History Of Aravali Hills: देशभर में अरावली पर्वत का मुद्दा गरमाया हुआ है दरअसल, एक नया फॉर्मूला चर्चा में है जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली के दायरे से बाहर रखने की पैरवी की जा रही है। इस चर्चा के बीच जानिए आखिर, अरावली की पहाड़ियां भारत के कितने राज्यों से होकर गुजरती है और 250 करोड़ साल पुरानी अरावली पर्वतमाला का इतिहास क्या है। राजस्थान की पहचान और उत्तर भारत की लाइफ-लाइन कहे जाने वाली अरावली पर्वतमाला आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यह महज पहाड़ियों की एक श्रृंखला नहीं है बल्कि भारत के उस गौरवशाली भौगोलिक इतिहास की गवाह है जो, हिमालय से भी करोड़ों साल पुराना है। जानकारों के मुताबिक, जब गंगा का अस्तित्व नहीं था और हिमालय जैसी पर्वत श्रृंखलाओं का जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अरावली थार रेगिस्तान के विस्तार को थामे खड़ी है।
Aravali Hills: क्यों चर्चा में है?
अरावली इन दिनों एक नए विवाद के कारण सुर्खियों में है। हाल ही में अरावली की ऊंचाई को लेकर एक नया फॉर्मूला सामने आया है जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली के दायरे से बाहर रखने की बात कही जा रही है। पर्यावरण प्रेमियों और वैज्ञानिकों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि, यदि यह पैमाना लागू होता है तो खनन माफियाओं के लिए रास्ता साफ हो जाएगा। इसी खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है जिससे यह मुद्दा राष्ट्रीय चर्चा का हिस्सा बन गया है।
हिमालय से भी पुराना है इतिहास
अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में शुमार है। जब आज के विशाल हिमालय का जन्म ही नहीं हुआ था और गंगा के मैदानों का अस्तित्व तक नहीं था तब अरावली की चोटियां आसमान छूती थीं। करीब 250 करोड़ साल पुरानी यह पर्वतमाला प्री कैम्ब्रियन युग की देन है। राजस्थान के माउंट आबू में स्थित गुरु शिखर (5,650 फीट) इसकी सबसे ऊंची चोटी है जो आज भी इसके प्राचीन वैभव की याद दिलाती है। यह पहाड़ तब बने थे जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में टकरा रही थीं और महाद्वीपों का आकार बदल रहा था।
Aravali Hills: इन राज्यों में फैली है अरावली
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक अरावली पर्वतमाला की लंबाई लगभग 692 किलोमीटर लंबी है। कुल मिलाकर अरावली करीब 37 जिलों में फैली मानी जाती है।
गुजरात- इसकी शुरुआत गुजरात के पालनपुर (खेड़ ब्रह्मा) से होती है।
राजस्थान- अरावली का सबसे बड़ा हिस्सा (लगभग 80%) राजस्थान में है। यहां यह सिरोही से शुरू होकर झुंझुनूं तक जाती है।
हरियाणा- राजस्थान से निकलकर यह हरियाणा के गुरुग्राम और फरीदाबाद के इलाकों को कवर करती है।
दिल्ली- इसका अंतिम छोर दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम में रायसीना हिल्स (राष्ट्रपति भवन के पास) तक माना जाता है।
थार को रोकने वाली कुदरती दीवार
अरावली महज पत्थरों की एक कतार नहीं है बल्कि, उत्तर भारत के लिए ‘क्लाइमेट बैरियर’ है। गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक फैली यह श्रृंखला करीब 670 किलोमीटर लंबी है। यह थार रेगिस्तान की रेतीली आंधियों और गर्म हवाओं को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है। इसके अलावा यह मानसून की हवाओं को दिशा देकर बारिश कराने में भी मददगार है। अगर अरावली पर्वत ना हो तो रेगिस्तान की रेतीली आंधियां जयपुर, दिल्ली और हरियाणा के उपजाऊ मैदानों को निगल सकती हैं। अरावली को नदियों की जननी भी कहा जाता है। साबरमती, बनास और लूनी जैसी नदियां इसी की गोद से निकलती हैं। यह पहाड़ियां एक प्राकृतिक वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की तरह हैं, जो पूरे एरिया के ग्राउंड वॉटर लेवल को रिचार्ज करती है। यहां के जंगलों में तेंदुए, नीलगाय और पक्षियों की सैकड़ों रेयर स्पीशीज पाई जाती हैं जो इकोलॉजिकल बैलेंस के लिए बहुत जरूरी हैं।
खतरे में अरावली को संरक्षण की दरकार
दुर्भाग्य से बीते कुछ दशकों में इलीगल माइनिंग और अंधाधुंध शहरीकरण ने अरावली को गहरे जख्म दिए हैं। कई पहाड़ियां तो नक्शे से ही गायब हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि यदि इस प्राचीन विरासत को नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ियों को भयंकर जल संकट और पर्यावरणीय आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। सरकार के ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट जैसे प्रयास सराहनीय लेकिन, नाकाफी हैं। जनभागीदारी के बिना इस अनमोल धरोहर को बचाना संभव नहीं है। अरावली को बचाना केवल पर्यावरणी मुद्दा नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व की लड़ाई है।


