7 दिन में बदला फैसला! महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा

7 दिन में बदला फैसला! महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा

महाराष्ट्र के पूर्व कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे का एक पुराना मामला अचानक से सुर्खियों में आ गया है। सात दिनों के अंदर-अंदर दो अदालतों ने इस मामले पर सुनवाई की, लेकिन दोनों अदालतों के अलग-अलग फैसलों ने इस केस को और महत्वपूर्ण बना दिया। जहां पहले एक अदालत के फैसले से कोकाटे की विधायकी पर खतरा मंडराने लगा था, वहीं दूसरी अदालत के फैसले से राहत मिलती नजर आई। इन्हीं तेजी से होते बदलावों की वजह से यह केस एक चर्चा का विषय बना हुआ है।

मामला क्या है?

यह मामला 1995 का है। इस मामले में माणिकराव कोकाटे और उनके भाई पर आरोप है कि उन दोनों ने नासिक में निमार्ण व्यू अपार्टमेंट्स में फ्लैट लेने के लिए दस्तावेजों में हेराफेरी की थी। यह केस पूर्व मंत्री तुकाराम दिघोले की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था। इस केस की सुनवाई लंबे समय तक चली। फरवरी 2025 में नासिक की मजिस्ट्रेट अदालत ने कोकाटे को दोषी ठहराते हुए दो साल की जेल और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। दो साल की सजा होने की वजह से उनके विधायक पद पर काफी असर पड़ने वाला था।

हाईकोर्ट से मिली थी थोड़ी राहत

नासिक की मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले के बाद कोकाटे ने हाईकोर्ट के दरवाजे खटखटाए। हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए कोकाटे को सुनाई गई दो साल की जेल की सजा को निलंबित कर दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत का मानना था कि दोषसिद्धि पर रोक लगाने से न्यायिक प्रक्रिया में जनता का भरोसा कमजोर हो सकता है। निलंबन का मतलब है कि अपील पर जब तक अंतिम फैसला नहीं सुनाया जाएगा, तब तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट के इस फैसले से कोकाटे पर पद से अयोग्य होने का खतरा बना रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बदला फैसला?

हाईकोर्ट के फैसले से पूरी तरह राहत नहीं मिलने पर कोकाटे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। इस मामले से कोकाटे को होने वाले नुकसान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद दोषसिद्धि पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि इस मामले को देखने पर दोषसिद्धि में ‘बुनियादी त्रुटि’ दिख रही है और इस पर विस्तार से सुनवाई जरूरी है। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगा दी और कोकाटे से विधायक पद से अयोग्य होने का खतरा भी टल गया।

सजा निलंबन और दोषसिद्धि पर रोक में अंतर

सजा निलंबन और दोषसिद्धि पर रोक दो अलग-अलग बातें हैं। सजा निलंबित होने के बाद दोषी जेन में नहीं जाता है, लेकिन फिर भी वह दोषी बना रहता है। लेकिन दोषसिद्धि पर रोक लगने से कुछ समय के लिए उस व्यक्ति को दोषी नहीं माना जाता है और दोषसिद्धि की वजह से होने वाले नुकसान से भी उसे राहत मिल जाती है।

पहले भी आ चुका है ऐसा मामला

मार्च 2023 में सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी को अपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाई थी। इस वजह से उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। गुजरात हाईकोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने से मना कर दिया था, लेकिन अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले पर रोक लगा दी और दोषसिद्धि पर रोक लगाने की अपील के स्वीकार किया।

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