सबसे पहले राष्ट्र ही अटल के जीवन का मूल मंत्रः राधाकृष्णन

सबसे पहले राष्ट्र ही अटल के जीवन का मूल मंत्रः राधाकृष्णन

नई दिल्ली। अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन में राष्ट्र सबसे पहले था और यही उनके जीवन का मूल मंत्र था। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने मंगलवार को यहां उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की पुस्तक, सनातन संस्कृति की अटल दृष्टि का विमोचन करते हुए यह विचार व्यक्त किए।

उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि वाजपेयी की सबसे बड़ी विशेषता उनके सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता थी। वे कोमल, उदार, सौम्य और अत्यंत काव्यात्मक व्यक्तित्व के धनी थे, किंतु विचारों में कभी समझौता नहीं करते थे और पूरी तरह दृढ़ रहते थे। उनका जीवन राष्ट्र प्रथम, पार्टी बाद में और स्वयं सबसे अंत मैं,के आदर्श को समर्पित था। वास्तव में, उनके जीवन में ‘स्व’ के लिए कोई स्थान नहीं था। राधाकृष्णन ने कोयंबटूर के शास्त्री मैदान में वाजपेयी की सभा के आयोजन का भी जिक्र किया। वाजपेयी एक राष्ट्रनिर्माता थे, जिन्होंने मेट्रो रेल, आधारभूत ढांचा, पोखरण परमाणु परीक्षण जैसे युगांतरकारी निर्णयों से भारत को वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास से खड़ा किया। उन्होंने कहा कि देवनानी की यह पुस्तक वाजपेयी के राष्ट्रवादी विचारों, मूल्यों और सेवाभाव का वैचारिक वसीयतनामा है।

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सनातन, हिंदू और भारतीय संस्कृति एक ही चेतना के नामः गडकरी

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति और भारतीय संस्कृति पर पिछले दशकों में जो भ्रांतियां फैलाई गईं, उन्हें दूर करना आवश्यक है। ये शब्द परस्पर विरोधाभासी नहीं हैं, बल्कि एक ही भाव के द्योतक हैं। गडकरी अटल बिहारी वाजपेयी के उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति कभी संकुचित, सांप्रदायिक या जातिवादी नहीं रही, बल्कि न्याय, समभाव और सभी के साथ समान व्यवहार की पक्षधर रही है। उन्होंने सेकुलर शब्द के वास्तविक अर्थ सर्वधर्म समभाव को समझने पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि वासुदेव देवनानी ने कहा कि अटल जी के जीवन और विचारों को केंद्र में रख जो सकारात्मक और प्रामाणिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है वह सराहनीय है।

अटल से नई पीढ़ी भी सोशल मीडिया पर हो रही प्रेरितः आम्बेकर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर ने कहा कि स्वतंत्र भारत में अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज पूरे देश में राष्ट्र के स्वाभिमान की आवाज बन कर गूंजी थी। सार्वजनिक जीवन में एक नेतृत्वकर्ता को कैसा होना चाहिए यह वाजपेयी ने अपने जीवन से प्रस्तुत किया था। अंतिम व्यक्ति की उनको चिंता रहती थी। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और सोशल मीडिया पर नई पीढ़ी भी उनके विचारों से जुड़ती है। उन्होंने ऐसा साहित्य रचा जो हमेशा प्रासंगिक रहा।

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सनातन संस्कृति के मूल्यों से सर्वोच्च शिखर तक

राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि यह पुस्तक वाजपेयी के जीवन, विचार और कृतित्व को सनातन संस्कृति के मूल्यों के आलोक में समझने का प्रयास है। एक प्रचारक से प्रधानमंत्री तक की उनकी यात्रा इस बात का प्रमाण है कि सनातन संस्कृति के मूल्य व्यक्ति को राष्ट्रसेवा के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा सकते हैं। देवनानी ने कहा कि शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने पाठ्यक्रमों में भारतीय दृष्टिकोण को सशक्त करने का प्रयास किया। इतिहास लेखन में दृष्टि परिवर्तन की आवश्यकता के कारण ही पाठ्यपुस्तकों में अकबर महान के स्थान पर महाराणा प्रताप महान को स्थापित किया गया, क्योंकि महाराणा प्रताप भारतीय स्वाभिमान, त्याग और राष्ट्रधर्म के प्रतीक हैं। इस वैचारिक साहस की उन्हें संघ के संस्कारों से प्रेरणा मिली। कार्यक्रम को नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष मिलिंद मराठे ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में केन्द्रीय राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी भी मौजूद रहे। राजस्थान से बड़ी संख्या में लोग इस कार्यक्रम में सहभागिता करने यहां आए।

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