‘मैं NDA की सभी पार्टियों की तरफ से बात नहीं कर सकता, लेकिन अपने दल की तरफ से इतना जरूर कह सकता हूं कि मेरे विधायक फिर से मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार जी को चुनेंगे।’ LJP (R) के अध्यक्ष चिराग पासवान ये बात कहते हुए जोर देते हैं कि उनके और नीतीश कुमार के बीच कोई मतभेद नहीं है। चिराग की पार्टी 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सिर्फ एक मुस्लिम को टिकट देने पर चिराग कहते हैं कि BJP ने तो एक को भी नहीं दिया। दैनिक भास्कर ने उनसे नीतीश कुमार से मनमुटाव, NDA के CM फेस के ऐलान, मुस्लिम वोट बैंक के अलावा चाचा पशुपति पारस से रिश्तों पर सवाल पूछे। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल: कई साल बाद ऐसा हुआ कि CM नीतीश कुमार आपके घर आए। क्या बातचीत हुई?
जवाब: मेरे और परिवार के लिए यह बहुत खूबसूरत पल था। मुख्यमंत्री जी घर आए और छठ प्रसाद ग्रहण किया। छठ बिहारियों के लिए सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसे अवसर पर मुख्यमंत्री जी का आना हमारे लिए आनंद का विषय था। लोकतंत्र के महापर्व के बीच हम सब कामना करते हैं कि छठी मैया का आशीर्वाद NDA और NDA के प्रत्याशियों पर भी बना रहे। मुख्यमंत्री जी आए तो इसने सिर्फ गठबंधन को मजबूत और खूबसूरत तस्वीर देने का काम नहीं किया, बल्कि CM और मेरे बीच नाराजगी वाले विपक्ष के फॉल्स नैरेटिव को भी रोकने में मदद मिली। सवाल: 2020 में आप अलग चुनाव लड़े थे। 135 सीटों पर कैंडिडेट उतारे। 35 सीटों पर आपके कैंडिडेट को JDU की हार के लिए जिम्मेदार माना गया। क्या अब नीतीश जी ने वो सब भुला दिया, गिले-शिकवे खत्म हो गए हैं?
जवाब: अब 5 साल बीत चुके हैं। इतने अरसे में गंगा में काफी पानी बह जाता है। शुरुआती दिनों में जो आक्रोश था, उसका होना भी स्वाभाविक था। अगर कोई दल मेरे या मेरी पार्टी के खिलाफ कुछ करेगा, तो मुझमें भी आक्रोश आना स्वाभाविक है। इन 5 साल में हम दोनों ने मिलकर ईमानदारी से आगे बढ़ने की कोशिश की है। हम सब एक बड़ी तस्वीर के लिए, एक बड़े मकसद के लिए साथ आए हैं। 5 दलों का यह गठबंधन अपने आप में एक विनर कॉम्बिनेशन है। 2020 में NDA डिवाइडेड था, फिर भी सरकार बना पाया। RJD को यह समझना चाहिए कि 2020 का उनका अच्छा प्रदर्शन बंटे हुए NDA की वजह से था। उनके विधायक जिन सीटों पर जीते, वहां JDU, चिराग पासवान और उपेंद्र जी के प्रत्याशी अलग-अलग थे। सवाल: आप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले हैं। उनकी सेहत कैसी है?
जवाब: यह ऐसा नैरेटिव है, जिसे विपक्ष सेट करने की पूरी कोशिश करता है। उनके नीतिगत फैसलों या कार्यशैली पर कोई आपत्ति नहीं है, इसलिए व्यक्तिगत प्रहार किए जा रहे हैं। किसी नेता को कमजोर दिखाने के लिए कहा जाता है कि वह घमंडी या अहंकारी है, जबकि इसे साबित करना मुश्किल होता है। इसी तरह मुख्यमंत्री जी की सेहत को लेकर भी भ्रांतियां फैलाने की कोशिश होती है। मैं मानता हूं कि बिहार जैसे राज्य का नेतृत्व करना आसान नहीं है और मुख्यमंत्री जी पूरी तरह सक्षम हैं। यह देखा जा सकता है कि जब महागठबंधन सीटों के बंटवारे में असफल रहा, तब भी मुख्यमंत्री जी प्रचार में सक्रिय थे। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन ज्यादा स्थिर नेतृत्व है। सवाल: क्या आप गारंटी देंगे कि NDA के चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे, क्योंकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नाम पर चुनाव लड़ा गया, लेकिन CM देवेंद्र फडणवीस बने?
जवाब: मैं सभी पार्टियों की तरफ से बात नहीं कर सकता, लेकिन अपनी पार्टी की तरफ से इतना जरूर कह सकता हूं कि मेरे विधायक फिर से मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार जी को चुनेंगे। सवाल: महागठबंधन ने तो CM के लिए तेजस्वी और डिप्टी सीएम के लिए मुकेश सहनी का नाम घोषित कर दिया है, लेकिन NDA में अब तक ऐसी घोषणा नहीं हुई?
जवाब: ये देखना जरूरी है कि महागठबंधन में ये घोषणाएं किन परिस्थितियों में की गई हैं। अगर किसी को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री घोषित करने के लिए इतनी माथापच्ची, दबाव और लड़ाई करनी पड़ी हो, तो उस घोषणा का क्या अर्थ रह जाता है। जहां तक NDA का सवाल है, तो हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने साफ कहा है कि चुनाव के बाद सारे विधायक मिलकर ही मुख्यमंत्री का चयन करेंगे और जिनके नेतृत्व में सब चुनाव लड़ रहे हैं, वही फिर से चुने जाएंगे। सवाल: तो क्या NDA की तरफ से कोई ऑफिशियल घोषणा होने वाली है?
जवाब: मुझे नहीं लगता कि इससे ज्यादा किसी घोषणा की जरूरत है। जब हर दल नेतृत्व का समर्थन खुले तौर पर कर रहा है, तो अलग से कोई औपचारिक ऐलान जरूरी नहीं है।
सवाल: सीट शेयरिंग के समय चर्चा थी कि आप NDA में डिप्टी CM का पद मांग रहे थे। फिर महागठबंधन की ओर से भी आपको कोई ऑफर आया है। क्या इसमें कुछ सच्चाई है?
जवाब: न तो मुझे ऐसा कोई ऑफर मिला, न ही मैंने कभी ऐसी किसी पेशकश के लिए कोई प्रयास किया। मैं हमेशा उसी पल को महत्व देता हूं जिसमें हम जी रहे हैं। मेरी प्राथमिकता आज की तारीख में गठबंधन को बड़ी जीत दिलाना है। अंत में, हर किसी को उसकी हकदारी जरूर मिलेगी। जो भी जिसके योग्य है, वह उसे मिल कर रहेगा। सवाल: इस बार आपको 29 सीटें मिली हैं। इनमें 13 ऐसी हैं, जिन पर NDA पिछले तीन बार से जीत नहीं पाया। आपको ज्यादा मुश्किल सीटें दी गई हैं?
जवाब: असली मजा भी तो इसी में है। सहयोगी होने के नाते आसान सीटें जीतकर या स्ट्राइक रेट दिखाने में कोई खास बात नहीं है। असली मायने तो तब हैं, जब आप कठिन सीटों पर जीतकर NDA की झोली में जोड़ सकें। मुझे गठबंधन में 29 सीटें दी गईं, तब मुझसे 35-38 सीटों का पूल मांगा गया था। मुझे जो सीटें मिलीं, वे उन्हीं में से हैं। इनमें कुछ चुनौती वाली सीटें भी जरूर हैं, लेकिन इसी में एक संतुलन बना है। हम ये कठिन सीटें भी जरूर जीतेंगे। सवाल: पिछले दिनों हम हाजीपुर में थे, वहां लोगों का कहना था कि NDA को चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहिए। आप क्या मानते हैं?
जवाब: फिलहाल ऐसी चर्चाओं की बिल्कुल कोई जगह नहीं है। मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई वैकेंसी नहीं है। हम सब मौजूदा मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं। मैं ऐसा इसलिए कहता हूं क्योंकि मेरा भी अपना सपना और महत्वाकांक्षा है, लेकिन मैंने हमेशा स्वीकार किया है कि राजनीति में मेरा मकसद बिहार को आगे ले जाना है। सवाल: आपके पिता को दलित आइकॉन माना जाता था। आपने खगड़िया में MY समीकरण की नई परिभाषा दी है। जहां M महिलाओं के लिए और Y युवाओं के लिए है। इससे लग रहा है कि आप जाति आधारित राजनीति से अलग हो रहे हैं?
जवाब: मैं चाहता हूं कि हर बिहारी को जातीय राजनीति से अलग किया जाए। बिहार में विरोधाभासी सरकारों ने काफी नुकसान पहुंचाया है। जातिगत व्यवस्था ने भी बिहार को बर्बाद किया है। पारंपरिक सोच ये थी कि आपका विधायक या सांसद आपके लिए काम करे या न करे, पर अगर वे आपकी जाति से हों, तब भी वोट दे देते थे। मैं इसे गलत मानता हूं। मैं खुद 21वीं सदी का पढ़ा-लिखा युवा हूं और जातिगत राजनीति से खुद को नहीं जोड़ता हूं। मुझे यह भी दुख होता है कि बिहार के कुछ युवा नेता, जिनके कंधे पर अगले 25-30 साल बिहार की राजनीति है, वे भी पुरानी जातिगत राजनीति के घेरे में हैं। सवाल: आपके M में मुस्लिम छूट रहे हैं। 29 सीटों में से सिर्फ एक मुस्लिम को टिकट दिया है। 2005 में आपके पिता ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात की थी, जबकि आप अब कहते हैं कि आप आइडेंटिटी पॉलिटिक्स से अलग जा रहे हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों को कम जगह क्यों मिलती है?
जवाब: पहली बात तो ये है कि कम से कम मैंने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट तो दिया है, जबकि NDA को लेकर कहा जाता है कि मुसलमान NDA को वोट नहीं देंगे। यह एक गलत धारणा और सेट नैरेटिव है, जो बहुत पहले खत्म हो चुका है। सवाल: आपने कहा कि कम से कम मुस्लिम उम्मीदवार तो दिए, क्या इसका मतलब ये है कि आपकी सहयोगी पार्टियां खासकर BJP मुस्लिमों को टिकट नहीं देती हैं?
जवाब: नहीं देते न। BJP ने तो एक को भी नहीं दिया। सवाल: आपको इससे एतराज है?
