Nagaur patrika news…वैभव प्राप्त होने के बाद भी सुदामा की भक्ति निश्छल बनी रही

Nagaur patrika news…वैभव प्राप्त होने के बाद भी सुदामा की भक्ति निश्छल बनी रही

नागौर. रामपोल स्थित सत्संग भवन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा का बुधवार को सातवें दिन समापन हुआ। कथा का आयोजन रामनामी महंत मुरलीराम महाराज के पावन सानिध्य में किया गया। इस दौरान संत हेतमराम महाराज ने श्रद्धालुओं को सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष की भावपूर्ण कथा सुनाई। उन्होने कहा कि भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र हैं। संसार में लोग स्वार्थ के कारण प्रेम करते हैं, जबकि परमात्मा निस्वार्थ भाव से प्रेम करते हैं। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मित्र हो तो भगवान श्रीकृष्ण जैसा हो। कहने का अर्थ यह है कि जो एक बार अपनेपन का भाव बना लेता है तो उसे कभी नहीं भूलता। आज के समय में लोग पद और प्रतिष्ठा मिलने पर माता-पिता और भाइयों तक को भूल जाते हैं, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बचपन के गरीब मित्र सुदामा को वह सम्मान दिया। जो बड़े-बड़े राजा महाराजा को भी नहीं मिला। भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को इन्द्र के समान संपत्ति प्रदान की, लेकिन अपार सुख-संपत्ति मिलने के बाद भी सुदामा ने भजन और साधना को नहीं छोड़ा, बल्कि और अधिक बढ़ा दिया। संत हेतमराम महाराज ने कहा कि आज लोगों के पास साधन तो बहुत हैं, लेकिन साधना नहीं है। इसी कारण व्यक्ति दुखी रहता है। सुख साधनों से नहीं, बल्कि भजन-साधना से प्राप्त होता है। जैसे नमक के बिना भोजन फीका लगता है, वैसे ही भजन के बिना जीवन नीरस हो जाता है। उन्होंने तपस्या का महत्व बताते हुए कहा कि जैसे कोयला अग्नि में तपकर चमकने लगता है, वैसे ही साधना और तपस्या से मानव जीवन भी दिव्य और तेजस्वी बनता है। कलयुग के कलुषित प्राणियों के कल्याण के लिए भगवान श्रीकृष्ण शब्द-विग्रह के रूप में श्रीमद्भागवत के रूप में विराजमान हैं, जिनके श्रवण मात्र से जीव का कल्याण होता है।

सुदामा चरित्र व परीक्षित मोक्ष के साथ कथा की पूर्णाहुति
सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष की कथा के साथ श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति हुई। इस अवसर पर श्रीकृष्ण और सुदामा की सुंदर झांकी सजाई गई। अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, दर पे सुदामा गरीब आ गया है भजन सुनकर श्रद्धालु भक्ति के रंग में रंगे रहे। मेरे सिर पर रख दो गुरुवर अपने ये दोनों हाथ भजन पर श्रोता मुग्ध रहे। इस दौरान आचार्य भगवानदास महाराज, संत राजाराम महाराज, संत माणकराम महाराज, नंदकिशोर बजाज, मदनमोहन बंग, गोविंद झवर, दीनदयाल शर्मा आदि मौजूद थे।

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