बांका के रजौन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में तीन वर्ष पूर्व लाखों रुपए की लागत से आधुनिक डेंटल मशीनें लगाई गई थीं। इनका उद्देश्य ग्रामीणों को दांत संबंधी समस्याओं का उपचार अस्पताल में ही उपलब्ध कराना था, लेकिन यह पूरी व्यवस्था आज भी सिर्फ कागजों में सक्रिय दिखाई देती है। वास्तव में, डेंटल रूम का ताला शायद ही कभी खुलता है और महंगी मशीनें बंद कमरे में धूल फांक रही हैं। दांत की सफाई, फिलिंग और एक्सट्रैक्शन जैसी सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद इनका उपयोग न के बराबर होता है, जिससे मरीजों को इन सुविधाओं की जानकारी तक नहीं मिल पाती। डॉक्टर दवा लिखकर मरीजों को कर रही वापस स्थानीय मरीजों का आरोप है कि डेंटल डॉक्टर रूबी रेड्डी दांत संबंधी समस्याओं को लेकर आने वालों को केवल दवा लिखकर वापस कर देती हैं। मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद अधिकांश मरीजों को निजी क्लिनिक का रुख करना पड़ता है। पड़ताल में एक और अनियमितता सामने आई। पर्ची पर जहां 1 रुपए शुल्क लिखा था, वहीं काउंटर पर मौजूद महिला कर्मी ने उनसे 3 रुपए वसूले। इससे साफ है कि मरीजों से नियमों के विपरीत अतिरिक्त पैसे लिए जा रहे हैं। रिपोर्टर जब उपचार के लिए डॉक्टर के चेंबर पहुंचे, तो लगभग 15 मिनट बाद डॉक्टर आईं। जांच के दौरान उन्होंने दांत को “डुप्लीकेट” बताते हुए कहा कि अस्पताल में ऐसी कोई सुविधा नहीं है और मरीज को बाहर दिखाने की सलाह दे दी। जब रिपोर्टर ने डेंटल मशीन का जिक्र किया, तो डॉक्टर ने साफ कहा कि यहां कोई सुविधा नहीं है। मशीनें होने के बावजूद मरीज उपचार से वंचित महंगी मशीनें होने के बावजूद मरीजों को उपचार से वंचित किया जाना गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। लाखों रुपए के सरकारी संसाधन बंद कमरे में धूल फांक रहे हैं, जबकि ग्रामीण इलाज के लिए निजी क्लिनिकों पर निर्भर हैं। यह स्थिति प्रबंधन की नाकामी और सिस्टम की सुस्ती को उजागर करती है, जिस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। प्रभारी सह डॉ ब्रजेश कुमार ने बताया कि मामले की जांच कराई जाएगी। प्रबंधक से पूछा जाएगा कि डेंटल मशीन से इलाज क्यों नहीं किया जा रहा है। डेंटल मशीन रूम में ताला लगा रहता है। इसकी भी जांच करायी जाएगी। बांका के रजौन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में तीन वर्ष पूर्व लाखों रुपए की लागत से आधुनिक डेंटल मशीनें लगाई गई थीं। इनका उद्देश्य ग्रामीणों को दांत संबंधी समस्याओं का उपचार अस्पताल में ही उपलब्ध कराना था, लेकिन यह पूरी व्यवस्था आज भी सिर्फ कागजों में सक्रिय दिखाई देती है। वास्तव में, डेंटल रूम का ताला शायद ही कभी खुलता है और महंगी मशीनें बंद कमरे में धूल फांक रही हैं। दांत की सफाई, फिलिंग और एक्सट्रैक्शन जैसी सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद इनका उपयोग न के बराबर होता है, जिससे मरीजों को इन सुविधाओं की जानकारी तक नहीं मिल पाती। डॉक्टर दवा लिखकर मरीजों को कर रही वापस स्थानीय मरीजों का आरोप है कि डेंटल डॉक्टर रूबी रेड्डी दांत संबंधी समस्याओं को लेकर आने वालों को केवल दवा लिखकर वापस कर देती हैं। मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद अधिकांश मरीजों को निजी क्लिनिक का रुख करना पड़ता है। पड़ताल में एक और अनियमितता सामने आई। पर्ची पर जहां 1 रुपए शुल्क लिखा था, वहीं काउंटर पर मौजूद महिला कर्मी ने उनसे 3 रुपए वसूले। इससे साफ है कि मरीजों से नियमों के विपरीत अतिरिक्त पैसे लिए जा रहे हैं। रिपोर्टर जब उपचार के लिए डॉक्टर के चेंबर पहुंचे, तो लगभग 15 मिनट बाद डॉक्टर आईं। जांच के दौरान उन्होंने दांत को “डुप्लीकेट” बताते हुए कहा कि अस्पताल में ऐसी कोई सुविधा नहीं है और मरीज को बाहर दिखाने की सलाह दे दी। जब रिपोर्टर ने डेंटल मशीन का जिक्र किया, तो डॉक्टर ने साफ कहा कि यहां कोई सुविधा नहीं है। मशीनें होने के बावजूद मरीज उपचार से वंचित महंगी मशीनें होने के बावजूद मरीजों को उपचार से वंचित किया जाना गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। लाखों रुपए के सरकारी संसाधन बंद कमरे में धूल फांक रहे हैं, जबकि ग्रामीण इलाज के लिए निजी क्लिनिकों पर निर्भर हैं। यह स्थिति प्रबंधन की नाकामी और सिस्टम की सुस्ती को उजागर करती है, जिस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। प्रभारी सह डॉ ब्रजेश कुमार ने बताया कि मामले की जांच कराई जाएगी। प्रबंधक से पूछा जाएगा कि डेंटल मशीन से इलाज क्यों नहीं किया जा रहा है। डेंटल मशीन रूम में ताला लगा रहता है। इसकी भी जांच करायी जाएगी।


