मूवी रिव्यू- जस्सी वेड्स जस्सी:हल्द्वानी की सादगी में बसती एक मीठी, देसी कॉमेडी, हंसाते-हंसाते पुरानी यादें ताजा करती फिल्म

90 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म ‘जस्सी वेड्स जस्सी’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह फिल्म 90 के दशक की उस देसी सादगी और मासूमियत को वापस लेकर आती है, जब ह्यूमर हालातों से निकलता था, न कि बनावटी पंचों से। स्केल छोटा है, लेकिन दिल से बनी फिल्म है। परन बावा के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में हर्षवर्धन सिंह देओ, रहमत रतन, रणवीर शौरी, सिकंदर खेर, सुदेश लहरी, मनु ऋषि चड्ढा, ग्रूशा कपूर की अहम भूमिका है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 14 मिनट है। इस फिल्म को दैनिक भास्कर ने 5 में से 3 स्टार की रेटिंग दी है। फिल्म की कहानी क्या है? फिल्म की कहानी 1996 के हल्द्वानी की है। जहां जस्सी (हर्षवर्धन सिंह देओ) को सच्चे प्यार की तलाश है। उसे मिलती है जसमीट (रहमत रतन), लेकिन दोनों की राह में आ जाता है एक और जस्सी, जसविंदर (सिकंदर खेर), और वहीं से शुरू होती है गलतफहमियों और कंफ्यूजन की कॉमिक जर्नी। इसके साथ कहानी में आते हैं सेहगल (रणवीर शौरी) और उनकी पत्नी स्वीटी (ग्रूशा कपूर), जिनकी वैवाहिक टकरार और देसी घरेलू ड्रामा फिल्म को और मजेदार बनाते हैं। छोटे शहर का माहौल और 90 के दशक का स्वाद कहानी में एक अलग ही नॉस्टैल्जिया जोड़ते हैं। स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है? हर्षवर्धन सिंह देओ अपनी भूमिका में सहज और ईमानदार हैं। रहमत रतन स्क्रीन पर बहुत नैचुरल लगती हैं और उनके एक्सप्रेशन्स फिल्म को ताजगी देते हैं। रणवीर शौरी की टाइमिंग हमेशा की तरह शार्प है वे कई दृश्यों में हंसी का असली कारण बनते हैं। सिकंदर खेर की एंट्री थोड़ी गंभीर लगती है, लेकिन आगे जाकर उनकी कॉमिक टोन अच्छा सरप्राइज देती है। सुदेश लहरी और मनु ऋषि चड्ढा फिल्म में देसी ह्यूमर का जमीन से जुड़ा स्वाद जोड़ते हैं। ग्रूशा कपूर हर सीन में बेहद वास्तविक लगती हैं। फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पहलू कैसा है? परन बावा का निर्देशन अच्छा और ईमानदारी से किया गया है। उन्होंने फिल्म में कॉमेडी को बहुत स्वाभाविक रखा है और कई जगह मजेदार सीन बढ़िया तरीके से दिखाए हैं। लेकिन फिल्म में कुछ कमजोरियां भी हैं। पहला हिस्सा थोड़ा धीमा चलता है और कहानी शुरू होने में समय लगता है। कुछ सीन बार-बार जैसे लगते हैं। एडिटिंग थोड़ी और टाइट हो सकती थी। कुछ मजाक असर नहीं करते, हालांकि कई कॉमिक सिचुएशन काफी अच्छे हैं। कुछ जगह सीन अचानक कटते हैं, जिससे फिल्म की रफ्तार टूटती है। किरदारों की बैक स्टोरी बहुत सीमित है और जसमीट-जस्सी की शुरुआती बॉन्डिंग में थोड़ी और गहराई होती तो भावनात्मक असर ज्यादा होता। क्लाइमेक्स में थोड़ा ज्यादा ड्रामा है, जिससे हल्की-फुल्की कहानी के बीच अंत कुछ भारी लगता है। फिर भी, रामलीला वाला सीन फिल्म का सबसे मजेदार पल है। रचनात्मक, हास्यास्पद और बहुत मनोरंजक। आर्ट डायरेक्शन और लोकेशन्स से हल्द्वानी का 90 के दशक वाला माहौल अच्छी तरह झलकता है। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? फिल्म का संगीत इसकी सबसे बड़ी ताकत है। चमकीला, मेकअप ना लाया कर, भूल जावांगा और इश्क-ए-देसी, जैसे गाने कहानी का हिस्सा लगते हैं, बोझ नहीं। इनमें 90 की मिठास और आज की ताजगी दोनों है। कुछ ट्रैक पहले ही सोशल मीडिया पर लोकप्रिय हैं। फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं? जस्सी वेड्स जस्सी कोई बड़ी या भव्य कॉमेडी नहीं है। यह एक छोटी, ईमानदार और दिल से बनी फिल्म है, जिसमें नॉस्टैल्जिया भी है, देसी हास्य भी और रिश्तों की हल्की गर्माहट भी। फिल्म का पहला हाफ ढीला, कुछ जोक्स औसत, और टेक्निकल स्कोप सीमित है, लेकिन फिल्म का दूसरा हिस्सा पकड़ बनाता है और अंत में मुस्कान छोड़ जाता है।

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