जवाब: नहीं, मुझे कोई एतराज नहीं है। वो उनकी सोच है। उनकी राजनीति है। मैं शत-प्रतिशत उनकी राजनीति से अगर सहमत होने लगूं तो मैं खुद BJP नहीं बन जाऊंगा। मैं फिर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) क्यों हूं। मेरे उस कटाक्ष का इरादा सहयोगी दलों पर नहीं था, बल्कि उस सोच पर था, जो कहती है कि BJP या NDA को मुसलमान वोट नहीं देते। मेरी पार्टी ने पूरे समय मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग करते हुए काम किया है। 2005 में मेरे पिता ने कहा था कि अगर कभी मुस्लिम उम्मीदवार मुख्यमंत्री का चेहरा बनेगा, तो हमारी पार्टी उसका समर्थन करेगी। मेरा सवाल उन दलों से है, जो MY समीकरण का झंडा उठाकर खुद को मुस्लिम हितैषी बताते हैं, लेकिन 2005 में मुस्लिम मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना पाए। MY में Y सिर्फ एक परिवार तक सीमित है और M तो सिर्फ वोट बैंक की राजनीति तक रह गया है। कौन से मुस्लिम नेताओं को RJD ने प्रमोट किया। महागठबंधन में भी मुस्लिम उपमुख्यमंत्री का नाम क्यों नहीं आता। मैं इस जिम्मेदारी को अपने कंधे पर नहीं ढोता कि मैं मुसलमानों का ठेकेदार हूं। मैं बिहार के हर गरीब वर्ग की बात करता हूं, जिसमें मुसलमान, अपर कास्ट, दलित और पिछड़ा वर्ग शामिल हैं, लेकिन जो लोग मुसलमानों के ठेकेदार बनते हैं, उन्होंने कितने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। सवाल: क्या मौजूदा राजनीति में मुसलमानों की कोई जगह है, क्या कोई मुसलमान मुख्यमंत्री बन सकता है?
जवाब: क्यों नहीं बन सकता, जरूर बन सकता है। पहली बात मुसलमानों को यह समझना होगा कि उन्होंने अपनी ठेकेदारी जिन लोगों को सौंपी थी, उन्होंने क्या किया। 2005-06 के आसपास सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई थी, जिसमें मुसलमानों की बदहाली की बात कही गई। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और बिहार में RJD की। फिर भी मुसलमानों की स्थिति खराब थी। मुसलमानों को यह भी समझना होगा कि मोदी या NDA के आने के बाद उनकी क्या स्थिति हुई। BJP को लेकर जो फॉल्स नैरेटिव आया कि मुसलमान NDA को वोट नहीं देंगे, यह पूरी तरह झूठ है। कई जगह मुसलमानों को डराकर NDA के उम्मीदवार को वोट नहीं देने की कोशिश हुई। हमारी नीतियां इनक्लूसिव (समावेशी) हैं। पिछले 11 साल से केंद्र में ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति चली है, जिसमें कोई भी योजना धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती। सवाल: लेकिन टिकट धर्म देखकर ही दिए जा रहे हैं?
जवाब: टिकट वितरण में विनिबिलिटी यानी जीतने की क्षमता देखी जाती है। आपके पास संख्या बल नहीं होगा, तो सरकार बनाना मुश्किल होगा। हम जैसा समावेशी राजनीति करते हैं, इसमें यह देखा जाता है कि कौन कितना मजबूत है और किसे टिकट देने से जीत मिल सकती है। यहां यह कहना गलत होगा कि टिकट पूरी तरह धर्म के आधार पर दिया जाता है। सवाल: आपने कहा था कि NDA में आपकी भूमिका नमक की तरह है। अगर NDA की सरकार बिहार में बनती है, तो आप दिल्ली से सरकार चलाएंगे या बिहार की राजनीति में NDA में आपकी कोई जिम्मेदारी होगी?
जवाब: फिलहाल केंद्र में मेरे पास केंद्रीय मंत्री के रूप में बड़ी जिम्मेदारी है। मैं इसे पूरी निष्ठा से निभा रहा हूं। मुझे भरोसा है कि बिहार में हमारी सरकार बनेगी और उसमें लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की मजबूत भागीदारी होगी। पहली बार ऐसा होगा कि एक ताकतवर सहयोगी के रूप में मेरी पार्टी बिहार सरकार का हिस्सा बनेगी। मैं बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट की बात करता हूं और चाहता हूं कि इसे लागू करने का मौका मुझे मिले। सवाल: आप बिहार-फर्स्ट बिहारी फर्स्ट की बात करते हैं, और आप सीधे बिहार में होंगे ही नहीं, तो यह रोल कैसे निभाएंगे?
जवाब: आप बिल्कुल सही बोल रहे हैं। इसलिए मैं चाहता था कि अपने सक्रिय योगदान के साथ चुनाव लड़ूं, लेकिन सीट शेयरिंग इतनी देर तक चली कि मुझे अपना नामांकन फाइल करने तक का समय नहीं मिला। मैं तीसरी बार सांसद बन चुका हूं और मुझे स्पष्ट है कि दिल्ली में रहकर बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट को धरातल पर लागू नहीं किया जा सकता। मुझे एक मजबूत व्यवस्था की जरूरत है, जिसके माध्यम से मैं बेहतर काम कर सकूं। इसलिए अगले विधानसभा चुनावों तक, बिहार में ज्यादा सक्रिय और फोकस्ड रहूंगा । सवाल: चाचा पशुपति पारस ने हाल में कहा था कि अगर आप मुख्यमंत्री बनते तो उन्हें सबसे ज्यादा खुशी होती, उनसे रिश्ते कैसे हैं?
जवाब: रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे पहले थे। रिश्तों में दूरियां कम करने के लिए संवाद जरूरी होता है और खून के रिश्तों में मीडिया के बीच संवाद का कोई खास मतलब नहीं होता। जो डायरेक्ट बातचीत होनी चाहिए, वह पहले नहीं थी और अभी भी नहीं है। इसलिए स्थिति लगभग वैसी ही है। परिवार के बाकी सदस्यों से, जैसे बड़ी मां राजकुमारी देवी जी से मेरे अच्छे संबंध हैं। मेरे सबसे छोटे चाचा के बेटे और बेटी से भी बातचीत नहीं होती। परिवार में जो टूट हुई, उस वक्त ये सब उनके साथ चले गए। सवाल: आप खुद को मोदी के हनुमान कहते हैं। क्या LJP(R) BJP के बिना कुछ नहीं है?
जवाब: आज की तारीख में मैं ईमानदारी से स्वीकार करता हूं कि गठबंधन की ताकत मेरी ताकत को बढ़ाती है। 2020 में, जब मेरे पिता का निधन हो चुका था और चुनाव का पहला चरण चल रहा था, तब भी मैंने अकेले लड़ने का साहस किया। मैंने अपनी ताकत और कमजोरियों को समझा और अगले तीन साल तक उन चीजों पर काम किया। आज भी संभव नहीं है कि मैं अकेले चुनाव लड़कर उतनी सीटें जीत सकूं, जितनी गठबंधन के जरिए मिलती हैं। मैं अपनी ताकत को भी जानता हूं। कई सीटें जो सहयोगी दल शायद कुछ हजार वोटों से हार जाते, उन सीटों पर मैं जरूरी समर्थन दे सकता हूं। सवाल: ऐसी भी चर्चाएं हैं कि चुनाव के बाद BJP JDU को तोड़ने की कोशिश कर सकती है। BJP का ऐसा ट्रैक रिकॉर्ड भी है कि सहयोगी दलों को तोड़ देती है। अकाली दल, शिवसेना, NCP के साथ ऐसा हो चुका है। क्या आपको डर या असुरक्षा महसूस नहीं होती?
जवाब: अगर मेरा परिवार, मेरा साथ देता, तो कोई भी ताकत मेरी पार्टी या परिवार को अलग नहीं कर सकती थी। मेरी पार्टी का टूटना मेरे अपनों की वजह से हुआ। ये भावनात्मक बात हुई, लेकिन प्रैक्टिकल बात यह है कि राजनीति में आपकी प्रासंगिकता होनी चाहिए। पिछले तीन साल में मेहनत करने के कारण मेरी पार्टी ने अपनी स्थिति मजबूत की है। मैं नहीं मानता कि BJP मेरी पार्टी या JDU को तोड़ेगी। मुझे इस बात का पता नहीं कि ऐसी चर्चा कहां से निकलती है। ये सब विपक्षी दलों का फैलाया नैरेटिव है। सवाल: जीतन राम मांझी ने कहा कि अगर NDA चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के तौर पर सपोर्ट करती है, तो मजबूरी में उनकी पार्टी को आपका सपोर्ट करना पड़ेगा, लेकिन निजी तौर पर वे ऐसा नहीं करना चाहते। क्या दोनों के बीच तनातनी है?
जवाब: मैंने कई बार अनुभव किया है कि मेरे और मेरे चाचाओं के बीच सीधे संपर्क नहीं रहता। मैंने उन्हें पिता तुल्य माना है और हमेशा सम्मान दिया है। मेरी लड़ाई विपक्ष से है, सहयोगियों से नहीं। इसलिए उनके गुस्से और नाराजगी को मैं मानता हूं और इसे सम्मान की नजर से देखता हूं। अभी जैसे गिरिराज जी ने मेरे बारे में ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि स्ट्राइक रेट का ये झुनझुना बजाता है। बखरी (SC) सीट उन्हीं के लोकसभा क्षेत्र में आती है। वो उन्हें चाहिए होगी। पर ये नाराजगी तो मेरी भी थी कि मटिहानी की मेरी इकलौती जीती हुई सीट मुझे नहीं दी। 2020 में मैंने विपरीत परिस्थितियों में ये सीट जीती थी। अब ये नाराजगी मेरी भी है। करने को मैं भी तुरंत ट्वीट कर सकता था, लेकिन ये विवादों को बढ़ाता है। सवाल: क्या हम अभी भावी मुख्यमंत्री से बात कर रहे हैं?
जवाब: फिलहाल ऐसी कोई बात नहीं है। मैं बिहार की राजनीति में अपने पिता की तरह स्पष्ट और फोकस्ड रहना चाहता हूं। 2005 में जब उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, तो उन्होंने खुद इसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे केंद्र की राजनीति में ज्यादा सक्रिय थे। मैं बिहार की राजनीति में अपने आपको ज्यादा समर्पित करता हूं। और 2030 तक जो लक्ष्य है, वो यही है। सवाल: क्या 2030 का कोई खास टारगेट है?
