बिहार नतीजों से यूपी में केशव मौर्य का बढ़ेगा कद:टूट सकती है अखिलेश-राहुल की जोड़ी, जानिए नतीजों का असर

बिहार नतीजों से यूपी में केशव मौर्य का बढ़ेगा कद:टूट सकती है अखिलेश-राहुल की जोड़ी, जानिए नतीजों का असर

बिहार चुनाव में NDA ने रिकॉर्ड जीत हासिल की है। BJP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इसका असर अब यूपी में पंचायत चुनाव से लेकर 2027 के विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है। BJP पर सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल (S), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), निषाद पार्टी का दबाव कम होगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार के नतीजों के बाद यूपी में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा को नए सिरे से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। अखिलेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ अपनी शर्तों पर गठबंधन करेंगे। बिहार चुनाव नतीजों में भाजपा को बढ़त
अब तक के रुझानों में जेडीयू को 83, लोजपा को 19 सहित एनडीए को कुल 202 सीटें मिली हैं। बिहार चुनाव के नतीजे खासतौर पर पूर्वांचल में असर करते हैं। पूर्वांचल और बिहार की संस्कृति और परिवेश भी एक जैसा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार चुनाव के नतीजों से यूपी में गाजीपुर से सहारनपुर तक भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा, लोकसभा चुनाव के बाद जो निराशा छाई थी, वह हटेगी और कार्यकर्ता पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव तक नए जोश से काम करेंगे। जानिए बिहार के नतीजों से भाजपा को क्या राहत मिली? 1- खफा नेता चुनाव से पहले दल बदलने से बचेंगे
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि हर बार चुनाव से पहले कुछ विधायक और नेता दल बदलते हैं। बिहार चुनाव परिणाम के बाद भाजपा और सहयोगी दलों के नाराज नेता भी दल बदलने से बचेंगे। यह भी संभव है कि 2021-22 की तरह सपा के कुछ बड़े नेता भाजपा का दामन थाम लें। 2- सहयोगी दलों की हैसियत घटेगी
यूपी में एनडीए के सहयोगी दलों की मोलभाव की ताकत में कमी आएगी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में भाजपा ने सुभासपा को एनडीए से बाहर कर साफ संदेश दे दिया था कि वह दबाव में नहीं आएगी। चुनाव के नतीजों से बीजेपी ने साफ कर दिया है कि जनता में पीएम नरेंद्र मोदी का जादू बरकरार है। चुनावी रणनीति में भाजपा के सामने विपक्षी राजनीतिक दल टिक नहीं रहे हैं। ऐसे में यूपी में आगामी पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव में भाजपा और योगी सरकार का मनोबल और राजनीतिक बल बढ़ेगा। सीटों के बंटवारे में सहयोगी दलों का दबाव या मनमर्जी ज्यादा नहीं चलेगी। 3- विधायकों के लिए भी है नसीहत
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार चुनाव के परिणाम यूपी में बीजेपी के विधायकों के लिए भी नसीहत है। जो विधायक खुद को संगठन व सरकार से ऊपर मानकर चलते हैं, कार्यकर्ताओं और जनता की सुनवाई नहीं करते, पार्टी उनका टिकट काट सकती है। मौजूदा माहौल में भाजपा जिसे पात्र मानकर टिकट देगी, वही मजबूत विकल्प बन जाएगा। भाजपा के अंदर-बाहर क्या असर होगा? 1- भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रभावी होगा
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में भाजपा की प्रचंड जीत से पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व प्रभावी होगा। खासतौर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और उनकी टीम का प्रभाव पहले से ज्यादा बढ़ेगा। उसका असर यूपी में योगी सरकार और भाजपा संगठन पर भी देखने को मिलेगा। बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति, योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में असर देखने को मिलेगा। पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में भी प्रदेश से ज्यादा केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका अधिक रहेगी। 2- केशव प्रसाद मौर्य का कद बढ़ेगा
