उत्तराखंड में बच्चों में मोबाइल पर रील देखने और गेम खेलने का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। कुछ बच्चों को तो मोबाइल स्क्रीन देखने की इतनी आदत लग चुकी है कि बिना मोबाइल देखे वह खाना भी नहीं खाते। लेकिन फोन की ये लत ही अब बच्चों के मानसिक सेहत पर असर डालने लगी है। सुशीला तिवारी हॉस्पिटल (एसटीएच) के मनोचिकित्सक डॉक्टर युवराज पंत का कहना है कि रील और शॉर्ट वीडियो की लत बच्चों के मस्तिष्क को लगातार बदलती तस्वीरों का आदी बना रही है। इसका नतीजा यह है कि वे किसी एक काम पर लंबे समय तक फोकस नहीं कर पा रहे हैं, इससे उनकी याददाश्त पर भी बुरा असर पड़ रहा है। डॉक्टर के अनुसार, हाल के महीनों में एसटीएच के मनोचिकित्सा विभाग में हर हफ्ते 4 से 5 बच्चे इस तरह की समस्या लेकर पहुंच रहे हैं। इनमें ज्यादातर 12 से 17 वर्ष के किशोर हैं जिन्हें मोबाइल की लत, फोकस की कमी और चिड़चिड़ापन जैसी दिक्कतें हैं। डॉक्टर ने पेरेंट्स को दी बड़ी चेतावनी डॉ. युवराज पंत ने बताया कि सोशल मीडिया जानकारी का बड़ा माध्यम है, लेकिन अत्यधिक प्रयोग मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा कि मोबाइल की लत बच्चों को अकेलापन और पारिवारिक दूरी की ओर धकेल रही है। उन्होंने आगे कहा- बच्चे व किशोर अब परिवार के बजाय स्क्रीन से जुड़ना पसंद कर रहे हैं। इससे उनके व्यवहार और भावनात्मक संतुलन पर असर पड़ रहा है। डॉक्टर ने दो मामलों का जिक्र कर बताया आखिर क्यों ये समस्या गंभीर….. पहला मामला- सोशल मीडिया के लिए घर से भागा हल्द्वानी के कक्षा 11वीं के एक छात्र को जब पेरेंट्स ने इंटरनेट न देने की बात कही, तो वह घर से भाग गया। पुलिस ने बाद में उसे दिल्ली से खोज निकाला। काउंसलिंग के दौरान पता चला कि वह सोशल मीडिया पर रील बनाने का आदी हो चुका था और इंटरनेट न मिलने पर उसने घर छोड़ने का निर्णय ले लिया था। दूसरा मामला- घंटों मोबाइल पर रहने वाला छात्र स्कूल छोड़ गया हल्द्वानी का 10वीं का छात्र मोबाइल पर दिनभर रील और वीडियो देखने का आदी था। परिजनों के टोके जाने पर उसने स्कूल जाना बंद कर दिया। बाद में डॉक्टर की काउंसलिंग से वह अब सामान्य जीवन की ओर लौट रहा है। अब पढ़िए अपने बच्चों को कैसे इस समस्या से बचाएं… डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि आज के समय में बच्चों की स्क्रीन टाइमिंग तय करना बेहद जरूरी हो गया है। लगातार मोबाइल पर नजरें गड़ाए रखने से उनका मन पढ़ाई और खेल से हटने लगता है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को ऑफलाइन गतिविधियों के लिए प्रेरित करें- जैसे शाम को साथ में टहलना, परिवार के साथ बातचीत करना या दोस्तों के साथ मैदान में खेलना। उनका कहना है कि जब बच्चे घर के माहौल में जुड़ाव महसूस करते हैं, तो वे खुद-ब-खुद स्क्रीन से दूरी बनाने लगते हैं। इस छोटे-से बदलाव से न केवल बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि परिवार के बीच भी आत्मीयता बढ़ती है।
मोबाइल से बच्चों के दिमाग पर पड़ रहा असर:हल्द्वानी में हर हफ्ते अस्पताल पहुंच रहे 5 बच्चे, डॉक्टर बोले- बच्चों को ज्यादा फोन ना दिखाएं


