मिर्जापुर के गणेशगंज मोहल्ले में रविवार को एक हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य समाज को संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रहित से जोड़ने का संदेश देना रहा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जूना अखाड़ा के महंत डॉ. योगानंद गिरी महाराज रहे। अपने संबोधन में डॉ. योगानंद गिरी महाराज ने कहा कि यदि व्यक्ति जीवन में सच्चा सुख और शांति चाहता है, तो उसे अपने आपको संस्कारों और संस्कृति से जोड़कर रखना होगा। उन्होंने सनातन संस्कृति को खुश रहने का महामंत्र बताते हुए कहा कि इसमें धरती, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, पेड़-पौधे और पर्वत तक पूजनीय माने गए हैं। सनातन परंपरा सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना से प्रेरित है। महंत गिरी ने कहा कि “सुख देने से सुख मिलता है और दुःख देने से दुःख”- यही सनातन संस्कृति का मूल संदेश है। इसी भावना के कारण हम धरती को मां मानते हैं और संपूर्ण सृष्टि को एक परिवार के रूप में देखते हैं। उन्होंने वर्तमान समय में परिवार और नई पीढ़ी को मूल संस्कारों से जोड़ने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि वही पेड़ हरा-भरा रहता है जो अपनी जड़ों से जुड़ा होता है। इसी प्रकार समाज रूपी वृक्ष की डालियां भले ही अलग-अलग दिशाओं में फैली हों, लेकिन उसकी जड़ एक ही है। डॉ. योगानंद गिरी ने कहा कि सभी हिंदू एक हैं और राष्ट्रहित में उन्हें एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिव मूर्ति ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत के निर्माण में समाज के प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी आवश्यक है। उन्होंने सनातन संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति बताते हुए कहा कि इसमें धरती पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं और मनुष्यों को एक परिवार के रूप में देखा गया है। इस सम्मेलन में गोवर्धन त्रिपाठी, नितिन विश्वकर्मा, गौरव उमर, संजय सोनी सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे। वक्ताओं ने सामाजिक एकता, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्र निर्माण में सहभागिता पर बल दिया। कार्यक्रम के दौरान वातावरण धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत रहा।


