जिस थाने में संतरी रहे, वहीं अब SHO बने:हवलदार से ASI बनने में 20 साल लगे; पंजाब में आतंकवाद के दौर में भी गेट पर डटे रहे

जिस थाने में संतरी रहे, वहीं अब SHO बने:हवलदार से ASI बनने में 20 साल लगे; पंजाब में आतंकवाद के दौर में भी गेट पर डटे रहे

पंजाब पुलिस में एक रोचक मामला सामने आया है। यहां एक मुलाजिम जिस थाने में संतरी रहा, वहीं अब SHO बन गया। 36 साल की सर्विस के बाद तरक्की और पढ़ाई कर पाई प्रमोशन से वह इस पद तक पहुंचे। वह 1984 में आतंकवाद के दौर में भी संवेदनशील पुलिस थाने में संतरी की ड्यूटी पर डटे रहे। हालांकि इसके लिए उन्हें लंबा इंतजार भी करना पड़ा। एक दौर तो ऐसा था कि उन्होंने कॉन्स्टेबल से ASI बनने का सपना ही छोड़ दिया था। मगर, 20 साल बाद उन्हें असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर की तरक्की मिल ही गई। इसके बाद ASI से सब इंस्पेक्टर बनने में भी उनको 10 साल लग गए। हालांकि SI के तौर पर उनका काम देखकर पुलिस विभाग ने उन्हें 2 साल में ही सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर प्रमोट कर दिया। यह कामयाबी पाई है पंजाब के मोगा में जन्मे सुरजीत सिंह ने। जो अब लुधियाना के थाना जगराओं सदर में SHO की कुर्सी संभालेंगे। संतरी से SHO बनने वाले इंस्पेक्टर सुरजीत की पूरी कहानी… आतंकवाद के दौर में भी ड्यूटी पर डटे रहे
सुरजीत सिंह ने बताया कि 1984 में आतंकवाद के दौर में उनकी पोस्टिंग बतौर संतरी बटाला में हुई। बटाला पंजाब में सबसे सेंसिटिव एरिया माना जाता था। उस दौर में थाने आतंकियों के निशाने पर रहते थे। ऐसे में थाने के गेट पर रहना एक चुनौती पूर्ण काम होता था। कई बार कुछ लोग धमकाकर भी जाते थे लेकिन स्पोर्ट्स मैन होने के कारण उनके अंदर जज्बा था और वो कभी इससे डरे नहीं। आतंकवाद के चुनौतीपूर्ण दौर में उनका तबादला लुधियाना जिले में हुआ, जहां वे तब से लगातार सेवाएं दे रहे हैं। 20 साल प्रमोशन न हो से मानसिक पीड़ा हुई
सुरजीत सिंह ने बताया कि आतंकवाद के दौर में काम करने के बावजूद उन्हें हवलदार से एएसआई बनने के लिए 20 साल इंतजार करना पड़ा। लंबे समय तक प्रमोशन न मिलने से वो मानसिक पीड़ा से जूझते रहे। उन्होंने बताया कि उनसे जूनियर प्रमोट होते गए और उन्हें प्रमोशन नहीं मिली। आखिर में 1993 के बाद 2013 में उन्हें प्रमोशन मिली। बेअदबी-गैंगरेप जैसे केसों की जांच टीम में रहे
कोटकपूरा में बेअदबी मामले के लिए बनाई गई टीम में सुरजीत सिंह को शामिल किया गया। उन्होंने इस केस की तहकीकात में शानदार काम किया और अफसरों को कई सबूत जुटाकर दिए। इसके अलावा 2019 में बहुचर्चित दाखा गैंगरेप मामले की जांच की टीम में भी सुरजीत सिंह रहे और आरोपियों को पकड़ने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। पिता सरकारी टीचर रहे, उनके नाम पर खिलाड़ियों का सम्मान
इंस्पेक्टर सुरजीत सिंह के पिता बिकर सिंह सरकारी स्कूल में टीचर थे। सुरजीत सिंह जब दसवीं कक्षा में गए तो उनके पिता ने उन्हें पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। उस समय सरकारी नौकरी मिलना बड़ी बात होती थी। उन्होंने बताया कि उनके पिता का निधन तीन साल पहले हुआ। सुरजीत सिंह का अपने पिता से बेहद लगाव रहा। उनके पिता खिलाड़ियों को हमेशा प्रेरित करते रहे। सुरजीत सिंह अब अपने पिता की स्मृति में हर साल अपने गांव के उन खिलाड़ियों को सम्मानित करते हैं जो राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में हिस्सा लेते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *