हिड़मा की मां बोली थी- लौट आओ बेटा:पूवर्ती में कमाई करके खाएंगे-जिएंगे, 8वें दिन एनकाउंटर, बचपन में थामा हथियार, 300 से ज्यादा कत्ल

“हिड़मा बेटा घर लौट आओ, कहां पर हो आ जाओ कह रही हूं। नहीं आ रहा है तो मैं कैसे करूं, कहीं आसपास रहता तो ढूंढने जाती। और क्या कहूं बेटा, आजा। यहीं पूवर्ती में कमाई करके खाएंगे और जिएंगे। जनता के साथ रहकर जी लेना, लेकिन घर लौट आ बेटा।” ये बातें मोस्ट वांटेड नक्सली माड़वी हिड़मा की मां माड़वी पुंजी ने एनकाउंटर से 8 दिन पहले कही थी। मां ने अपील की थी कि अब मेरी उम्र चैन के साथ जीने की है। इस उम्र में मैं आराम करना चाहती हूं। तुम घर लौट आओगे तो मैं चैन से जी सकूंगी। मां की अपील पर हिड़मा नहीं लौटा और मारा गया। हिड़मा ने 15 साल की उम्र में ही हथियार उठा लिया था। इसने लगभग 35 साल में 300 से ज्यादा लोगों का कत्ल किया। इनमें ज्यादातर जवान थे। 76 CRPF जवानों की हत्या का मास्टरमाइंड भी था। इस वारदात ने देश को हिलाकर रख दिया था। वहीं 31 लोगों को राहत शिविर कैंप में जिंदा जलाकर मार डाला था। इस रिपोर्ट में पढ़िए देवा से खूंखार नक्सली माड़वी हिड़मा बनने की पूरी कहानी…. सबसे पहले जानिए एनकाउंटर की कहानी दरअसल, 18 नवंबर को माड़वी हिड़मा छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश बॉर्डर पर मारा गया। ये नक्सल संगठन में सेंट्रल कमेटी का सदस्य था। इस पर 1 करोड़ रुपए का इनाम घोषित था। छ्त्तीसगढ़ में नक्सल संगठन का फ्रंट लाइन का लीडर था। घर में इसकी मां इसे देवा नाम से पुकारती थी। 26 से ज्यादा बड़े हमले का मास्टरमाइंड और करीब 300 से ज्यादा जवानों और आम नागरिकों की हत्या का जिम्मेदार था। वर्तमान में अपने करीब 160 से 170 साथियों के साथ जंगल में घूमता था। 8 से 10 महीने पहले कर्रेगुट्टा के जंगल और पहाड़ पर हिड़मा का ठिकाना हुआ करता था। कर्रेगुट्टा के जंगलों में फोर्स के ऑपरेशन के बाद ये पहले छत्तीसगढ़ से तेलंगाना भागा, फिर वहां से आंध्र प्रदेश आया। जंगल में छिपा हुआ था। इसी बीच इंटेलिजेंस की पुख्ता इनपुट के बाद जवानों ने हिड़मा और इसकी पत्नी राजे समेत 6 नक्सलियों का एनकाउंटर कर दिया। अब जानिए देवा से खूंखार नक्सली माड़वी हिड़मा बनने की कहानी माड़वी हिड़मा सुकमा जिले के पूवर्ती गांव में जन्मा। हिड़मा की उम्र अभी करीब 50 साल थी। हाइट 5.5 फीट थी। ये बचपन से ही फुर्तीला और तेज दिमाग का था। प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की। करीब 15-16 साल का था, तब नक्सली इसे अपने साथ लेकर चले गए थे। नक्सल संगठन में ‘बाल संघम’ में शामिल किया। नक्सलियों की जनताना स्कूल में इसने पढ़ाई की। यहीं पहली बार हथियार पकड़ा। हिड़मा के फुर्तीले शरीर को देखते हुए नक्सलियों ने अपने LOS (लोकल ऑब्जर्वेशन स्क्वायर्ड) ग्रुप में शामिल किया। हिड़मा की रची गई