AI चिप युद्ध में एनवीडिया का मास्टरस्ट्रोक! ग्रोक के साथ लाइसेंसिंग डील, क्या बदलेगी बाजी?

AI चिप युद्ध में एनवीडिया का मास्टरस्ट्रोक! ग्रोक के साथ लाइसेंसिंग डील, क्या बदलेगी बाजी?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में प्रतिस्पर्धा लगातार तेज हो रही है, लेकिन इस बीच एनवीडिया और स्टार्टअप ग्रोक के बीच हुआ ताज़ा समझौता खासा चर्चा में है। ग्रोक ने बुधवार को जानकारी दी कि उसने अपनी चिप टेक्नोलॉजी को लेकर एनवीडिया के साथ लाइसेंस समझौता किया है और इसके साथ ही उसके संस्थापक और सीईओ जोनाथन रॉस अब एनवीडिया की टीम का हिस्सा बनेंगे।
बता दें कि जोनाथन रॉस इससे पहले गूगल में एआई चिप प्रोग्राम की नींव रखने वालों में शामिल रहे हैं। उनके साथ ग्रोक के प्रेसिडेंट सनी मद्रा और कई वरिष्ठ इंजीनियर भी एनवीडिया में शामिल हो रहे हैं। हालांकि, कंपनी ने स्पष्ट किया है कि ग्रोक एक स्वतंत्र इकाई के तौर पर काम करती रहेगी और उसका क्लाउड कारोबार पहले की तरह जारी रहेगा।
मौजूद जानकारी के अनुसार, यह सौदा पूर्ण अधिग्रहण नहीं है बल्कि एक नॉन-एक्सक्लूसिव लाइसेंस समझौता है। हालांकि, डील की वित्तीय शर्तों का खुलासा नहीं किया गया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि एनवीडिया ग्रोक को करीब 20 अरब डॉलर में खरीद सकता है, लेकिन दोनों कंपनियों ने इस पर कोई पुष्टि नहीं की है।
गौरतलब है कि ग्रोक उन चुनिंदा स्टार्टअप्स में शामिल है जो एआई मॉडल के ‘इंफरेंस’ यानी तैयार मॉडल से जवाब निकालने वाली तकनीक पर काम करते हैं। इस क्षेत्र में एनवीडिया को एएमडी, सेरेब्रस सिस्टम्स और अन्य स्टार्टअप्स से कड़ी चुनौती मिल रही है। ग्रोक की खासियत यह है कि वह पारंपरिक हाई-बैंडविड्थ मेमोरी की बजाय ऑन-चिप मेमोरी का इस्तेमाल करता है, जिससे स्पीड बढ़ती है, हालांकि मॉडल का आकार सीमित हो जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह सौदा उस ट्रेंड का हिस्सा है जिसमें बड़ी टेक कंपनियां स्टार्टअप्स को पूरी तरह खरीदने के बजाय उनके टैलेंट और टेक्नोलॉजी को लाइसेंस के जरिए अपने साथ जोड़ रही हैं। हाल के वर्षों में माइक्रोसॉफ्ट, मेटा और अमेज़न भी इसी तरह के सौदे कर चुके हैं।
गौरतलब है कि ग्रोक की वैल्यूएशन हाल ही में 2.8 अरब डॉलर से बढ़कर 6.9 अरब डॉलर हो गई थी। वहीं, एनवीडिया के सीईओ जेन्सन हुआंग पहले ही संकेत दे चुके हैं कि कंपनी एआई ट्रेनिंग से आगे बढ़कर इंफरेंस मार्केट में भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
जानकारों का मानना है कि नियामक संस्थाएं ऐसे सौदों पर नजर बनाए रखेंगी, क्योंकि इनमें प्रतिस्पर्धा से जुड़े सवाल उठ सकते हैं। हालांकि, फिलहाल इस समझौते को एआई इंडस्ट्री में शक्ति संतुलन बदलने वाला कदम माना जा रहा है।

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