41 साल पुराने केस में निर्दोष को न्याय:सत्यमेव जयते ट्रस्ट की पहल से हाईकोर्ट ने कैंसर पीड़ित लाखन सिंह को बरी किया

41 साल पुराने केस में निर्दोष को न्याय:सत्यमेव जयते ट्रस्ट की पहल से हाईकोर्ट ने कैंसर पीड़ित लाखन सिंह को बरी किया

41 साल पुराने एक डकैती मामले में पैरवी के अभाव में दो माह से जिला जेल में बंद निर्दोष व्यक्ति को आखिरकार न्याय मिल गया। सत्यमेव जयते ट्रस्ट की मानवीय पहल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को त्रुटिपूर्ण मानते हुए दोषसिद्धि निरस्त की और लाखन सिंह को पूरी तरह बरी कर दिया। इस फैसले ने यह साबित किया कि न्याय देर से मिले, तब भी उम्मीद जीवित रहती है। 41 साल पुराना मामला, हाईकोर्ट से मिली राहत लाखन सिंह को वर्ष 1984 में एक लूट के मामले में आरोपी बनाया गया था। वर्ष 1987 में निचली अदालत ने उसे दोषसिद्ध कर जेल भेज दिया। बाद में हाईकोर्ट से जमानत तो मिल गई, लेकिन परिवार और आर्थिक सहारे के अभाव में वह आगे की कानूनी पैरवी नहीं करा सका। पुराने आदेश के अनुपालन में करीब दो माह पहले उसे दोबारा जिला जेल भेज दिया गया, जबकि वह स्वयं को लगातार निर्दोष बताता रहा। सत्यमेव जयते ट्रस्ट की मानवीय पहल मामला सामने आने पर सत्यमेव जयते ट्रस्ट ने इसे मानवता से जुड़ा विषय मानते हुए न्याय दिलाने की पहल की। ट्रस्ट के ट्रस्टी एवं युवा अधिवक्ता रोहित अग्रवाल, दुर्गेश शर्मा और इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक सिंह ने तथ्यात्मक आधार पर निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक प्रभावी पैरवी की। इसके बाद हाईकोर्ट ने 1987 की दोषसिद्धि को निरस्त कर लाखन सिंह को पूर्णतः निर्दोष घोषित कर दिया। गंभीर बीमारी ने बढ़ाई संवेदनशीलता लाखन सिंह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है और चिकित्सकीय सलाह के अनुसार वह जीवन के अंतिम चरण में है। परिवार और सहारे के अभाव में यदि उसे न्याय नहीं मिलता, तो यह व्यवस्था पर बड़ा सवाल होता। इसी मानवीय पहलू ने ट्रस्ट को तेजी से कार्रवाई के लिए प्रेरित किया। 20 दिसंबर को जेल से रिहाई हाईकोर्ट के आदेश के बाद जेलर नागेश सिंह और जिला कारागार प्रशासन के सहयोग से 20 दिसंबर को लाखन सिंह की रिहाई सुनिश्चित की गई। इस दौरान ट्रस्ट के महामंत्री गौतम सेठ भी मौजूद रहे। सत्यमेव जयते ट्रस्ट के अध्यक्ष मुकेश जैन, अशोक गोयल, अनिल कुमार (एडवोकेट) और नंदकिशोर गोयल ने निस्वार्थ भाव से पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं का आभार जताया। यह मामला दिखाता है कि यदि कोई साथ खड़ा हो जाए, तो दशकों बाद भी न्याय संभव है।

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