शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी विद्यालयों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति राशि के मामले में प्रशासनिक उदासीनता की तस्वीर साफ झलक रही है। नालन्दा जिले के 167 निजी विद्यालयों की जांच की जिम्मेदारी आठ महीने पहले सौंपे जाने के बावजूद अब तक महज 84 स्कूलों की ही जांच पूरी हो सकी है। फरवरी 2025 मिली थी जांच की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ने दिसंबर 2024 में ही जिलाधिकारी को पत्र भेजकर आरटीई के तहत निजी विद्यालयों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति राशि से संबंधित व्यापक जांच कराने के लिए कहा था। इस जांच में विद्यालयों की शुल्क संरचना, निशुल्क पोशाक आपूर्ति और निशुल्क पाठ्यपुस्तक की आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया था। तत्कालीन जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने फरवरी 2025 में विभागीय प्रावधानों के अनुसार 23 जिलास्तरीय अधिकारियों की जांच टीम का गठन किया था। इन अधिकारियों को वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर 2023-24 तक पांच वर्षों की प्रतिपूर्ति राशि के दावों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आधे से अधिक स्कूलों की जांच बाकी विभागीय रिपोर्ट के अनुसार सोमवार तक केवल 84 विद्यालयों की जांच पूरी हो पाई है, जबकि शेष 83 विद्यालयों की जांच अभी भी लंबित है। यह स्थिति तब है जब जांच शुरू हुए आठ महीने का समय बीत चुका है। इस धीमी गति से चिंतित होकर शिक्षा विभाग के वर्तमान अपर मुख्य सचिव डॉ. बी राजेंदर ने गंभीर नाराजगी जाहिर की है। डॉ. राजेंदर ने जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) को सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि आरटीई के तहत प्रतिपूर्ति राशि से संबंधित सभी मामलों की जांच जल्द से जल्द पूर्ण की जाए। साथ ही उन्होंने सभी निजी विद्यालयों की जांच रिपोर्ट संबंधित पोर्टल पर अपलोड करने का भी आदेश जारी किया है। क्या है आरटीई का प्रावधान? शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत सीटें कमजोर वर्ग और अलाभकारी समूह के बच्चों के लिए आरक्षित हैं। इन बच्चों की शिक्षा का पूरा खर्च सरकार वहन करती है। ज्ञानदीप पोर्टल पर विद्यालयों द्वारा शुल्क, पोशाक और पाठ्यपुस्तक की राशि की एंट्री के आधार पर उन्हें प्रतिपूर्ति राशि का भुगतान किया जाता है। हालांकि, यह राशि देने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विद्यालयों ने आरटीई के तहत नामांकित छात्रों से ट्यूशन फीस नहीं ली हो और उन्हें पोशाक व पाठ्यपुस्तक की सुविधा उपलब्ध कराई हो। यही जांच का मुख्य उद्देश्य है। स्कूल संचालकों की बढ़ती परेशानी भारतीय स्वतंत्र शिक्षण संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भारत मानस ने इस देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक की जांच प्रक्रिया पूरी न होने से निजी विद्यालयों के संचालकों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने शैक्षणिक सत्र 2024-25 की राशि भी जल्द से जल्द भुगतान करने की मांग की है। कई स्कूल संचालकों का कहना है कि वे पांच साल से अपनी बकाया राशि का इंतजार कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है। कुछ छोटे स्कूलों के संचालकों ने तो यहां तक कहा है कि अगर यह स्थिति बनी रही तो उन्हें आरटीई के तहत बच्चों को नामांकित करने में भी मुश्किल होगी। जांच के बाद ही मिलेगा भुगतान जिन 84 विद्यालयों की जांच पूरी हो चुकी है, उनकी रिपोर्ट जिलास्तरीय समिति को भेज दी गई है। यह समिति ही जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रतिपूर्ति राशि के भुगतान का अंतिम निर्णय लेगी। हालांकि, शेष 83 विद्यालयों को अभी भी अनिश्चित प्रतीक्षा