सरगुजा जिले के परसोढ़ी कला गांव के पेसा एक्ट, पंचायती राज विस्तार अनुसूचित क्षेत्र अधिनियम, 1996 के लागू होने की 29वीं वर्षगांठ पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने आरोप लगाया कि पेसा एक्ट एवं ग्रामसभाओं की अनदेखी कर छत्तीसगढ़ में खदानें खोली जा रही हैं। इससे ग्रामीणों की संस्कृति एवं पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है। पेसा एक्ट होने की वर्षगांठ पर परसोढ़ी कला गांव में स्वशासन दिवस मनाया गया। गांव गणराज्य संगठन के संयोजक जनसाय पोया ने कहा कि हम एकजुट होकर पेसा एक्ट और वन अधिकार अधिनियम जैसे कानूनों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। साथ ही खदान विस्तार का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पेसा एक्ट 24 दिसंबर 1996 को लागू हुआ था, जो अनुसूचित क्षेत्रों पांचवीं अनुसूची में आदिवासी समुदायों को ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन का अधिकार देता है। ग्रामसभा की अनदेखी कर खदानों को मंजूरी
जनसाय पोया ने कहा कि पेसा कानून प्राकृतिक संसाधनों जल, जंगल, जमीन पर स्थानीय नियंत्रण, खनन परियोजनाओं के लिए ग्राम सभा की अनिवार्य सहमति और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए अधिकार देता है। छत्तीसगढ़ में कई वर्षों बाद पेसा एक्ट को लागू किया गया, लेकिन जिला प्रशासन और खनन कंपनियां इसकी लगातार अनदेखा कर रही हैं। कोल बेयरिंग एक्ट 1957 का हवाला देकर अधिकारी संविधान की गलत व्याख्या कर रहे हैं, जबकि पेसा कानून की अहमियत है। खदान विस्तार के नाम पर हसदेव के जंगल व जलस्रोत नष्ट हो रहे हैं, जिससे ग्रामीणों की आजीविका एवं संस्कृति प्रभावित हो रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि खदान विस्तार के लिए ग्राम सभा की सहमति नहीं ली गई, मुआवजा अपर्याप्त है और पर्यावरण क्षति हो रही है। वे संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। कार्यक्रम में परसोढ़ी कला सहित आसपास के गांवों से ग्रामीण बड़ी संख्या में जुटे थे।