जवाब: हम उस समय की चिंता तब करेंगे। फिलहाल मेरा ध्यान 2025 के एक बड़े पड़ाव पर है, जिसे हम पार करना चाहते हैं। ………………………………. ये VIP इंटरव्यू भी पढ़िए…
प्रशांत किशोर: जनसुराज जीते या हारे, मैं यहीं रहूंगा प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने बिहार विधानसभा चुनाव में 240 कैंडिडेट उतारे हैं। वे कहते हैं, ‘नीतीश कुमार बिहार के अगले CM नहीं होंगे और JDU को 25 से ज्यादा सीटें नहीं आएंगी, ये आप भी मुझसे लिखकर ले लीजिए।’ फिर कहते हैं कि जन सुराज जीते या हारे, मैंने अपने जीवन के 10 साल बिहार के इस सुधार अभियान को दे दिए हैं। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… ‘मैं NDA की सभी पार्टियों की तरफ से बात नहीं कर सकता, लेकिन अपने दल की तरफ से इतना जरूर कह सकता हूं कि मेरे विधायक फिर से मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार जी को चुनेंगे।’ LJP (R) के अध्यक्ष चिराग पासवान ये बात कहते हुए जोर देते हैं कि उनके और नीतीश कुमार के बीच कोई मतभेद नहीं है। चिराग की पार्टी 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सिर्फ एक मुस्लिम को टिकट देने पर चिराग कहते हैं कि BJP ने तो एक को भी नहीं दिया। दैनिक भास्कर ने उनसे नीतीश कुमार से मनमुटाव, NDA के CM फेस के ऐलान, मुस्लिम वोट बैंक के अलावा चाचा पशुपति पारस से रिश्तों पर सवाल पूछे। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल: कई साल बाद ऐसा हुआ कि CM नीतीश कुमार आपके घर आए। क्या बातचीत हुई?
जवाब: मेरे और परिवार के लिए यह बहुत खूबसूरत पल था। मुख्यमंत्री जी घर आए और छठ प्रसाद ग्रहण किया। छठ बिहारियों के लिए सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसे अवसर पर मुख्यमंत्री जी का आना हमारे लिए आनंद का विषय था। लोकतंत्र के महापर्व के बीच हम सब कामना करते हैं कि छठी मैया का आशीर्वाद NDA और NDA के प्रत्याशियों पर भी बना रहे। मुख्यमंत्री जी आए तो इसने सिर्फ गठबंधन को मजबूत और खूबसूरत तस्वीर देने का काम नहीं किया, बल्कि CM और मेरे बीच नाराजगी वाले विपक्ष के फॉल्स नैरेटिव को भी रोकने में मदद मिली। सवाल: 2020 में आप अलग चुनाव लड़े थे। 135 सीटों पर कैंडिडेट उतारे। 35 सीटों पर आपके कैंडिडेट को JDU की हार के लिए जिम्मेदार माना गया। क्या अब नीतीश जी ने वो सब भुला दिया, गिले-शिकवे खत्म हो गए हैं?
जवाब: अब 5 साल बीत चुके हैं। इतने अरसे में गंगा में काफी पानी बह जाता है। शुरुआती दिनों में जो आक्रोश था, उसका होना भी स्वाभाविक था। अगर कोई दल मेरे या मेरी पार्टी के खिलाफ कुछ करेगा, तो मुझमें भी आक्रोश आना स्वाभाविक है। इन 5 साल में हम दोनों ने मिलकर ईमानदारी से आगे बढ़ने की कोशिश की है। हम सब एक बड़ी तस्वीर के लिए, एक बड़े मकसद के लिए साथ आए हैं। 5 दलों का यह गठबंधन अपने आप में एक विनर कॉम्बिनेशन है। 2020 में NDA डिवाइडेड था, फिर भी सरकार बना पाया। RJD को यह समझना चाहिए कि 2020 का उनका अच्छा प्रदर्शन बंटे हुए NDA की वजह से था। उनके विधायक जिन सीटों पर जीते, वहां JDU, चिराग पासवान और उपेंद्र जी के प्रत्याशी अलग-अलग थे। सवाल: आप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले हैं। उनकी सेहत कैसी है?
जवाब: यह ऐसा नैरेटिव है, जिसे विपक्ष सेट करने की पूरी कोशिश करता है। उनके नीतिगत फैसलों या कार्यशैली पर कोई आपत्ति नहीं है, इसलिए व्यक्तिगत प्रहार किए जा रहे हैं। किसी नेता को कमजोर दिखाने के लिए कहा जाता है कि वह घमंडी या अहंकारी है, जबकि इसे साबित करना मुश्किल होता है। इसी तरह मुख्यमंत्री जी की सेहत को लेकर भी भ्रांतियां फैलाने की कोशिश होती है। मैं मानता हूं कि बिहार जैसे राज्य का नेतृत्व करना आसान नहीं है और मुख्यमंत्री जी पूरी तरह सक्षम हैं। यह देखा जा सकता है कि जब महागठबंधन सीटों के बंटवारे में असफल रहा, तब भी मुख्यमंत्री जी प्रचार में सक्रिय थे। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन ज्यादा स्थिर नेतृत्व है। सवाल: क्या आप गारंटी देंगे कि NDA के चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे, क्योंकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नाम पर चुनाव लड़ा गया, लेकिन CM देवेंद्र फडणवीस बने?
जवाब: मैं सभी पार्टियों की तरफ से बात नहीं कर सकता, लेकिन अपनी पार्टी की तरफ से इतना जरूर कह सकता हूं कि मेरे विधायक फिर से मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार जी को चुनेंगे। सवाल: महागठबंधन ने तो CM के लिए तेजस्वी और डिप्टी सीएम के लिए मुकेश सहनी का नाम घोषित कर दिया है, लेकिन NDA में अब तक ऐसी घोषणा नहीं हुई?
जवाब: ये देखना जरूरी है कि महागठबंधन में ये घोषणाएं किन परिस्थितियों में की गई हैं। अगर किसी को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री घोषित करने के लिए इतनी माथापच्ची, दबाव और लड़ाई करनी पड़ी हो, तो उस घोषणा का क्या अर्थ रह जाता है। जहां तक NDA का सवाल है, तो हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने साफ कहा है कि चुनाव के बाद सारे विधायक मिलकर ही मुख्यमंत्री का चयन करेंगे और जिनके नेतृत्व में सब चुनाव लड़ रहे हैं, वही फिर से चुने जाएंगे। सवाल: तो क्या NDA की तरफ से कोई ऑफिशियल घोषणा होने वाली है?
