उदयपुर में भावनाओं, सपनों और अंतरिक्ष की उड़ान:अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने बच्चों को दिए जवाब, सरकारी स्कूल के बच्चों के अभिनय ने रचा इतिहास

उदयपुर में भावनाओं, सपनों और अंतरिक्ष की उड़ान:अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने बच्चों को दिए जवाब, सरकारी स्कूल के बच्चों के अभिनय ने रचा इतिहास

उदयपुर में शनिवार शाम एक खास दृश्य देखने को मिला, जब सरकारी स्कूल के बच्चों ने मंच से अपनी सोच, आत्मविश्वास और सपनों की उड़ान दिखाई। विद्या भवन स्कूल के मुक्ताकाशी रंगमंच पर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय वरड़ा के विद्यार्थियों ने नाटक पेश किया। इसमें हाल ही अंतरिक्ष से लौटे भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला खुद बच्चों के साथ मंच पर नजर आए। नाटक के बाद शुभांशु ने खुद बच्चों के एक-एक सवाल का जवाब दिया। ‘गुगल कर ले रे…’ नाटक ने आज के डिजिटल युग में बिना तकनीक पर निर्भर हुए सोचने, पढ़ने और अनुभव से सीखने की महत्ता को रेखांकित किया। पहेलियों को सुलझाने की यह यात्रा पुस्तकालय, समाज और अंततः एक अंतरिक्ष यात्री तक पहुंचती है और यही यात्रा बच्चों को यह विश्वास दिलाती है कि ज्ञान केवल स्क्रीन में नहीं, जीवन के अनुभवों में भी छिपा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए स्कूली बच्चों ने जिस आत्मविश्वास और सहजता से अभिनय किया, उसने दर्शकों को प्रभावित किया। संवादों में सच्चाई और अभिनय में स्वाभाविकता साफ नजर आई। बच्चों ने कहीं हंसाया, कहीं सोचने पर मजबूर किया और अंत में भावुक भी कर दिया। नाटक के दौरान जब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला मंच पर आए तो माहौल पूरी तरह बदल गया। बच्चों के सवालों पर उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के अनुभव सरल भाषा में बताया। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखना जीवन बदल देने वाला अनुभव होता है। बच्चों की जिज्ञासा और उत्साह ने इस संवाद को और खास बना दिया। शुक्ला ने कहा कि ब्रह्मांड बहुत विशाल है, लेकिन उससे भी बड़ी हमारी सोच और जिज्ञासा होनी चाहिए। अगर सवाल पूछने की आदत बनी रहे, तो रास्ते खुद बनते जाते हैं। बच्चों ने पूछे कई सवाल
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला से संवाद के दौरान बच्चों ने बड़े उत्साह और जिज्ञासा के साथ अंतरिक्ष यात्रा से जुड़े कई सवाल पूछे। उन्होंने अंतरिक्ष में बिताए पलों, पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखने के अनुभव और वहां के जीवन के बारे में रोचक एवं प्रेरक जानकारी साझा की। बच्चों ने यह भी जानना चाहा कि एक अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए किस तरह की पढ़ाई, कोचिंग और कठोर प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। शुभांशु शुक्ला ने सरल शब्दों में समझाते हुए बताया कि विज्ञान विषयों में मजबूत आधार, अनुशासन, निरंतर मेहनत और आत्मविश्वास ही इस सपने को साकार करने की कुंजी हैं। उनका प्रेरणादायक संवाद बच्चों के लिए न केवल ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की नई ऊर्जा और सपने भी दे गया। नाटक की कहानी
कहानी में गांव के एक सरकारी स्कूल के बच्चों को उनके शिक्षक द्वारा बिना गूगल की सहायता से तीन पहेलियों को हल करने का टास्क दिया जाता है और इसके लिए उन्हें दस हजार का पुरस्कार देने की बात भी कही जाती है। स्कूल के बच्चे गोपू, पुनम और टींकू इन पहेलियों का हल खोजने के लिए स्कूल लाइब्रेरी के बाद पत्रकार के पास जाते हैं परंतु उन्हें सफलता नहीं मिलती है। इसके बाद दो आर्किटेक्ट से दो पहेलियों का हल खोजने के बाद उन्हें तीसरी पहेली का जवाब मिलता है अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला के पास। शुक्ला बड़े प्यार से अंतरिक्ष में अपने अनुभवों को शेयर करने साथ-साथ उनकी पहेली का जवाब भी देते हैं। बगैर गूगल किए पहेलियों का जवाब ढूंढने की यह रोचक प्रक्रिया ही इस नाटक की विषयवस्तु है।

​ 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *