फिल्म जटाधारा रिव्यू:क्या आस्था, विज्ञान और रहस्य का मेल दर्शकों को बांधकर रख पाता है, जानिये कैसी है फिल्म?

फिल्म जटाधारा रिव्यू:क्या आस्था, विज्ञान और रहस्य का मेल दर्शकों को बांधकर रख पाता है, जानिये कैसी है फिल्म?

सुपरनेचुरल और माइथोलॉजिकल कहानियों पर बनी ‘जटाधारा’ एक दिलचस्प कोशिश है, जो रहस्य और आस्था के बीच एक सेतु बनाने की कोशिश करती है। जी स्टूडियोज और प्रेरणा अरोड़ा द्वारा प्रेजेंट यह फिल्म विजुअल रूप से समृद्ध है, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव और गहराई में थोड़ी कमजोर पड़ती है। कहानी- रहस्य, विश्वास और भय के संगम की दास्तान कहानी शुरू होती है ‘पिशाच बंधन’ नामक प्राचीन शक्ति से, जिसे खजाने की रक्षा के लिए बनाया गया था। जब यह बंधन लालच के कारण टूटता है, तो धन पिशाचिनी (सोनाक्षी सिन्हा) का पुनर्जागरण होता है। शिवा (सुधीर बाबू) का सामना इस अद्भुत और डरावनी दुनिया से होता है, और यहीं से शुरू होता है उसका तर्क से आस्था तक का सफर। फर्स्ट हाफ धीमा और थोड़ा खिंचा हुआ महसूस होता है, जहां कहानी दिशा खोजती नजर आती है। लेकिन सेकेंड हाफ में फिल्म अपनी रफ्तार पकड़ती है, और क्लाइमेक्स में कुछ रोमांचक सीक्वेंस दिलचस्प लगते हैं। एक्टिंग- दम तो है, लेकिन असर अधूरा सुधीर बाबू ने शिवा के किरदार में सादगी और ईमानदारी रखी है, मगर स्क्रिप्ट उन्हें और गहराई दिखाने का मौका नहीं देती। सोनाक्षी सिन्हा अपनी पहली तेलुगु फिल्म में अलग कोशिश करती दिखती हैं, लेकिन उनकी परफॉर्मेंस जरूरत से ज्यादा लाउड और अननेचुरल लगता है। दिव्या खोसला आकर्षक दिखीं, जबकि शिल्पा शिरोडकर और इंदिरा कृष्णा ने भावनाओं को संतुलित रखा। फिर भी फिल्म में कोई ऐसी परफॉर्मेंस नहीं है जो दर्शक के मन में देर तक ठहर जाए। डायरेक्शन और टेक्निकल पहलू- सोच अच्छी, एक्जीक्यूशन अधूरा वेंकट कल्याण और अभिषेक जैसवाल ने कहानी में आध्यात्मिकता और विज्ञान का संगम दिखाने की कोशिश की है, लेकिन नरेटिव कई जगहों पर भटक जाता है। विजुअल्स और लोकेशंस शानदार हैं, खासकर मंदिर और अलौकिक दृश्यों में कैमरा वर्क (समीर कल्याणी) प्रभावशाली है। पर स्क्रिप्ट की असमान रफ्तार और कुछ दृश्य जिनमें भावनात्मक कनेक्ट की कमी है, असर को सीमित कर देते हैं। कहानी में उठाए गए बड़े सवाल जैसे विश्वास, अंधविश्वास और विज्ञान का टकराव दिलचस्प हैं, मगर गहराई तक नहीं उतर पाते। म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर- असर से ज्यादा शोर राजीव राज का संगीत फिल्म की थीम के साथ पूरी तरह न्याय नहीं कर पाता। “शिव स्तोत्रम” जैसे ट्रैक थोड़ी एनर्जी देते हैं, लेकिन बाकी गाने फ्लो तोड़ते हैं। कुछ जगह बैकग्राउंड स्कोर जरूरत से ज्यादा तेज महसूस होता है, जिससे सस्पेंस की जगह थोड़ी थकान आने लगती है। फाइनल वर्डिक्ट- दिलचस्प आइडिया, लेकिन अधूरा एहसास ‘जटाधारा’ एक ऐसी फिल्म है, जो अपने विषय, विजुअल्स और रहस्य से ध्यान खींचती है, लेकिन इमोशन्स और परफॉर्मेंस के स्तर पर वैसी गहराई नहीं दे पाती। जो दर्शक रहस्य, पौराणिक प्रतीक और सुपरनेचुरल कहानियों के शौकीन हैं, उनके लिए ‘जटाधारा’ एक बार जरूर देखी जा सकती है, बस उम्मीदें थोड़ी संभालकर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *