इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर प्रशासनिक मशीनरी में भ्रम के कारण अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता तो मुख्य सचिव सहित विभागीय उच्चाधिकारियों व डी एम प्रयागराज को अवमानना आरोप निर्मित कर दंडित किया जाएगा। न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की एकलपीठ ने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून और उचित मुआवजे का अधिकार कानून का पालन नहीं करने वाले मुख्य सचिव सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी कोर्ट की अवमानना के लिए जिम्मेदार होंगे। विनय कुमार सिंह की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, “राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों के बीच काम का बंटवारा इस कोर्ट के ऑर्डर को लागू न करने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह राज्य सरकार की दायित्व है कि वह कोर्ट द्वारा पारित आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करे। कोर्ट ने आदेश पालन के लिए एक महीने का समय दिया है अथवा अगली सुनवाई तिथि पांच जनवरी 2026 को मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारियों को उपस्थित रहने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा, भूमि अधिग्रहण मामलों में सर्वोच्च अधिकारी मुख्य सचिव हैं, हालांकि उन पर अभी कोई आक्षेप नहीं लगाया जा रहा है। मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि राजस्व गांव भैरोपुर केवई तहसील हंडिया प्रयागराज निवासी याची की चार खातों में दर्ज जमीन का अधिग्रहण हुआ था। जिसका मुआवजा अवार्ड 1982व पूरक अवार्ड 1983मे घोषित किया गया। याची का कहना है कि उसे अभी तक मुआवज़ा नहीं मिला है। राज्य या उसकी एजेंसियों का अधिग्रहित प्लॉटों पर कब्जा भी नहीं है। उसका ही कब्जा बरकरार है।प्लॉट शुरू में सिंचाई विभाग के उपयोग के लिए अधिग्रहीत किए गए थे जो बाद में कांशीराम आवास योजना के लिए शहरी विकास विभाग को हस्तांतरित कर दिए गए। दस्तावेजों के अनुसार पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 लागू नहीं हुआ था। कोर्ट ने पाया कि नये कानून से न देने के कारण याची ने मुआवजा लेने से इन्कार कर दिया तो राज्य सरकार ने आवेदक को देय मुआवजा सरकारी खजाने में जमा कर दिया था। वर्ष 2013 के एक्ट में कहा गया कि ऐसे मामलों को समाप्त मान लिया जाएगा जिनमें 1894 के एक्ट की धारा -11 के तहत मुआवजा वितरण नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने जुलाई 2016 में याचिका को स्वीकार करते हुए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही रद कर दी थी। पारित आदेश का अनुपालन कर याची को प्लॉट वापस नहीं किए गए तो उसने अवमानना याचिका दायर की। कोर्ट ने तीन फरवरी 2017 को सरकार को आदेश पालन का समय दिया। ऐसा नहीं होने पर 27 मई 2017 को वर्तमान अवमानना याचिका दायर की गई। राज्य सरकार ने जुलाई 2016 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जो 12 सितंबर को खारिज हो गई। इसके बाद भी सरकार ने जुलाई 2016 के हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। दूसरी अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 2022 में कहा, विभागों ने किस तरह मनमानी की यह इससे साफ है कि प्रमुख सचिव ने हलफनामे में कहा है कि मुआवजा शहरी विकास विभाग को देना है। कोर्ट ने कहा, आवेदक को कानून के अनुसार मुआवजे से मतलब है। यह दो विभागों के बीच का मामला है और याची को दो विभागों के बीच शटल कॉक की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि मुख्य सचिव के अलावा अतिरिक्त मुख्य सचिव, सिंचाई विभाग, अतिरिक्त मुख्य सचिव, शहरी विकास और जिलाधिकारी प्रयागराज या तो इस अदालत से जुलाई 2016 को पारित आदेश के पूर्ण अनुपालन को दर्शाने वाला अनुपालन हलफनामा दाखिल करेंगे अथवा आरोपों के निर्धारण के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होंगे।