साजिश में नक्सलियों को कई बड़ी सफलताएं मिली। कोंटा एरिया कमेटी का बनाया गया था कमांडर हिड़मा पहले नारायणपुर, बीजापुर, गढ़चिरौली में कई साल तक एक्टिव रहा, फिर बड़े लीडरों ने इसे कोंटा एरिया कमेटी के जॉइंट प्लाटून का कमांडर बनाकर भेजा। ये यहां मिनपा, टेकलगुडेम, बुरकापाल जैसे इलाकों में लगातार मूवमेंट करता रहा। हिड़मा ने नक्सल संगठन को लगातार सफलताएं दी थीं। प्लाटून कमांडर, कंपनी कमांडर भी था। वहीं नक्सलियों ने इसे मिलिट्री बटालियन नंबर-1 का कमांडर और DKSZCM (दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी मेंबर) बनाया। नक्सलियों की इस बटालियन में लगभग 300 से 400 नक्सली थे। जिसकी कमांड हिड़मा के हाथों में थी। 2006-7 से लेकर 2022 तक बस्तर में हुई सभी बड़ी घटनाओं का हिड़मा ही मास्टरमाइंड था। करीब डेढ़ साल पहले ही इसे सेंट्रल कमेटी में शामिल किया गया था। सलवा जुडूम के समय संगठन में कमाया बड़ा नाम साल 2001 से 2005-6 के बीच बस्तर में सलवा जुडूम का दौर चल रहा था। आदिवासी नक्सलियों के खिलाफ ही खड़े हो रहे थे। तब नक्सलियों ने कई गांवों को बंदूक के बल पर खाली करवा दिया था। हत्या, लूट, आगजनी जैसी वारदातें हिड़मा करता था। 2006 में एर्राबोर के राहत शिविर कैंप को आग लगाने के बाद आंध्र और तेलंगाना के बड़े लीडर्स की ज्यादातर नजर इसपर होती थी। इसके बाद 2008-9 में इसे बटालियन का कमांडर इन चीफ बनाया गया था। कमांडर बनने के बाद इसने बस्तर में नरसंहार शुरू किया था। सैकड़ों हत्याएं की। पीछे पलटकर नहीं देखा। 25-31 लोगों को जिंदा जलाकर मार डाला था हिड़मा 16-17 जुलाई 2006 में हिड़मा के नेतृत्व में नक्सलियों ने सुकमा जिले के एर्राबोर राहत शिविर कैंप को आग के हवाले कर दिया था। इस वारदात में करीब 25 से 31 लोग जिंदा जल गए थे, जबकि 20 लोग घायल हुए थे। जिंदा जलाकर मार डालने से ग्रामीण दहशत में थे। वहीं 21 अप्रैल 2012 को सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन (IAS) का अपहरण करने का ये मास्टरमाइंड था। एलेक्स पॉल मेनन को नक्सलियों ने किडनैप कर लिया था। लोगों को लग रहा था कि कलेक्टर को हिड़मा मार डालेगा, लेकिन बाद में कलेक्टर को रिहा कर दिया गया था। झीरम घाटी हमले में हिड़मा का था हाथ इसके साथ ही 25 मई 2013 को झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला किया गया था। इस वारदात में कांग्रेस के 32 नेता और जवान शहीद हुए थे। इस वारदात में भी नक्सलियों की PLGA बटालियन नंबर-1 का हाथ होना बताया गया था। इसका कमांडर हिड़मा था। अपनी टीम में बेस्ट लाल लड़ाकों को रखा था हिड़मा माड़वी हिड़मा की प्लानिंग या फिर एंबुश को तोड़ना काफी मुश्किल था। जब साल 2008-9 में PLGA बटालियन नंबर 1 का ये कमांडर बना तो इसने नक्सल संगठन के बेस्ट लड़ाकों को अपनी टीम में शामिल किया। ये लड़ाके AK-47, इंसास, SLR, स्नाइपर जैसे ऑटोमैटिक वेपंस से लैस थे। गुरिल्ला युद्ध में मास्टर थे। हिड़मा खुद ही अपने लाल लड़ाकों को ट्रेनिंग देता था।