोयंबटूर के लिए रवाना हुए, जहां उनकी आजीविका स्थापित हो चुकी है। बेगूसराय के बरबीघी निवासी अभिषेक कुमार (32) अपने पूरे परिवार के साथ तमिलनाडु जा रहे थे। उन्होंने बताया कि परिवार की जिम्मेदारियां और आजीविका सबसे महत्वपूर्ण हैं। बिहार में रोजगार की न तो बेहतर व्यवस्था है और न ही पर्याप्त अवसर। उन्हें तमिलनाडु में बेहतर रोजगार मिला है, जिसके कारण वे पिछले सात वर्षों से अपने परिवार के साथ कोयंबटूर में रह रहे हैं। कहा- चुनाव मुद्दा नहीं परिवार और पैसा बेहद अहम है सीतामढ़ी के रहने वाले पिंटू कुमार ( 46) ने बताया कि पैसे के अभाव में बिहार से पलायन करना मेरी सबसे बड़ी मजबूरी है, कर्ज का काफी दबाव है। एक अच्छे भविष्य को बेहतर बनाने के लिए पैसा बेहद जरूरी होता है। जो मेहनत और परिश्रम से ही आ सकता हैं। वर्षों से तमिलनाडु के कोयंबटूर के निजी फैक्ट्री में काम करता हूं। चुनाव मुद्दा नहीं परिवार और पैसा बेहद अहम है। पिंटू कुमार ने कहा अगर बिहार में रोजगार का अवसर मिला होता, बिहार में अच्छी व्यवस्था होती, तो 3 दिनों का सफर क्यों करता, इतना मशक्कत क्यों करता। सीतामढ़ी के रहने वाले नीतीश कुमार (29) ने बताया कि बिहार में रोजगार अवसर प्राप्त नहीं हुआ, पेट का सवाल है तो पैसा कमाना ही पड़ेगा। बिहार अलावा अन्य राज्यों में बेहतर व्यवस्था और अच्छा पैसा मिलता है। कोई भी नहीं चाहता कि अपना परिवार छोड़ दूर जाकर काम करे, लेकिन साहब पेट का सवाल है। मजबूरी और विवशता दोनों हैं। बिहार में रोजगार की कमी इसलिए परेशानी वैशाली के रहने वाले धीरज कुमार ने बताया कि बिहार में रोजगार की कमी है। 20 साल से नीतीश कुमार की सरकार है और केंद्र में 11 साल से पीएम मोदी की, बिहार में नौकरी के अभाव प्रत्येक दिन हजार प्रवासी मजदूर बिहार छोड़कर अन्य राज्यों की तरफ पलायन कर रहे हैं। पढ़ने लिखने के बाद भी बिहार में रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं हुआ, जिसके कारण मुझे भी प्रदेश के तरफ पलायन करना पड़ रहा है। यही विवशता हैं। बिहार में 2 रेल कारखाने खुले लेकिन रोजगार नहीं मिला इसी तरह अन्य राज्यों में पलायन कर सैकड़ों मजदूरों ने अपनी अपनी व्यथा और पीड़ा भास्कर के कैमरे पर बताई। मजदूर राजू मुखिया, रंजीत, रुदल, कृष, शंकर ने बताया कि बिहार में दो रेल कारखाने जरूर खुले, लेकिन स्थानीय स्तर पर रोजगार का वैसा बड़ा सृजन नहीं हुआ, जिसकी उम्मीद की गई थी। इस कारण घर चलाने के लिए बाहर जाना ही मजबूरी बन गया है।उन्होंने कहा कि इसी वजह से चुनाव में पहले मतदान करने की अपील भी अधिक असर नहीं डाल पाती, क्योंकि पहले नौकरी सुरक्षित करना जरूरी है। सरकार पर जताई नाराजगी बिहार की सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा कि एक समय था जब प्रदेश में चीनी मिलें, भागलपुर का सिल्क उद्योग और गन्ने की खेती से जुड़ा स्थानीय व्यापार मजबूत था। लेकिन सारण की मार्टन मिल, सारण इंजीनियरिंग कंपनी सहित कई उद्योगों के बंद होने के बाद जिला उद्योग हीन हो गया।


