भैरव अष्टमी कल, 13 नवंबर को निकलेगी सवारी:ब्रह्म योग में अष्ट भैरव पूजन का विशेष महत्व; सिद्धवट तक सवारी पहुंचेगी

भैरव अष्टमी 12 नवंबर, बुधवार को ब्रह्म योग में मनाई जाएगी। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार बुधवार का दिन भैरव साधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। ब्रह्म योग में की गई विशिष्ट साधना उच्च पद और सिद्धि प्रदान करती है। इस दिन अष्ट भैरव की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। भैरव साधना चार प्रहरों में बताई गई ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि भैरव को रुद्रांश, यानी भगवान शिव का ही एक स्वरूप माना गया है। भैरव प्राकट्य उत्सव के अवसर पर चार प्रहरों की साधना का उल्लेख मिलता है। प्रदोष काल में भैरव पूजन की विशेष मान्यता बताई गई है। तंत्र ग्रंथों के अनुसार चार प्रहरों में चार प्रकार की साधनाएं की जाती हैं। इनमें वैदिक, तामसिक और राजसिक तीनों प्रकार की उपासनाओं का वर्णन मिलता है। पं. डब्बावाला के अनुसार, भैरव मूल रूप से तमोगुण के अधिष्ठाता देवता हैं। गोत्र भेद के अनुसार प्रत्येक साधक को साधना के लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है। गुरु के बिना की गई साधना पूर्ण फल नहीं देती, बल्कि विपरीत प्रभाव भी डाल सकती है। इसलिए साधकों को आचार्य की देखरेख में ही साधना करनी चाहिए। स्कंद पुराण में अष्ट भैरव की यात्रा का उल्लेख स्कंद पुराण के अवंती खंड में अष्ट महा भैरव की यात्रा का विस्तार से उल्लेख मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वर्तमान में प्रतिष्ठित अष्ट महा भैरव हैं, काल भैरव, विक्रांत भैरव, आनंद भैरव, बटुक भैरव, दंडपाणि भैरव और आताल-पाताल भैरव सहित अन्य रूप। सिंहपुरी स्थित आताल-पाताल भैरव बाल रूप में प्रतिष्ठित अष्ट महा भैरवों में आताल-पाताल भैरव का स्वरूप बाल रूप में पूजित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थान पर नवनाथों के आगमन का उल्लेख मिलता है। भैरवनाथ का नाथ संप्रदाय से संबंध भी कई आगम ग्रंथों में वर्णित है। आताल-पाताल भैरव इसलिए भी विशेष माने जाते हैं क्योंकि यहां देश की सबसे बड़ी होली मनाई जाती है। यहां आज भी पारंपरिक आवार्चन संस्कृति के अंतर्गत ब्राह्मणों द्वारा पूजा-पद्धति का निर्वाह किया जाता है। 13 नवंबर को निकलेगी बाबा कालभैरव की सवारी भैरव अष्टमी के उपलक्ष्य में 13 नवंबर, गुरुवार को भगवान महाकाल के कोतवाल श्री कालभैरव की सवारी नगर भ्रमण के लिए निकलेगी। शाम 4 बजे कालभैरव मंदिर से सवारी की शुरुआत होगी। इससे पहले मंदिर के सभा मंडप में भगवान कालभैरव की रजत प्रतिमा का पूजन किया जाएगा। सवारी पारंपरिक मार्गों से होते हुए भैरवगढ़ क्षेत्र पहुंचेगी। यहां केंद्रीय जेल भैरवगढ़ के मुख्य द्वार पर गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा। इसके बाद सवारी सिद्धवट पहुंचेगी, जहां पूजन-अर्चन के पश्चात वापस कालभैरव मंदिर लौटेगी।

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