Ashish Limaye का कमाल: साधारण परिवार से आकर एशियाई गोल्ड जीतकर भारत को दी नई पहचान, घुड़सवारी का बढ़ा क्रेज़

Ashish Limaye का कमाल: साधारण परिवार से आकर एशियाई गोल्ड जीतकर भारत को दी नई पहचान, घुड़सवारी का बढ़ा क्रेज़

भारत में अब घुड़सवारी केवल शौकिया खेल नहीं रह गया है, बल्कि यह धीरे-धीरे अपनी मजबूत पहचान बना रहा है। इसी बदलाव की सबसे बड़ी मिसाल बने हैं एशियन गोल्ड मेडलिस्ट आशीष लिमये, जिन्होंने हाल ही में एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है।गौरतलब है कि पुणे निवासी आशीष का सफर बेहद साधारण हालात से शुरू हुआ था। बचपन में वे एक टांगेवाले के घोड़ों की सवारी किया करते थे और वहीं से उन्हें घुड़सवारी से लगाव हुआ। महज 10 साल की उम्र में उन्होंने तय कर लिया था कि यही उनका रास्ता है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पूरी तरह इस खेल को अपनाया और आज वे देश के शीर्ष इवेंटिंग राइडर्स में गिने जाते हैं।एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद आशीष ने कहा कि यह उनके लिए सपने के सच होने जैसा है। उनके मुताबिक इस सफर में सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक रही, लेकिन सही लोगों का साथ मिलने से रास्ता आसान होता गया।मौजूद जानकारी के अनुसार, एम्बेसी इंटरनेशनल राइडिंग स्कूल के डायरेक्टर सिल्वा स्टोराई का मानना है कि इस जीत ने देश के युवाओं को एक नया विकल्प दिया है। उनका कहना है कि अब क्रिकेट के अलावा भी बच्चे घुड़सवारी जैसे खेलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।इस पूरी यात्रा में बेंगलुरु के उद्योगपति जीतू वीरवानी की भूमिका भी अहम रही है। उन्होंने 1996 में एम्बेसी राइडिंग स्कूल की शुरुआत की थी, ताकि यह खेल आम भारतीयों तक पहुंच सके। वीरवानी का मानना है कि संसाधनों और सही प्रशिक्षण से भारत इस खेल में भी दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो सकता है।बता दें कि इसी संस्थान से ओलंपियन फवाद मिर्ज़ा जैसे खिलाड़ी भी निकले हैं, जिन्होंने भारत को 20 साल बाद ओलंपिक में प्रतिनिधित्व दिलाया था। आज भी एम्बेसी राइडिंग स्कूल जूनियर नेशनल चैंपियनशिप जैसे आयोजनों के जरिए जमीनी स्तर पर खेल को मजबूत कर रहा है।हालांकि, खेल प्रशासन से जुड़ी चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं, लेकिन निजी संस्थानों की पहल भारतीय घुड़सवारी को आगे बढ़ा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह युवा खिलाड़ियों में जुनून और संसाधनों का मेल दिख रहा है, आने वाले वर्षों में भारत इस खेल में भी वैश्विक ताकत बन सकता है। 

भारत में अब घुड़सवारी केवल शौकिया खेल नहीं रह गया है, बल्कि यह धीरे-धीरे अपनी मजबूत पहचान बना रहा है। इसी बदलाव की सबसे बड़ी मिसाल बने हैं एशियन गोल्ड मेडलिस्ट आशीष लिमये, जिन्होंने हाल ही में एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है।
गौरतलब है कि पुणे निवासी आशीष का सफर बेहद साधारण हालात से शुरू हुआ था। बचपन में वे एक टांगेवाले के घोड़ों की सवारी किया करते थे और वहीं से उन्हें घुड़सवारी से लगाव हुआ। महज 10 साल की उम्र में उन्होंने तय कर लिया था कि यही उनका रास्ता है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पूरी तरह इस खेल को अपनाया और आज वे देश के शीर्ष इवेंटिंग राइडर्स में गिने जाते हैं।
एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद आशीष ने कहा कि यह उनके लिए सपने के सच होने जैसा है। उनके मुताबिक इस सफर में सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक रही, लेकिन सही लोगों का साथ मिलने से रास्ता आसान होता गया।
मौजूद जानकारी के अनुसार, एम्बेसी इंटरनेशनल राइडिंग स्कूल के डायरेक्टर सिल्वा स्टोराई का मानना है कि इस जीत ने देश के युवाओं को एक नया विकल्प दिया है। उनका कहना है कि अब क्रिकेट के अलावा भी बच्चे घुड़सवारी जैसे खेलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
इस पूरी यात्रा में बेंगलुरु के उद्योगपति जीतू वीरवानी की भूमिका भी अहम रही है। उन्होंने 1996 में एम्बेसी राइडिंग स्कूल की शुरुआत की थी, ताकि यह खेल आम भारतीयों तक पहुंच सके। वीरवानी का मानना है कि संसाधनों और सही प्रशिक्षण से भारत इस खेल में भी दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो सकता है।
बता दें कि इसी संस्थान से ओलंपियन फवाद मिर्ज़ा जैसे खिलाड़ी भी निकले हैं, जिन्होंने भारत को 20 साल बाद ओलंपिक में प्रतिनिधित्व दिलाया था। आज भी एम्बेसी राइडिंग स्कूल जूनियर नेशनल चैंपियनशिप जैसे आयोजनों के जरिए जमीनी स्तर पर खेल को मजबूत कर रहा है।
हालांकि, खेल प्रशासन से जुड़ी चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं, लेकिन निजी संस्थानों की पहल भारतीय घुड़सवारी को आगे बढ़ा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह युवा खिलाड़ियों में जुनून और संसाधनों का मेल दिख रहा है, आने वाले वर्षों में भारत इस खेल में भी वैश्विक ताकत बन सकता है।

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