बिहार चुनाव 2025: पटना के शहरी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत घटने से विपक्ष जहां उत्साहित है वहीं बीजेपी मतदान प्रतिशत बढ़ने के लिए प्रयास कर रही है।
बिहार चुनाव 2025 बीजेपी के गढ़ शहरी क्षेत्र में विपक्ष की उम्मीद जागी है। विपक्ष इसके बाद अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी है। दरअसल, पिछले दो-तीन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पटना के शहरी इलाकों में कम मतदान के बाद विपक्ष ने अपनी रणनीति बदली है। हालांकि 2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी शहर की सभी चारों सीट बड़ी आसानी से जीत गई थी। लेकिन,जीत का अंतर कम होने की वजह से जहां विपक्ष ने अपनी सक्रियता बढ़ा दिया है वहीं बीजेपी शहरी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के प्रयास में जुट गई है। पटना के कुम्हरार विधानसभा सीट पर वर्ष 2020 में कुल मतदान करीब 35.73 % हुआ था और बीजेपी इस सीट पर महज़ 26.5 हज़ार मतों से जीती थी। जबकि साल 2015 के विधानसभा चुनाव में मतदान 38.4 % हुआ था और बीजेपी करीब 37 हजार मतों से यह चुनाव जीती थी। इसी प्रकार वर्ष 2010 में कुल मतदान का क़रीब 72 % वोट बीजेपी को मिला था।
बीजेपी से नाराज है कोर वोटर
बीजेपी से पटना कुम्हरार विधानसभा सीट के कोर वोटर (कायस्थ) इन दिनों नाराज हैं। उनका कहना था कि पार्टी ने हमारी हिस्सेदारी कम कर दी है। कायस्थों को एनडीए का कोर वोटर माना जाता है। इनका कुम्हरार विधानसभा में संख्या भी ठीक ठाक है। जीत-हार में इनकी संख्या महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती रही है। लेकिन, इस दफा ये लोग नाराज हैं। शुक्रवार की शाम कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र के ककड़बाग में भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री एवं शाहाबाद व मगध क्षेत्र के प्रभारी ऋतुराज सिन्हा को कायस्थों ने कड़ा विरोध किया था। कायस्थ समाज के आक्रोशित लोगों ने ऋतुराज के समक्ष ही जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी केसी सिन्हा को वोट देकर भाजपा को सबक सीखाने की चेतावनी की भी बात कहा था।
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कई शहरी क्षेत्र को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। इस कारण उनके मतदाता मतदान के दिन निश्चित रहते हैं। लेकिन, मतदान का प्रतिशत कम होने का वजह से बीजेपी की परेशानी बढ़ी है। हालांकि, इस बार चुनाव आयोग मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए काफी प्रयास कर रही है। छठ के मौके पर मतदाताओं को जागरूक करने के लिए पटना के विभिन्न घाटों से चुनाव आयोग की ओर से नौका से जागरूक भी किया। लेकिन इसमें राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की भी कमी है कि वो समय रहते अपने मतदाता को सही सूचना नहीं दे पाते हैं।


