डॉक्टरी पर्ची से या अपनी मनमर्जी से, एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा पहले असर दिखाता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे शरीर पर इस दवा का असर कम होना शुरू हो जाता है। नतीजा यह होता है कि बीमारी बनी रहती है, लेकिन दवा बेअसर हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन – डब्ल्यूएचओ (World Health Organization – WHO) की नई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
डब्ल्यूएचओ ने दी चेतावनी
डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से शरीर पर इनका असर कम हो रहा है। दुनियाभर के लिए यह एक गंभीर विषय बन चुका है।
अब हर 6 में से एक संक्रमण पर एंटीबायोटिक दवा बेअसर
‘ग्लोबल एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस सर्विलांस रिपोर्ट-2025’ में 104 देशों के 2.3 करोड़ मामलों के विश्लेषण से पता चला कि अब हर 6 में से एक संक्रमण पर एंटीबायोटिक दवा बेअसर साबित हो रही है। यानी कि जिन दवाओं को जीवनरक्षक कहा जाता था, वो अब बीमारी रोक नहीं पा रहीं।
स्वास्थ्य ढांचा हो रहा कमज़ोर
भारत (India) जैसे देशों में बिना डॉक्टरी पर्चे के भी एंटीबायोटिक दवाएं आसानी से मिल जाती हैं। इससे स्थिति और गंभीर हो सकती है। कम आय वाले देशों में स्वास्थ्य ढांचा कमज़ोर हो रहा है, जो चिंता का विषय है।
वैकल्पिक चिकित्सा की भूमिका
भारत के लिए संभावित राहत का रास्ता आयुर्वेद, योग, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी में मिल सकता हैं। आयुष पद्धतियों में रोग की जड़ पर काम करने, प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व एंटीबायोटिक उपयोग को घटाने पर जोर दिया जाता है। योग और ध्यान तनाव घटाकर शरीर को संक्रमण से लड़ने में सक्षम बनाते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार यदि इन परंपरागत पद्धतियों को आधुनिक चिकित्सा के साथ संतुलित ढंग से अपनाया जाए, तो एंटीबायोटिक के अंधाधुंध इस्तेमाल से बचा जा सकता है।


