Diplomacy: अमेरिका में एच-1बी (H-1B Visa) वीजा नियमों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता के बीच भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने नागरिकों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेगी। भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी करते हुए कहा है कि वह अमेरिकी प्रशासन के साथ उच्च स्तरीय संवाद (High-level Dialogue) के ज़रिये इस मुद्दे का समाधान निकालने में जुटा हुआ है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब लाखों भारतीय आईटी पेशेवर अपनी नौकरियों और भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
क्या है पूरा मामला ? अमेरिका में क्यों मची है हलचल ?
अमेरिका में हाल के दिनों में इमिग्रेशन और वर्क वीजा नीतियों को सख्त बनाने की चर्चा तेज हुई है। अमेरिकी प्रशासन की ओर से वीजा प्रक्रिया में संभावित बदलाव, जैसे न्यूनतम वेतन सीमा में भारी वृद्धि और आवंटन प्रक्रिया में सख्ती, भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। भारत से हर साल हजारों की संख्या में इंजीनियर और सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट्स एच-1बी वीजा पर अमेरिका जाते हैं। विदेश मंत्रालय ने इन आशंकाओं को गंभीरता से लेते हुए वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास को सक्रिय कर दिया है।
विदेश मंत्रालय की रणनीति: कूटनीतिक दबाव और संवाद
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया को बताया कि भारत सरकार केवल नीतिगत बदलावों पर नज़र नहीं रख रही है, बल्कि अमेरिकी अधिकारियों के साथ ‘एक्टिवली एंगेज’ है। मंत्रालय का तर्क है कि भारतीय प्रतिभा अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाने में अहम भूमिका निभाती है। भारत सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी नए नियम से भारतीय स्किल्ड लेबर की आवाजाही पर नकारात्मक असर न पड़े।
रिएक्शन: क्या कह रहे हैं कॉर्पोरेट दिग्गज ?
भारतीय आईटी उद्योग के दिग्गजों और नैसकॉम (NASSCOM) जैसे संगठनों ने सरकार के इस रुख का स्वागत किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वीजा नियमों में बिना सोचे-समझे बदलाव किए गए, तो इससे न केवल भारत की आउटसोर्सिंग कंपनियों को नुकसान होगा, बल्कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल जैसी अमेरिकी कंपनियों की इनोवेशन क्षमता पर भी असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘इकोनॉमिक कूटनीति’ (Economic Diplomacy) का दौर है और भारत को अपनी स्थिति मजबूती से रखनी होगी।
अब आने वाले दिनों में क्या होगा ?
आगामी भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच (TPF) की बैठक में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, भारतीय दल वीजा प्रक्रिया को सरल बनाने और बैकलॉग को खत्म करने के लिए डिजिटल समाधानों का प्रस्ताव दे सकता है। साथ ही, भारत सरकार अमेरिका के नए प्रशासन के साथ एक दीर्घकालिक (Long-term) समझौता करने की दिशा में भी काम कर रही है, ताकि हर चुनाव के बाद वीजा नियमों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचा जा सके।
युवाओं का बदलता रुझान और ‘रिवर्स माइग्रेशन’
इस पूरे विवाद का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि अनिश्चितता के कारण अब कई भारतीय युवा अमेरिका के बजाय यूरोप (जर्मनी, नीदरलैंड) या कनाडा का रुख कर रहे हैं। वहीं, भारत में बढ़ते ‘यूनिकॉर्न’ कल्चर और स्टार्टअप इकोसिस्टम की वजह से कई अनुभवी पेशेवर वापस भारत लौट रहे हैं। विशेषज्ञों का एक वर्ग इसे भारत के लिए ‘ब्रेन गेन’ (Brain Gain) मान रहा है, जहाँ विदेशी अनुभव लेकर आए युवा देश की प्रगति में योगदान देंगे।
अमेरिका में भारतीयों की तादाद
अमेरिका में भारतीय समुदाय की आबादी वर्तमान में एक ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गई है। नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों और विदेश मंत्रालय (MEA) की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों (Indian Americans) की कुल संख्या लगभग 54 लाख (5.4 million) को पार कर गई है। यह अमेरिका की कुल जनसंख्या का करीब 1.5% से 1.6% हिस्सा है, जो इसे अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा आप्रवासी समूह और सबसे बड़ा एशियाई जातीय समूह बनाता है। इस आबादी में लगभग 32 लाख लोग वे हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है, जबकि शेष अमेरिका में जन्मे भारतवंशी हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह समुदाय न केवल संख्या में बढ़ रहा है, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी इनका बड़ा दबदबा है, जहाँ 10 में से एक डॉक्टर भारतीय है और देश के कुल टैक्स योगदान में इनकी हिस्सेदारी लगभग 5 से 6 प्रतिशत है।


