Jhalawar News : कहते हैं, जब किसी को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, तब जिंदगी भी उसे बचाने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती है। झालावाड़ शहर के भोई मोहल्ले में गुरुवार रात ऐसा ही दृश्य सामने आया। यहां 7 डिग्री सेल्सियस की कड़ाके की सर्दी में, कांटों और पत्थरों के बीच एक नवजात को यह सोच कर फेंक दिया गया कि उसकी रोने की आवाज झाड़ियों में दब जाएगी और सर्दी के सितम से प्राण निकल जाएंगे। मगर, कहते हैं ना… मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। यही हुआ…निष्ठुरता पर इंसानियत भारी पड़ गई।
खाली भूखंड में उगी कंटीली झाड़ियों के बीच, बिना कपड़ों के उलटा पटका गया यह नवजात मानो मौत के हवाले कर दिया गया था। सर्द हवा, नुकीले कांटे और घना अंधेरा-सब मिलकर उसकी नन्ही सांसों के दुश्मन बन चुके थे। तभी वहां से गुजर रही एक महिला को झाड़ियों के भीतर से आती बेहद हल्की-सी सिसकी सुनाई पड़ी। संदेह हुआ तो उसने मोबाइल की टॉर्च जलाई। सामने जो दृश्य था, उसने उसे भीतर तक हिला दिया। उसने बिना एक पल गंवाए आस-पास के लोगों को आवाज दी।
पत्रिका फोटो जर्नलिस्ट ने निभाया दायित्व
इसी दौरान पत्रिका के फोटो जर्नलिस्ट नंदकिशोर कश्यप भी मौके पर पहुंचे। पत्रकार होने के बावजूद उन्होंने कैमरे से पहले इंसानियत को चुना। झाड़ियों में उतरकर कांटों के बीच से उन्होंने नवजात को बाहर निकाला, उसे अपने शॉल में लपेटा और बिना एक भी फोटो लिए सीधे अस्पताल की ओर दौड़ पड़े।
कार्यालय से फोन आया तो बस इतना कहा, ‘मैं अभी बच्चे को अस्पताल ले जा रहा हूं, खबर बाद में बताऊंगा।’ इसी कारण वे पूरे घटनाक्रम की तस्वीरें नहीं ले सके। बाद में मौके पर मौजूद लोगों द्वारा बनाए गए वीडियो से ही फोटो उपलब्ध हो सकीं। नंदकिशोर के साथ उमेश, राजीव वर्मा सहित अन्य लोग भी तुरंत मदद के लिए आगे आए। सभी ने मिलकर नवजात को जनाना अस्पताल पहुंचाया, जहां उसे आईसीयू में भर्ती किया गया।
कांटों ने दिए जख्म, पर ज़िंदगी अभी बाकी
चिकित्सकों के अनुसार नवजात का जन्म कुछ ही घंटे पहले हुआ था। अत्यधिक ठंड और सांस लेने में परेशानी के चलते उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। कंटीली झाड़ियों और पत्थरों से उसके नन्हे शरीर पर कई जगह जख्म भी हैं, लेकिन फिलहाल उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है। घटना की सूचना मिलते ही कोतवाली पुलिस मौके पर पहुंची और मामले की जांच शुरू कर दी है।
दर्द की दास्तां
23 सितंबर: भीलवाड़ा
मुंह में पत्थर, होंठों पर फेविक्विक : बिजौलिया क्षेत्र में पत्थरों में दबा हुआ एक नवजात मिला। उसके मुंह में पत्थर ठूंसा गया था और आवाज दबाने के लिए होंठों को फेविक्विक से चिपका दिया गया। बाद में पता चला कि यह कृत्य एक अविवाहित युवती और उसके पिता ने मिलकर किया था। बच्चा अभी अस्पताल में है और जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है।
25 सितंबर : पाली
कंबल में लपेटा, झाड़ियों में फेंका : गिरादड़ा क्षेत्र के रूपावास-भांवरी रोड पर दो दिन की नवजात बच्ची को झाड़ियों में फेंक दिया गया। रामदेव मंदिर के पीछे से रोने की आवाज सुनकर लोगों ने उसे बचाया। बच्ची को कंबल में लपेटकर फेंका गया था।
16 अक्टूबर : भरतपुर
जानवर ने नोंच डाले हाथ-पैर : भरतपुर मेडिकल कॉलेज के पीछे झीलरा गांव में झाड़ियों में एक नवजात शिशु रोता हुआ मिला। जिसके हाथ-पैर की उंगलियां और गुप्तांग को जानवरों ने नोंच दिया था।


