भारतीय सिनेमा को वैश्विक पहचान देने वाला लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल (LIFF) पिछले 16 वर्षों से यूरोप का सबसे बड़ा भारतीय फिल्म मंच बना हुआ है। फेस्टिवल के डायरेक्टर कैरी साहनी और इसके संरक्षक, प्रख्यात फिल्मकार प्रकाश झा के साथ यह खास बातचीत मुंबई के अंधेरी पश्चिम स्थित प्रकाश झा के कार्यालय में हुई, जहां भारतीय सिनेमा, स्वतंत्र फिल्मों और वैश्विक सांस्कृतिक संवाद पर विस्तार से चर्चा की गई। इस बातचीत में लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल की सोच, नए फिल्मकारों को मिलने वाले अंतरराष्ट्रीय अवसर और भारतीय सिनेमा की वैश्विक भूमिका पर बात हुई। सवाल: लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल 2010 से भारतीय सिनेमा को वैश्विक मंच दे रहा है। कैरी, जब आपने इसकी शुरुआत की थी, तब आपके मन में क्या विचार थे? जवाब/कैरी साहनी: जब हमने इस फेस्टिवल की शुरुआत की थी, तो उद्देश्य बिल्कुल साफ था। भारतीय और दक्षिण एशियाई सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों को दुनिया के सामने लाना। यह फेस्टिवल केवल बड़े कमर्शियल सिनेमा तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वतंत्र, विचारशील और प्रयोगधर्मी फिल्मों को भी मंच देता है। पिछले 16 वर्षों में यह यूरोप का सबसे बड़ा भारतीय फिल्म फेस्टिवल बन चुका है, और हमें गर्व है कि हम भारत की सभी भाषाओं और संस्कृतियों को दर्शकों तक पहुंचा रहे हैं। सवाल: प्रकाश जी, आपका इस फेस्टिवल से जुड़ाव कैसे हुआ? जवाब/प्रकाश झा: कैरी के साथ मेरा रिश्ता बहुत पुराना है। मेरी फिल्में परिणति और मृत्युदंड लंदन में दिखाई गई थीं। कैरी की सबसे बड़ी खासियत उनकी ईमानदारी और फिल्मों के प्रति उनका समर्पण है। वह दुनिया के किसी भी कोने से ऐसी फिल्में खोज लाते हैं, जो समाज से संवाद कर सकें। यही वजह है कि लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल आज एक इतना मजबूत मंच बन पाया है। ऐसे मंचों की भारतीय सिनेमा को बहुत जरूरत है। सवाल:यह फेस्टिवल नए और उभरते फिल्मकारों के लिए कितना अहम है? जवाब/कैरी साहनी: यह फेस्टिवल युवा फिल्मकारों के लिए एक बड़ा अवसर है। हमारे यहां शॉर्ट फिल्मों के लिए सत्यजीत रे शॉर्ट फिल्म प्रतियोगिता होती है। भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में बसे भारतीय मूल के फिल्मकार भी अपनी फिल्में भेजते हैं। कई ऐसी फिल्में होती हैं जिन्हें भारत में थिएटर रिलीज नहीं मिल पाती, उन्हें हम लंदन और यूके के अलग-अलग शहरों में दिखाते हैं। प्रकाश झा: जो फिल्में मुख्यधारा में जगह नहीं बना पातीं, उनके लिए फेस्टिवल सबसे बड़ा सहारा होता है। नए फिल्मकार, अलग विषयों पर काम करने वाले लोग, शॉर्ट फिल्म और आर्ट सिनेमा बनाने वाले, इन सभी को यहां पहचान मिलती है। यही किसी भी फेस्टिवल का असली काम है। सवाल:इस फेस्टिवल में भाग लेने की प्रक्रिया क्या है? जवाब/कैरी साहनी: पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है। कोई भी फिल्मकार अपनी फिल्म भेज सकता है। एक चयन समिति फिल्मों को देखती है और चुनी गई फिल्मों को आमंत्रित कर, उन्हें अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। हम सालभर दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल्स पर नजर रखते हैं। कान, टोरंटो, गोवा फिल्म बाजार जैसी जगहों से भी बेहतरीन फिल्में चुनते हैं। सवाल: आप इस फेस्टिवल को सांस्कृतिक सेतु के रूप में कैसे देखते हैं? जवाब/प्रकाश झा: सिनेमा की कोई भाषा या सीमा नहीं होती। यह एक यूनिवर्सल भाषा है। अच्छी कहानी हर जगह समझी जाती है। आज ओटीटी और सबटाइटल्स ने भाषा की दीवारें पूरी तरह गिरा दी हैं। भारत के अलग-अलग हिस्सों का सिनेमा अब पूरी दुनिया में देखा जा रहा है। कैरी साहनी: हमारे दर्शकों में लगभग 50 प्रतिशत गैर-भारतीय होते हैं। वे भारत को केवल रोमांटिक या आदर्श रूप में नहीं, बल्कि उसकी सच्ची, यथार्थ तस्वीर के रूप में देखना चाहते हैं। हमारी फिल्में उन्हें भारत की विविधता, संघर्ष, सपने और जुनून से परिचित कराती हैं। सवाल:कैरी, प्रकाश झा की कौन-सी फिल्म आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करती है? जवाब/कैरी साहनी: मृत्युदंड। मैंने इसे बीएफआई लंदन फिल्म फेस्टिवल में प्रोग्राम किया था। उसका अंत आज भी याद है, दर्शकों की प्रतिक्रिया विस्फोटक थी। प्रकाश जी की फिल्मों में सामाजिक सरोकार बहुत गहरे होते हैं। वे केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया से संवाद करती हैं। सवाल:अंत में, लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल पर क्या कहेंगे? जवाब/कैरी साहनी: यह सिर्फ भारतीय फिल्मों का नहीं, बल्कि बेहतरीन सिनेमा का उत्सव है। प्रकाश झा:ऐसे मंच भारतीय सिनेमा की आत्मा को दुनिया तक पहुंचाते हैं।
‘सिनेमा की कोई भाषा और सीमा नहीं होती’:लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल पर प्रकाश झा बोले- इसका मकसद भारतीय फिल्मों को दुनिया तक पहुंचाना