जवाब: मुझे नहीं लगता कि इससे ज्यादा किसी घोषणा की जरूरत है। जब हर दल नेतृत्व का समर्थन खुले तौर पर कर रहा है, तो अलग से कोई औपचारिक ऐलान जरूरी नहीं है।
सवाल: सीट शेयरिंग के समय चर्चा थी कि आप NDA में डिप्टी CM का पद मांग रहे थे। फिर महागठबंधन की ओर से भी आपको कोई ऑफर आया है। क्या इसमें कुछ सच्चाई है?
जवाब: न तो मुझे ऐसा कोई ऑफर मिला, न ही मैंने कभी ऐसी किसी पेशकश के लिए कोई प्रयास किया। मैं हमेशा उसी पल को महत्व देता हूं जिसमें हम जी रहे हैं। मेरी प्राथमिकता आज की तारीख में गठबंधन को बड़ी जीत दिलाना है। अंत में, हर किसी को उसकी हकदारी जरूर मिलेगी। जो भी जिसके योग्य है, वह उसे मिल कर रहेगा। सवाल: इस बार आपको 29 सीटें मिली हैं। इनमें 13 ऐसी हैं, जिन पर NDA पिछले तीन बार से जीत नहीं पाया। आपको ज्यादा मुश्किल सीटें दी गई हैं?
जवाब: असली मजा भी तो इसी में है। सहयोगी होने के नाते आसान सीटें जीतकर या स्ट्राइक रेट दिखाने में कोई खास बात नहीं है। असली मायने तो तब हैं, जब आप कठिन सीटों पर जीतकर NDA की झोली में जोड़ सकें। मुझे गठबंधन में 29 सीटें दी गईं, तब मुझसे 35-38 सीटों का पूल मांगा गया था। मुझे जो सीटें मिलीं, वे उन्हीं में से हैं। इनमें कुछ चुनौती वाली सीटें भी जरूर हैं, लेकिन इसी में एक संतुलन बना है। हम ये कठिन सीटें भी जरूर जीतेंगे। सवाल: पिछले दिनों हम हाजीपुर में थे, वहां लोगों का कहना था कि NDA को चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहिए। आप क्या मानते हैं?
जवाब: फिलहाल ऐसी चर्चाओं की बिल्कुल कोई जगह नहीं है। मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई वैकेंसी नहीं है। हम सब मौजूदा मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं। मैं ऐसा इसलिए कहता हूं क्योंकि मेरा भी अपना सपना और महत्वाकांक्षा है, लेकिन मैंने हमेशा स्वीकार किया है कि राजनीति में मेरा मकसद बिहार को आगे ले जाना है। सवाल: आपके पिता को दलित आइकॉन माना जाता था। आपने खगड़िया में MY समीकरण की नई परिभाषा दी है। जहां M महिलाओं के लिए और Y युवाओं के लिए है। इससे लग रहा है कि आप जाति आधारित राजनीति से अलग हो रहे हैं?
जवाब: मैं चाहता हूं कि हर बिहारी को जातीय राजनीति से अलग किया जाए। बिहार में विरोधाभासी सरकारों ने काफी नुकसान पहुंचाया है। जातिगत व्यवस्था ने भी बिहार को बर्बाद किया है। पारंपरिक सोच ये थी कि आपका विधायक या सांसद आपके लिए काम करे या न करे, पर अगर वे आपकी जाति से हों, तब भी वोट दे देते थे। मैं इसे गलत मानता हूं। मैं खुद 21वीं सदी का पढ़ा-लिखा युवा हूं और जातिगत राजनीति से खुद को नहीं जोड़ता हूं। मुझे यह भी दुख होता है कि बिहार के कुछ युवा नेता, जिनके कंधे पर अगले 25-30 साल बिहार की राजनीति है, वे भी पुरानी जातिगत राजनीति के घेरे में हैं। सवाल: आपके M में मुस्लिम छूट रहे हैं। 29 सीटों में से सिर्फ एक मुस्लिम को टिकट दिया है। 2005 में आपके पिता ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात की थी, जबकि आप अब कहते हैं कि आप आइडेंटिटी पॉलिटिक्स से अलग जा रहे हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों को कम जगह क्यों मिलती है?
जवाब: पहली बात तो ये है कि कम से कम मैंने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट तो दिया है, जबकि NDA को लेकर कहा जाता है कि मुसलमान NDA को वोट नहीं देंगे। यह एक गलत धारणा और सेट नैरेटिव है, जो बहुत पहले खत्म हो चुका है। सवाल: आपने कहा कि कम से कम मुस्लिम उम्मीदवार तो दिए, क्या इसका मतलब ये है कि आपकी सहयोगी पार्टियां खासकर BJP मुस्लिमों को टिकट नहीं देती हैं?
जवाब: नहीं देते न। BJP ने तो एक को भी नहीं दिया। सवाल: आपको इससे एतराज है?