का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी विद्यालयों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति राशि के मामले में प्रशासनिक उदासीनता की तस्वीर साफ झलक रही है। नालन्दा जिले के 167 निजी विद्यालयों की जांच की जिम्मेदारी आठ महीने पहले सौंपे जाने के बावजूद अब तक महज 84 स्कूलों की ही जांच पूरी हो सकी है। फरवरी 2025 मिली थी जांच की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ने दिसंबर 2024 में ही जिलाधिकारी को पत्र भेजकर आरटीई के तहत निजी विद्यालयों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति राशि से संबंधित व्यापक जांच कराने के लिए कहा था। इस जांच में विद्यालयों की शुल्क संरचना, निशुल्क पोशाक आपूर्ति और निशुल्क पाठ्यपुस्तक की आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया था। तत्कालीन जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने फरवरी 2025 में विभागीय प्रावधानों के अनुसार 23 जिलास्तरीय अधिकारियों की जांच टीम का गठन किया था। इन अधिकारियों को वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर 2023-24 तक पांच वर्षों की प्रतिपूर्ति राशि के दावों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आधे से अधिक स्कूलों की जांच बाकी विभागीय रिपोर्ट के अनुसार सोमवार तक केवल 84 विद्यालयों की जांच पूरी हो पाई है, जबकि शेष 83 विद्यालयों की जांच अभी भी लंबित है। यह स्थिति तब है जब जांच शुरू हुए आठ महीने का समय बीत चुका है। इस धीमी गति से चिंतित होकर शिक्षा विभाग के वर्तमान अपर मुख्य सचिव डॉ. बी राजेंदर ने गंभीर नाराजगी जाहिर की है। डॉ. राजेंदर ने जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) को सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि आरटीई के तहत प्रतिपूर्ति राशि से संबंधित सभी मामलों की जांच जल्द से जल्द पूर्ण की जाए। साथ ही उन्होंने सभी निजी विद्यालयों की जांच रिपोर्ट संबंधित पोर्टल पर अपलोड करने का भी आदेश जारी किया है। क्या है आरटीई का प्रावधान? शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत सीटें कमजोर वर्ग और अलाभकारी समूह के बच्चों के लिए आरक्षित हैं। इन बच्चों की शिक्षा का पूरा खर्च सरकार वहन करती है। ज्ञानदीप पोर्टल पर विद्यालयों द्वारा शुल्क, पोशाक और पाठ्यपुस्तक की राशि की एंट्री के आधार पर उन्हें प्रतिपूर्ति राशि का भुगतान किया जाता है। हालांकि, यह राशि देने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विद्यालयों ने आरटीई के तहत नामांकित छात्रों से ट्यूशन फीस नहीं ली हो और उन्हें पोशाक व पाठ्यपुस्तक की सुविधा उपलब्ध कराई हो। यही जांच का मुख्य उद्देश्य है। स्कूल संचालकों की बढ़ती परेशानी भारतीय स्वतंत्र शिक्षण संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भारत मानस ने इस देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक की जांच प्रक्रिया पूरी न होने से निजी विद्यालयों के संचालकों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने शैक्षणिक सत्र 2024-25 की राशि भी जल्द से जल्द भुगतान करने की मांग की है। कई स्कूल संचालकों का कहना है कि वे पांच साल से अपनी बकाया राशि का इंतजार कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है। कुछ छोटे स्कूलों के संचालकों ने तो यहां तक कहा है कि अगर यह स्थिति बनी रही तो उन्हें आरटीई के तहत बच्चों को नामांकित करने में भी मुश्किल होगी। जांच के बाद ही मिलेगा भुगतान जिन 84 विद्यालयों की जांच पूरी हो चुकी है, उनकी रिपोर्ट जिलास्तरीय समिति को भेज दी गई है। यह समिति ही जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रतिपूर्ति राशि के भुगतान का अंतिम निर्णय लेगी। हालांकि, शेष 83 विद्यालयों को अभी भी अनिश्चित प्रतीक्षा का सामना करना पड़ रहा है।