भाजपा ने बिहार चुनाव में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सह प्रभारी नियुक्त किया था। चुनाव में डिप्टी सीएम केशव ने चुनावी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई। साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के चुनाव प्रबंधन के एजेंडे को जमीन पर उतारा। बिहार में पिछड़ी जातियों को भी एकजुट करने में सक्रिय भूमिका निभाई। करीब दो महीने तक बिहार में बूथ से लेकर प्रदेश स्तर पर चुनावी जाजम बिछाई। उल्लेखनीय है कि 2017 में केशव के नेतृत्व में ही यूपी में भाजपा को 312 सीटें मिली थीं। पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनाव के दौरान ही केशव को अपने प्रतिनिधि के रूप में भगवान बुद्ध के अस्थि कलश लेकर रूस भेजा था। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में भाजपा और एनडीए की प्रचंड जीत से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का राजनीतिक कद बढ़ेगा। विपक्ष पर असर क्या? अखिलेश को करना होगा मंथन
बिहार चुनाव के नतीजे ने संकेत दिया है कि विपक्ष अपनी पकड़ मजबूत नहीं बना पा रहा है। बिहार जातीय ध्रुवीकरण का गढ़ है और वहां ओबीसी का दबाव है। इसके बाद भी विपक्षी गठबंधन को हताशा मिली है। नतीजे विपक्ष के लिए खतरे की घंटी भी हैं। आगामी चुनावों के मद्देनजर सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अपनी कमियों, चुनौतियों और सामाजिक समीकरण के साथ चुनावी रणनीति पर मंथन करना होगा। अखिलेश यादव को चुनावी रणनीति पर गहन मंथन करना होगा। अखिलेश यादव ने भी बिहार में करीब 22 चुनावी रैलियां की थी। ऐसा माना जा रहा है कि यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन होगा। सपा को पीडीए से इतर कोई नया कार्ड खेलना होगा। दलित वोटर मायावती के लिए फिर एकजुट
बसपा प्रमुख मायावती ने बिहार चुनाव में सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। 2020 में बसपा ने 181 सीट पर चुनाव लड़ा था। तब उसे एक सीट पर सफलता मिली थी। चैनपुर से जीते जमा खान जेडीयू में चले गए थे। रामगढ़ और गोपालगंज में बसपा दूसरे नंबर पर थी। इस बार का बिहार चुनाव मायावती के भतीजे आकाश आनंद के लिए भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने बिहार में काफी रैली व सभाएं की थीं। हालांकि पार्टी का सबसे अधिक फोकस यूपी से सटे जिलों में खासकर कैमूर जिले पर था। परिणाम आया तो यहां की रामगढ़ सीट बसपा जीतने में सफल रही। बसपा यूपी के सटे जिले में खासकर दलित बहुल सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रही। संदेश साफ है कि दलित वोटर एक बार फिर बसपा के पक्ष में एकजुट हुए हैं। यूपी में इसका बसपा को फायदा मिलेगा। अब एक्सपर्ट व्यू समझिए… वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय का कहना है कि बिहार और पूर्वांचल की संस्कृति और परिवेश एक जैसा है। बिहार के नतीजे यूपी के पूर्वांचल में असर डालते हैं। बिहार के नतीजों से यूपी में बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ेगा। बिहार की जीत में यूपी के नेताओं का भी बड़ा योगदान है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्‌ट का कहना है कि अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी मानते हैं कि उनके पास मौजूद जाति के अक्षय पात्र में वोट गिरते रहेंगे। लेकिन मौजूदा दौर की राजनीति में राजनीतिक दलों को परफॉर्म करना होगा, डिलीवर करना होगा। विकास और रोजगार का मॉडल देना होगा। उन्हें समझना होगा कि अब वह दौर नहीं है कि पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता आपके हाथ में रहेगी। वहीं, दिल्ली में जिस तरह से केजरीवाल को और बिहार में आरजेडी को कांग्रेस ने अंत तक फंसाए रखा, उससे सपा को सबक लेना चाहिए। कांग्रेस यूपी में भी समाजवादी पार्टी को ठीक-ठाक तरीके से परेशान और हैरान करेगी। ————————— ये खबर भी पढ़ें… योगी बिहार में भी अखिलेश पर भारी पड़े:31 सीटों में से 27 जीती, सपा प्रमुख की 22 सभाओं में 20 हारी बिहार चुनाव में एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की है। इस चुनाव में यूपी के नेताओं का भी बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ था। बिहार चुनाव में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने 31 सभाएं व रैलियां की। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने किसी भी सीट पर चुनाव लड़े बगैर बिहार में महागठबंधन के पक्ष में 22 सीटों पर प्रचार किया था। रिजल्ट में यूपी सीएम भारी पड़े। उनकी जीत का स्ट्राइक रेट 87 प्रतिशत से अधिक है। एनडीए के 31 में से 27 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। जबकि अखिलेश यादव का स्ट्राइक रेट महज 9 प्रतिशत रहा। उनके प्रचार वाली सिर्फ दो सीटों पर महागठबंधन को जीत मिली। पढ़ें पूरी खबर

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