जवाब: नहीं, मुझे कोई एतराज नहीं है। वो उनकी सोच है। उनकी राजनीति है। मैं शत-प्रतिशत उनकी राजनीति से अगर सहमत होने लगूं तो मैं खुद BJP नहीं बन जाऊंगा। मैं फिर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) क्यों हूं। मेरे उस कटाक्ष का इरादा सहयोगी दलों पर नहीं था, बल्कि उस सोच पर था, जो कहती है कि BJP या NDA को मुसलमान वोट नहीं देते। मेरी पार्टी ने पूरे समय मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग करते हुए काम किया है। 2005 में मेरे पिता ने कहा था कि अगर कभी मुस्लिम उम्मीदवार मुख्यमंत्री का चेहरा बनेगा, तो हमारी पार्टी उसका समर्थन करेगी। मेरा सवाल उन दलों से है, जो MY समीकरण का झंडा उठाकर खुद को मुस्लिम हितैषी बताते हैं, लेकिन 2005 में मुस्लिम मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना पाए। MY में Y सिर्फ एक परिवार तक सीमित है और M तो सिर्फ वोट बैंक की राजनीति तक रह गया है। कौन से मुस्लिम नेताओं को RJD ने प्रमोट किया। महागठबंधन में भी मुस्लिम उपमुख्यमंत्री का नाम क्यों नहीं आता। मैं इस जिम्मेदारी को अपने कंधे पर नहीं ढोता कि मैं मुसलमानों का ठेकेदार हूं। मैं बिहार के हर गरीब वर्ग की बात करता हूं, जिसमें मुसलमान, अपर कास्ट, दलित और पिछड़ा वर्ग शामिल हैं, लेकिन जो लोग मुसलमानों के ठेकेदार बनते हैं, उन्होंने कितने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। सवाल: क्या मौजूदा राजनीति में मुसलमानों की कोई जगह है, क्या कोई मुसलमान मुख्यमंत्री बन सकता है?
जवाब: क्यों नहीं बन सकता, जरूर बन सकता है। पहली बात मुसलमानों को यह समझना होगा कि उन्होंने अपनी ठेकेदारी जिन लोगों को सौंपी थी, उन्होंने क्या किया। 2005-06 के आसपास सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई थी, जिसमें मुसलमानों की बदहाली की बात कही गई। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और बिहार में RJD की। फिर भी मुसलमानों की स्थिति खराब थी। मुसलमानों को यह भी समझना होगा कि मोदी या NDA के आने के बाद उनकी क्या स्थिति हुई। BJP को लेकर जो फॉल्स नैरेटिव आया कि मुसलमान NDA को वोट नहीं देंगे, यह पूरी तरह झूठ है। कई जगह मुसलमानों को डराकर NDA के उम्मीदवार को वोट नहीं देने की कोशिश हुई। हमारी नीतियां इनक्लूसिव (समावेशी) हैं। पिछले 11 साल से केंद्र में ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति चली है, जिसमें कोई भी योजना धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती। सवाल: लेकिन टिकट धर्म देखकर ही दिए जा रहे हैं?
जवाब: टिकट वितरण में विनिबिलिटी यानी जीतने की क्षमता देखी जाती है। आपके पास संख्या बल नहीं होगा, तो सरकार बनाना मुश्किल होगा। हम जैसा समावेशी राजनीति करते हैं, इसमें यह देखा जाता है कि कौन कितना मजबूत है और किसे टिकट देने से जीत मिल सकती है। यहां यह कहना गलत होगा कि टिकट पूरी तरह धर्म के आधार पर दिया जाता है। सवाल: आपने कहा था कि NDA में आपकी भूमिका नमक की तरह है। अगर NDA की सरकार बिहार में बनती है, तो आप दिल्ली से सरकार चलाएंगे या बिहार की राजनीति में NDA में आपकी कोई जिम्मेदारी होगी?
जवाब: फिलहाल केंद्र में मेरे पास केंद्रीय मंत्री के रूप में बड़ी जिम्मेदारी है। मैं इसे पूरी निष्ठा से निभा रहा हूं। मुझे भरोसा है कि बिहार में हमारी सरकार बनेगी और उसमें लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की मजबूत भागीदारी होगी। पहली बार ऐसा होगा कि एक ताकतवर सहयोगी के रूप में मेरी पार्टी बिहार सरकार का हिस्सा बनेगी। मैं बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट की बात करता हूं और चाहता हूं कि इसे लागू करने का मौका मुझे मिले। सवाल: आप बिहार-फर्स्ट बिहारी फर्स्ट की बात करते हैं, और आप सीधे बिहार में होंगे ही नहीं, तो यह रोल कैसे निभाएंगे?
जवाब: आप बिल्कुल सही बोल रहे हैं। इसलिए मैं चाहता था कि अपने सक्रिय योगदान के साथ चुनाव लड़ूं, लेकिन सीट शेयरिंग इतनी देर तक चली कि मुझे अपना नामांकन फाइल करने तक का समय नहीं मिला। मैं तीसरी बार सांसद बन चुका हूं और मुझे स्पष्ट है कि दिल्ली में रहकर बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट को धरातल पर लागू नहीं किया जा सकता। मुझे एक मजबूत व्यवस्था की जरूरत है, जिसके माध्यम से मैं बेहतर काम कर सकूं। इसलिए अगले विधानसभा चुनावों तक, बिहार में ज्यादा सक्रिय और फोकस्ड रहूंगा । सवाल: चाचा पशुपति पारस ने हाल में कहा था कि अगर आप मुख्यमंत्री बनते तो उन्हें सबसे ज्यादा खुशी होती, उनसे रिश्ते कैसे हैं?