हिड़मा नक्सल नियमों का सख्त और कड़क मिजाज का था। ये नक्सलियों के मिलिट्री विंग का सबसे पावरफुल लीडर था। अब इसके एनकाउंटर से बस्तर में नक्सलवाद लगभग खत्म होने की कगार पर होगा। बंदूकें बनाता था, हल्बी-गोंडी के अलावा अंग्रेजी भी सीखी LOS में शामिल होने से पहले हिड़मा ने हथियार बनाने की ट्रेनिंग ली थी। वो संगठन के लिए बंदूकें बनाने लगा था। साथ ही हैंड ग्रेनेड बनाने का काम करता था। कम समय में ही इसने महारत हासिल कर ली थी। नई तकनीक सीखने का शौकीन था। कक्षा 6वीं-7वीं तक ही पढ़ाई किया था। हल्बी और गोंडी बोली के अलावा अंग्रेजी भाषा का भी उसे ज्ञान था। संगठन में रहते तेलगु कैडर्स से इंग्लिश बोलना और समझना सीखा था। हिड़मा जितना शांत रहता था उतना ही अपने काम में तेज था। अब जानिए हिड़मा को क्यों बनाया गया CCM? 2020 के बाद से छत्तीसगढ़ के नक्सली और आंध्र तेलंगाना के नक्सलियों के बीच आपसी मतभेद होना शुरू हो गया था। बस्तर के नक्सली लगातार आंध्र-तेलंगाना के बड़े कैडर्स के नक्सलियों का विरोध कर रहे थे। बड़े कैडर पर बस्तर के किसी भी नक्सली को न लेने पर नाराज थे। इसके बाद नक्सलियों के पोलित ब्यूरो मेंबर्स की एक मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग के बाद माड़वी हिड़मा को DKSZCM कैडर से प्रमोशन कर इसे सीधे सेंट्रल कमेटी में शामिल कर दिया गया था। करीब डेढ़ से 2 साल पहले ही नक्सलियों ने पर्चा जारी कर इसकी पुष्टि की थी। हिड़मा को केंद्रीय कमेटी में जगह देना आंध्र तेलंगाना के नक्सलियों की भी मजबूरी थी। अगर इसे केंद्रीय कमेटी में शामिल नहीं किया जाता तो नक्सली लीडर संगठन के बिखरने का खतरा मान रहे थे। हिड़मा ने बारसे देवा को बनाया था कमांडर वहीं माड़वी हिड़मा जब केंद्रीय कमेटी में गया तो इसने अपनी जगह अपने सबसे खास और विश्वसनीय साथी बारसे देवा को अपनी बटालियन नंबर एक का कमांडर बनाया। इससे पहले बारसे देवा DVCM कैडर का था। अब ये DKSZCM कैडर का है। हिड़मा के एनकाउंटर के बाद अब खात्मे की ओर नक्सलवाद बस्तर में भले ही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के नक्सलियों ने अपना वर्चस्व कायम रखा था, लेकिन माड़वी हिड़मा ही बस्तर में नक्सलवाद को जिंदा रखने की एक कड़ी था। इसी के इशारे पर बस्तर में सैकड़ों आदिवासी युवक-युवती और बच्चे (12 से 15 साल) नक्सल संगठन में शामिल हुए थे। हिड़मा के इशारे पर ही युवक-युवती और बच्चे काम करते थे। अब हिड़मा के एनकाउंटर के बाद बस्तर में नक्सल मिलिट्री खात्मे की ओर है। कहा जा रहा है कि जो नक्सली जंगलों में बचे हैं, वह अब तेजी सरेंडर कर सकते हैं।

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