गन्ने की खेती में नया प्रयोग…आई-वर्ड पद्धति से बीज तैयार:इससे 80% कम लगे बीज, युवा किसान भुपेन्द्र ने 70% तक कम कर ली लागत

गन्ने की खेती में नया प्रयोग…आई-वर्ड पद्धति से बीज तैयार:इससे 80% कम लगे बीज, युवा किसान भुपेन्द्र ने 70% तक कम कर ली लागत

कबीरधाम जिले के ग्राम दुल्लापुर-रानीसागर के किसान भुपेन्द्र डहरिया ने खेती में आधुनिक विज्ञान और तकनीक का सही उपयोग करते हुए इसे केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि लाभकारी व्यवसाय बना लिया। एमएससी हॉर्टिकल्चर की पढ़ाई कर चुके भुपेन्द्र ने परंपरागत खेती से आगे बढ़ते हुए आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाया। गन्ना की खेती में भुपेन्द्र ने बीज उत्पादन की एक नई और प्रभावी तकनीक अपनाई है। उन्होंने आई वर्ड यानी गन्ने की गठान काटकर स्वयं बीज तैयार किए। इस तकनीक से उन्हें लगभग 80 प्रतिशत तक बीज की बचत हुई। दरअसल, गन्ना के गठान के हिस्सा आंख की तरह नजर आता है। इसलिए इसे आई वर्ड कहा जाता है। आधुनिक तकनीक में किसान सिर्फ गठान के इसी हिस्से को काटकर उसका बीज के रूप में इस्तेमाल करते हैं। बाकी का हिस्सा बेचकर अतिरिक्त आय ली जा सकती है। युवा किसान भुपेन्द्र के पास 8 एकड़ पैतृक जमीन है, जबकि 20 एकड़ भूमि उन्होंने लीज पर लेकर खेती की। उन्होंने वर्ष 2017 में खेती की शुरुआत की थी। वर्तमान में वे 3 एकड़ में केला, 3 एकड़ में गन्ना और शेष भूमि में धान की खेती कर रहे हैं। जहां पहले प्रति एकड़ गन्ना बीज पर करीब 15 हजार रुपए खर्च होते थे। वहीं अब यह खर्च घटकर मात्र 4000 रुपए प्रति एकड़ रह गया है। एक गन्ना पौधे से लगभग 20 बीज तैयार किए जा सकते हैं, जो करीब 8 महीने में पूरी तरह तैयार हो जाते हैं। इसके साथ ही उन्होंने गन्ना की लाइन विधि और गैप पद्धति से बुवाई कर पैदावार में वृद्धि की। इससे 500-600 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन ले रहे हैं। आधुनिक तकनीक के कारण उन्हें गन्ना की खेती से प्रति एकड़ औसतन दो लाख रुपए तक की कमाई हो रही है। मिट्टी और पानी की बचत के लिए उन्होंने ड्रिप इरिगेशन और फसल अवशेष मल्चिंग तकनीक को भी अपनाया, जिससे फसल की गुणवत्ता बेहतर हुई और रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि हुई। केले की खेती में भी उन्होंने नवाचार किया। जैविक खाद के प्रयोग से लागत कम हुई और उत्पादन में सुधार आया। उन्होंने बताया कि गन्ना के साथ सब्जियों और गेहूं, मटर-मक्का की अंतर बुवाई कर मिश्रित खेती को बढ़ावा दिया। इससे उनकी आय के स्रोत बढ़े और खेती से जुड़ा जोखिम भी कम हुआ। भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए भुपेन्द्र डहरिया जैविक खाद और नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। साथ ही वे फसल चक्र अपनाकर मिट्टी की सेहत को सुरक्षित रख रहे हैं। उनकी सफलता से क्षेत्र के अन्य किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। कबीरधाम जिले के पोंड़ी, बोड़ला, लोहारा, मुंगेली, बेमेतरा सहित कई गांवों के किसान उनके खेतों का निरीक्षण कर आधुनिक तकनीकों को अपनी खेती में अपना रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गन्ना बीज उत्पादन की यह तकनीक और लाइन विधि से बुवाई को व्यापक रूप से अपनाया जाए, तो राज्य में उत्पादन बढ़ने के साथ किसानों की आय में भी सुधार हो सकती है। भुपेन्द्र का कहना है कि खेती अब केवल परंपरा नहीं रही, बल्कि विज्ञान और तकनीक के माध्यम से इसे अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है। इन प्रगतिशील किसान से और जानें… 9981340099

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