दिल्ली में कृत्रिम बारिश का परिक्षण सफल:कर्नाटका के बाद अब दिल्ली में 28 के बाद होगी वर्षा, बादल छाने का इंतजार

दिल्ली में कृत्रिम बारिश का परिक्षण सफल:कर्नाटका के बाद अब दिल्ली में 28 के बाद होगी वर्षा, बादल छाने का इंतजार

दिल्ली में कृत्रिम बारिश को लेकर IIT कानपुर का परीक्षण सफल रहा है। कर्नाटका में सबसे पहले वहां की सरकार ने कृत्रिम बारिश कराई थी। इसी तरह अब दिल्ली में भी होने जा रहा हैं। संस्थान ने खुशी जाहिर की है कि अब जल्द है दिल्ली के प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। अब बस बादलों का इंतजार किया जा रहा है। उम्मीद है कि 28 अक्टूबर के बाद जब बादल छाएंगे, उसके बाद 29 या 30 अक्टूबर में बारिश कराई जाएगी। इसको लेकर संस्थान की ओर से जो तैयारियां की गई थी वो सभी संतोषजनक रहीं। दोपहर 2 बजे एयरक्राफ्ट को उड़ाया गया आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणिंद्र अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली में दोपहर बाद करीब 2 बजे एयरक्राफ्ट को उड़ाया गया था, जोकि शाम 6 बजे वापस आया। इस दौरान हवा में रासायनिक पदार्थ का छिड़काव किया गया, लेकिन ऊपर बादल न होने के कारण बारिश तो नहीं हुई, लेकिन परीक्षण सफल रहा। हवा में डाला गया रासायनिक ऊपर की गया।
अब 29 या 30 को होगी बारिश मणिंद्र अग्रवाल ने बताया कि अब पूरी उम्मीद है कि जब आसमान पर बादल रहेंगे और अच्छी नमी हो जाएगी, इसके बाद एयरक्राफ्ट को फिर से बादलों के बीच में भेजा जाएगा। फिर से रासायनिक पद्रार्थों के मिश्रण का छिड़काव किया जाएगा। इसके बाद बारिश होगी। उम्मीद है कि 28 अक्टूबर के बाद यानि 29 या 30 अक्टूबर ये कृत्रिम बारिश होगी। उन्होंने कहा दिल्ली सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि ये आइडिया दिल्ली सरकार का ही था। इसके बाद आईआईटी कानपुर ने इस पर पूरा काम किया और आज इस पर पूरी तरह से सफल हो गए हैं। अब जानिए कैसे होती हैं कृत्रिम बारिश जब दो कम घनत्व वाले बादल आपस में मिलते हैं तो बारिश होती है। क्लाउड सीडिंग में भी यही काम किया जाता है। इसके लिए सिल्वर आयोडाइड (AgI) का इस्तेमाल किया जाता है, जो बादलों में मिलाकर उसे बूंदों के रूप में बदल देती हैं। इसी प्रोसेस को क्लाउड सीडिंग कहा जाता है।
इस टेक्नोलॉजी में बादलों का होना जरूरी
अगर आपको ये लग रहा है कि क्लाउड सीडिंग कभी भी हो सकती है तो ऐसी नहीं हैं। इसके लिए बादलों का होना जरूरी है। जब बादल होंगे तभी नमी होगी। अगर हवा में बादल नहीं होंगे तो बारिश भी नहीं होगी। ये टेक्नोलॉजी सिर्फ बादलों का कंडेंसेशन बढ़ाकर बारिश करवाता है। इससे पहले भी हो चुकी है क्लाउड सीडिंग
भारत में इससे पहले भी कई बार ऐसे क्लाउड सीडिंग हो चुकी हैं। भारत में 1983, 1987 में इसका पहली बार इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा तमिलनाडु सरकार ने 1993-94 में ऐसा किया गया था। इसे सूखे की समस्या को खत्म करने के लिए किया गया था। साल 2003 में कर्नाटक सरकार ने भी क्लाउड सीडिंग करवाई थी। इसके अलावा महाराष्ट्र में भी ऐसा किया जा चुका है।
एक किलोमीटर में एक लाख से अधिक का होता खर्च
विशेषज्ञ ने बताया कि एक किलोमीटर के इलाके में कृत्रिम बारिश करवाने का कम से कम एक लाख रुपए से भी अधिक का खर्च आता है। अगर पूरी दिल्ली में बारिश करवाई जाती है तो खर्च कई करोड़ रुपए का आएगा। फिलाहल कितनी एरिया में बारिश कराई जाएगी, इसके बारे में अभी नहीं बताया गया है।

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