Samajwadi Party Donations Double After 2024-25 Lok Sabha Surge: लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन करते हुए 37 सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) की राजनीतिक ताकत का असर अब उसके आर्थिक संसाधनों पर भी साफ दिखाई देने लगा है। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा को वित्त वर्ष 2024-25 में स्वैच्छिक चंदे के रूप में कुल 93.47 लाख रुपये प्राप्त हुए हैं, जो पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के मुकाबले लगभग दोगुना है। उस समय पार्टी के लोकसभा में केवल पांच सांसद थे और उसे कुल 46.75 लाख रुपये का ही चंदा मिला था।
यह जानकारी समाजवादी पार्टी द्वारा चुनाव आयोग को सौंपे गए स्वैच्छिक योगदान (20,000 रुपये से अधिक) के वार्षिक रिटर्न के विश्लेषण से सामने आई है। पार्टी ने यह विवरण अक्टूबर 2025 में जमा किया था, जिसे चुनाव आयोग ने शनिवार को सार्वजनिक किया।
2022 के बाद लगातार बढ़ रहा है चंदा
विश्लेषण के अनुसार, समाजवादी पार्टी को मिलने वाला चंदा 2022-23 से लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2022-23 में पार्टी को 26.92 लाख रुपये का चंदा मिला था। यह वही वित्त वर्ष था, जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में सपा ने 2017 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था, हालांकि सत्ता में नहीं आ सकी थी।
इसके बाद 2023-24 में पार्टी को 46.75 लाख रुपये प्राप्त हुए और अब 2024-25 में यह आंकड़ा बढ़कर 93.47 लाख रुपये तक पहुंच गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में सपा की मजबूत वापसी और उत्तर प्रदेश में भाजपा को कड़ी चुनौती देने की क्षमता ने पार्टी की स्वीकार्यता और भरोसे को बढ़ाया है, जिसका असर चंदे पर भी पड़ा है।
किनसे और कितना मिला चंदा
चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में समाजवादी पार्टी को 15 व्यक्तियों से 58.47 लाख रुपये और तीन कंपनियों से 35 लाख रुपये का योगदान प्राप्त हुआ। सबसे बड़ा योगदान कोलकाता स्थित पार्टी कोषाध्यक्ष सुदीप रंजन सेन और उनकी पत्नी अदिति सेन की ओर से आया। दोनों ने मिलकर पार्टी को 30 लाख रुपये का चंदा दिया। सुदीप रंजन सेन इससे पहले भी पार्टी के सबसे बड़े दानदाता रहे हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में उन्होंने 25 लाख रुपये का योगदान दिया था, जो उस वर्ष सपा को मिले कुल चंदे का करीब 53 प्रतिशत था।
कंपनियों की बात करें तो एसएलवी फैसिलिटी मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने 20 लाख रुपये का योगदान दिया। मुंबई स्थित निर्माण कंपनी स्टार बिल्डर एंड डेवलपर्स ने 10 लाख रुपये दिए। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर की कंपनी इंपीरियल गार्डन्स एंड रिसॉर्ट्स से पार्टी को 5 लाख रुपये प्राप्त हुए।
लोकसभा चुनाव के दौरान आया 31 प्रतिशत चंदा
रिपोर्ट के अनुसार, सपा को मिले कुल चंदे का 31 प्रतिशत हिस्सा करीब 29 लाख रुपये लोकसभा चुनाव की अवधि के दौरान प्राप्त हुआ। यह अवधि 18 अप्रैल 2024 से 3 जून 2024 तक की रही, जबकि चुनाव परिणाम 4 जून को घोषित किए गए थे। यह तथ्य इस ओर इशारा करता है कि चुनाव के दौरान और संभावित जीत की उम्मीद के बीच पार्टी को आर्थिक समर्थन बढ़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावी माहौल में राजनीतिक दलों की संभावनाओं को देखकर दानदाता अधिक सक्रिय हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के दानदाता रहे प्रमुख
कोलकाता और मुंबई से आए कुछ बड़े योगदानों को छोड़ दिया जाए, तो समाजवादी पार्टी को चंदा देने वाले अधिकांश दानदाता उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से हैं। इनमें आगरा, कन्नौज, गाजियाबाद, प्रतापगढ़, एटा, जौनपुर और गौतम बुद्ध नगर जैसे जिले शामिल हैं। यह दर्शाता है कि पार्टी को अब भी सबसे मजबूत आर्थिक और सामाजिक समर्थन अपने परंपरागत राज्य उत्तर प्रदेश से ही मिल रहा है। सपा का कोर वोट बैंक और संगठनात्मक आधार भी राज्य में ही केंद्रित है।
चुनावी सफलता और चंदे का संबंध
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, किसी भी पार्टी को मिलने वाले चंदे का सीधा संबंध उसके चुनावी प्रदर्शन और भविष्य की संभावनाओं से होता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका दिया और इंडिया गठबंधन के प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरी। इसका असर पार्टी की छवि और विश्वसनीयता पर पड़ा, जिससे दानदाताओं का भरोसा भी बढ़ा। हालांकि, यह भी सच है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों की तुलना में सपा को मिलने वाला चंदा अब भी काफी कम है।
सपा का आरोप: डर की वजह से नहीं मिल रहा अपेक्षित चंदा
समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि पार्टी को मिलने वाला चंदा उसकी उम्मीदों से काफी कम है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा सरकार के डर से बड़े उद्योगपति और कारोबारी सपा को खुलकर दान नहीं देते।
चौधरी ने कहा कि समाजवादी पार्टी को बहुत कम लोगों से चंदा मिल रहा है। पूंजीपति और बड़े कारोबारी भाजपा सरकार की कार्रवाई के डर से सपा को योगदान देने से बचते हैं। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है, जब चुनावी बॉन्ड योजना खत्म होने के बाद राजनीतिक दलों को मिलने वाले कॉरपोरेट चंदे को लेकर देशभर में बहस तेज है।
चुनावी बॉन्ड के बाद बदला परिदृश्य
हाल ही में सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड खत्म होने के बाद कॉरपोरेट ट्रस्टों के जरिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे में तेज बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, इस बढ़ोतरी का सबसे अधिक लाभ राष्ट्रीय स्तर की बड़ी पार्टियों को मिला है। क्षेत्रीय दलों, खासकर विपक्षी दलों को अब भी सीमित संसाधनों में ही चुनावी राजनीति करनी पड़ रही है।


