Leg Overgrowth Disorder: अमेरिका के फ्लोरिडा में रहने वाली 14 साल की जैस्मिन रामिरेज की कहानी दिल दहला देने वाली है, लेकिन उतनी ही हिम्मत देने वाली भी। एक बेहद दुर्लभ और अब तक नाम न दी जा सकी बीमारी के कारण जैस्मिन को अपनी बाईं टांग कटवानी पड़ी, वो भी करीब 17 घंटे लंबी सर्जरी के बाद। यह फैसला तब लेना पड़ा जब उसकी जान पर खतरा मंडराने लगा।
बचपन से ही अलग थी बीमारी
जैस्मिन जब सिर्फ दो साल की थी, तभी उसके शरीर में एक अजीब बदलाव दिखने लगा। उसकी बाईं टांग बाकी शरीर के मुकाबले बहुत तेजी से बढ़ने लगी। यह सिर्फ हड्डी का बढ़ना नहीं था, बल्कि नसें, धमनियां, चर्बी, मांसपेशियां सब कुछ असामान्य रूप से बढ़ रहा था। उसकी बहन अनास्ताशिया के मुताबिक, टांग का हर हिस्सा कंट्रोल से बाहर बढ़ रहा था। डॉक्टरों ने शुरू में इसे लिंफोमैटस ट्यूमर मानकर इलाज किया, लेकिन असली वजह कभी साफ नहीं हो पाई। बीमारी इतनी दुर्लभ थी कि डॉक्टर इसका सही नाम तक तय नहीं कर सके।
चलने से व्हीलचेयर तक का सफर
शुरुआत में जैस्मिन चल पाती थी, लेकिन जैसे-जैसे टांग का आकार बढ़ता गया, चलना मुश्किल होता चला गया। एक वक्त ऐसा आया जब टांग इतनी भारी हो गई कि उसे व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। कपड़े तक खास तौर पर सिलवाने पड़ते थे। अब तक जैस्मिन को कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, कई सर्जरी हुईं, लेकिन बीमारी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
संक्रमण ने बढ़ाया खतरा
हाल ही में जैस्मिन की टांग में एक एंटीबायोटिक-रेजिस्टेंट इंफेक्शन हो गया। डॉक्टरों को डर था कि अगर यह फैल गया, तो उसकी जान जा सकती है। ऐसे में परिवार के सामने बहुत मुश्किल फैसला था, या तो टांग बचाने की कोशिश जारी रखें, या उसकी जान बचाएं। आखिरकार परिवार ने अम्प्यूटेशन यानी टांग काटने का फैसला किया।
170 पाउंड की टांग, 17 घंटे की सर्जरी
जॉन्स हॉपकिन्स ऑल चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल में हुई इस सर्जरी में डॉक्टरों ने जैस्मिन की बाईं टांग काटी, जिसका वजन करीब 170 पाउंड (लगभग 77 किलो) था। साथ ही उसके पेट से एक ट्यूमर भी निकाला गया। सर्जरी के बाद जैस्मिन का कुल वजन सिर्फ 80 पाउंड रह गया।
अब कैसी है हालत?
परिवार के मुताबिक जैस्मिन अब हर दिन बेहतर हो रही है। वह बिस्तर से उठ रही है, व्हीलचेयर में बैठ पा रही है और मुस्कुरा भी रही है। उसकी बहन कहती हैं “वो सिर्फ बहादुर नहीं, एक सुपरहीरो है।
हेल्थ से जुड़ा बड़ा सबक
यह मामला बताता है कि दुर्लभ बीमारियां सिर्फ किताबों में नहीं होतीं, और जब कारण साफ न हों, तब इलाज और फैसले और भी मुश्किल हो जाते हैं। ऐसे मामलों में समय पर मेडिकल मदद, सही फैसले और मानसिक मजबूती ही सबसे बड़ा सहारा होती है।


