भास्कर न्यूज | जांजगीर ब्रज गोपिका सेवा मिशन द्वारा आयोजित 21 दिवसीय प्रवचन श्रृंखला का सातवां दिन 7 दिसंबर को संपन्न हुआ। इसमें डॉ स्वामी युगल शरण ने संसार के वास्तविक स्वरूप और आत्मा के सुख पर विशेष प्रवचन दिया। उन्होंने संसार के विषय में सच्चा ज्ञान और वैराग्य ही भगवत् प्राप्ति की पहली सीढ़ी है। स्वामी ने प्रश्न उठाया कि हम अपने सुख के लिए किसे प्रसन्न करें- शरीर या आत्मा? उनका स्पष्ट उत्तर था कि केवल आत्मा को सुख देने से अनंत आनंद की प्राप्ति होती है। इसके लिए सबसे पहले हमें यह दृढ़ मान लेना होगा कि हम आत्मा हैं, न कि केवल शरीर। जब हम स्वयं को आत्मा के रूप में पहचानेंगे, तभी हमारा लक्ष्य आत्मा को सुखी बनाना होगा। स्वामी ने समझाया कि भौतिक साधनों और संपत्ति से आत्मा को सुखी नहीं किया जा सकता क्योंकि आत्मा भौतिक नहीं, बल्कि दिव्य है। प्रवचन में शरणागति के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया। स्वामी ने कहा कि शरणागति का अर्थ है अपने शरण्य (भगवान और गुरु) का सदा अनुकूल चिंतन करना, प्रतिकूल चिंतन से बचना, और अपने आप को हरि-गुरु को समर्पित करना। इस समर्पण में अहंकार का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। स्वामी ने बताया कि वर्तमान में हम पहली सीढ़ी भी पूरी तरह से पार नहीं कर पाए हैं, क्योंकि संसार का परिज्ञान अभी तक पूर्ण नहीं हुआ। जब मन में यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिस सुख की खोज हम अनादिकाल से कर रहे हैं, वह परमानंद और परम सुख संसार में नहीं है, तभी मन स्वाभाविक रूप से संसार से विरक्त हो जाएगा। भगवान को जानने के लिए संसार को जानना जरूरी: भगवान की प्राप्ति के क्रम को स्पष्ट करते हुए स्वामी ने कहा कि भगवान को जानने के लिए पहले संसार को जानना आवश्यक है। संसार का परिज्ञान होने के बाद ही वैराग्य उत्पन्न होता है और उसी वैराग्य से भगवान में अटूट श्रद्धा का विकास संभव है। श्रद्धा ही भगवान को जानने और उनकी प्राप्ति का मार्ग है। स्वामी ने कहा कि कई लोग सोचते हैं कि उन्होंने संसार को जान लिया है, लेकिन वास्तविक परिज्ञान के बिना वैराग्य संभव नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनंत जन्मों का प्रयास करने के बाद भी यदि संसार का सही ज्ञान न हुआ हो, तो वैराग्य उत्पन्न नहीं हो सकता।