जवाब: रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे पहले थे। रिश्तों में दूरियां कम करने के लिए संवाद जरूरी होता है और खून के रिश्तों में मीडिया के बीच संवाद का कोई खास मतलब नहीं होता। जो डायरेक्ट बातचीत होनी चाहिए, वह पहले नहीं थी और अभी भी नहीं है। इसलिए स्थिति लगभग वैसी ही है। परिवार के बाकी सदस्यों से, जैसे बड़ी मां राजकुमारी देवी जी से मेरे अच्छे संबंध हैं। मेरे सबसे छोटे चाचा के बेटे और बेटी से भी बातचीत नहीं होती। परिवार में जो टूट हुई, उस वक्त ये सब उनके साथ चले गए। सवाल: आप खुद को मोदी के हनुमान कहते हैं। क्या LJP(R) BJP के बिना कुछ नहीं है?
जवाब: आज की तारीख में मैं ईमानदारी से स्वीकार करता हूं कि गठबंधन की ताकत मेरी ताकत को बढ़ाती है। 2020 में, जब मेरे पिता का निधन हो चुका था और चुनाव का पहला चरण चल रहा था, तब भी मैंने अकेले लड़ने का साहस किया। मैंने अपनी ताकत और कमजोरियों को समझा और अगले तीन साल तक उन चीजों पर काम किया। आज भी संभव नहीं है कि मैं अकेले चुनाव लड़कर उतनी सीटें जीत सकूं, जितनी गठबंधन के जरिए मिलती हैं। मैं अपनी ताकत को भी जानता हूं। कई सीटें जो सहयोगी दल शायद कुछ हजार वोटों से हार जाते, उन सीटों पर मैं जरूरी समर्थन दे सकता हूं। सवाल: ऐसी भी चर्चाएं हैं कि चुनाव के बाद BJP JDU को तोड़ने की कोशिश कर सकती है। BJP का ऐसा ट्रैक रिकॉर्ड भी है कि सहयोगी दलों को तोड़ देती है। अकाली दल, शिवसेना, NCP के साथ ऐसा हो चुका है। क्या आपको डर या असुरक्षा महसूस नहीं होती?
जवाब: अगर मेरा परिवार, मेरा साथ देता, तो कोई भी ताकत मेरी पार्टी या परिवार को अलग नहीं कर सकती थी। मेरी पार्टी का टूटना मेरे अपनों की वजह से हुआ। ये भावनात्मक बात हुई, लेकिन प्रैक्टिकल बात यह है कि राजनीति में आपकी प्रासंगिकता होनी चाहिए। पिछले तीन साल में मेहनत करने के कारण मेरी पार्टी ने अपनी स्थिति मजबूत की है। मैं नहीं मानता कि BJP मेरी पार्टी या JDU को तोड़ेगी। मुझे इस बात का पता नहीं कि ऐसी चर्चा कहां से निकलती है। ये सब विपक्षी दलों का फैलाया नैरेटिव है। सवाल: जीतन राम मांझी ने कहा कि अगर NDA चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के तौर पर सपोर्ट करती है, तो मजबूरी में उनकी पार्टी को आपका सपोर्ट करना पड़ेगा, लेकिन निजी तौर पर वे ऐसा नहीं करना चाहते। क्या दोनों के बीच तनातनी है?
जवाब: मैंने कई बार अनुभव किया है कि मेरे और मेरे चाचाओं के बीच सीधे संपर्क नहीं रहता। मैंने उन्हें पिता तुल्य माना है और हमेशा सम्मान दिया है। मेरी लड़ाई विपक्ष से है, सहयोगियों से नहीं। इसलिए उनके गुस्से और नाराजगी को मैं मानता हूं और इसे सम्मान की नजर से देखता हूं। अभी जैसे गिरिराज जी ने मेरे बारे में ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि स्ट्राइक रेट का ये झुनझुना बजाता है। बखरी (SC) सीट उन्हीं के लोकसभा क्षेत्र में आती है। वो उन्हें चाहिए होगी। पर ये नाराजगी तो मेरी भी थी कि मटिहानी की मेरी इकलौती जीती हुई सीट मुझे नहीं दी। 2020 में मैंने विपरीत परिस्थितियों में ये सीट जीती थी। अब ये नाराजगी मेरी भी है। करने को मैं भी तुरंत ट्वीट कर सकता था, लेकिन ये विवादों को बढ़ाता है। सवाल: क्या हम अभी भावी मुख्यमंत्री से बात कर रहे हैं?
जवाब: फिलहाल ऐसी कोई बात नहीं है। मैं बिहार की राजनीति में अपने पिता की तरह स्पष्ट और फोकस्ड रहना चाहता हूं। 2005 में जब उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, तो उन्होंने खुद इसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे केंद्र की राजनीति में ज्यादा सक्रिय थे। मैं बिहार की राजनीति में अपने आपको ज्यादा समर्पित करता हूं। और 2030 तक जो लक्ष्य है, वो यही है। सवाल: क्या 2030 का कोई खास टारगेट है?
जवाब: हम उस समय की चिंता तब करेंगे। फिलहाल मेरा ध्यान 2025 के एक बड़े पड़ाव पर है, जिसे हम पार करना चाहते हैं। ………………………………. ये VIP इंटरव्यू भी पढ़िए…
प्रशांत किशोर: जनसुराज जीते या हारे, मैं यहीं रहूंगा प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने बिहार विधानसभा चुनाव में 240 कैंडिडेट उतारे हैं। वे कहते हैं, ‘नीतीश कुमार बिहार के अगले CM नहीं होंगे और JDU को 25 से ज्यादा सीटें नहीं आएंगी, ये आप भी मुझसे लिखकर ले लीजिए।’ फिर कहते हैं कि जन सुराज जीते या हारे, मैंने अपने जीवन के 10 साल बिहार के इस सुधार अभियान को दे दिए हैं। पढ़िए पूरा इंटरव्यू…


